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November 22, 2024 3:00 am

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कोटे में कोटा : अखिलेश की रणनीति पर मायावती की कूटनीति कहीं भारी न पड़ जाए

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

आरक्षण और संविधान बचाने के नाम पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच का संघर्ष गहरा होता जा रहा है। लोकसभा चुनाव के पहले राउंड में दोनों पार्टियां आमने-सामने थीं, लेकिन अब दूसरे राउंड में दोनों एक ही नाव पर सवार दिख रही हैं, और दोनों दल इस मुद्दे पर दुविधा में हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एससी और एसटी आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा बनाने की छूट राज्य सरकारों को दी है, साथ ही दलित कोटे में क्रीमी लेयर की व्यवस्था का सुझाव भी दिया है। इस फैसले से दलित नेताओं में मतभेद उभर आए हैं। 

बीएसपी प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ आर-पार की लड़ाई की घोषणा की है। उन्होंने संसद में इसके खिलाफ संविधान संशोधन बिल लाने की मांग की थी, लेकिन संसद का सत्र खत्म होने के बाद भी ऐसा बिल पेश नहीं किया जा सका। 

मायावती अब इस मुद्दे को अपने वोटरों को गोलबंद करने के लिए एक अवसर के रूप में देख रही हैं, खासकर जब बीएसपी लगातार चुनाव हार रही है।

बीजेपी के दलित और आदिवासी सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में किसी भी प्रकार के बदलाव की मांग की। 

केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी स्पष्ट किया कि दलित और आदिवासी आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था नहीं की जाएगी। इस पर मायावती ने बीजेपी से कोटे में कोटे की व्यवस्था पर स्पष्ट रुख पेश करने की मांग की। 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी क्रीमी लेयर के सुझाव का विरोध किया है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस ने अब भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चुप्पी साधी हुई है।

बीएसपी को हाल के लोकसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा, और पार्टी का वोट बैंक समाजवादी पार्टी की ओर शिफ्ट हो गया है। बीएसपी एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसके वोट शेयर में भी गिरावट आई। 

मायावती की जाटव बिरादरी के वोटर अब अखिलेश यादव का समर्थन कर रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए अखिलेश यादव ने PDA (पिछड़ा वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक) की राजनीति को अपनाने की योजना बनाई है, लेकिन मायावती सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उपयोग कर अखिलेश यादव की रणनीति को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें एससी और एसटी के लिए आरक्षित हैं। इस बार बीजेपी ने इनमें से 8 सीटें, सपा ने 9 और कांग्रेस ने 1 सीट जीती। सपा ने भी जनरल कैटेगरी की सीटों पर दलित नेताओं को टिकट दिया, जो सफल रहा।

अब यूपी में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। मायावती ने इन उपचुनावों में सभी दस सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, जो आमतौर पर उपचुनावों से दूर रहती हैं। 

मायावती का मानना है कि दलित आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके चुनावी प्रदर्शन में मददगार साबित हो सकता है। 

यूपी में लगभग 22 प्रतिशत दलित वोटर हैं, जिनमें 13.4 प्रतिशत जाटव, 3.3 प्रतिशत पासी और 3.1 प्रतिशत वाल्मीकि शामिल हैं। मायावती, जो खुद जाटव बिरादरी से हैं, क्रीमी लेयर की व्यवस्था का विरोध कर रही हैं, क्योंकि इससे जाटव समुदाय को नुकसान हो सकता है। 

वहीं, अखिलेश यादव पासी समाज के वोटरों को ध्यान में रखते हुए चुनावी रणनीति बना रहे हैं, लेकिन जाटव वोटरों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मायावती ने बीएसपी के दो उम्मीदवार भी घोषित किए हैं, एक जेल में बंद पूर्व विधायक के बेटे प्रतीक पांडे और दूसरे फूलपुर से शिव वरण पासी हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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