सुरेन्द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट
जयपुर: राजस्थान विधानसभा में विधायक हरीश चौधरी ने 90 के दशक में खासे लोकप्रिय हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि की एक कविता पढ़ चर्चा में आ गए हैं। ‘ठाकुर का कुआं’ कविता के जरिए विधायक सरकार और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रहे थे। हालांकि इसका असर सरकार से ज्यादा राजपूत समाज पर हुआ। कई राजपूत नेताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पहले यहां पढ़ें ‘ठाकुर का कुआं’ कविता…
ठाकुर का कुआं कविता से किस बात की नाराजगी
दरअसल,राजस्थान का एक नाम राजपूताना भी है। राजपूत शासकों और रियासतों वाले इस प्रदेश का गौरवशाली इतिहास रहा है। यहां राजपूत शासकों ने सदियों राज किया है। आज भी उनकी दास्तानें सुन देसी-विदेशी राजस्थान खींचे चलते आते हैं।
राजपूत समाज ही नहीं अन्य जातियां और पंत के लोग भी इस मरुधरा से खुद को जोड़कर गौरवांवित महसूस करते हैं। हालांकि कई बार जातियों और समाजों के बीच आपसी मतभेद भी हुए हैं।
कभी दलितों पर अत्याचार, गरीबों के शोषण की बात उठी तो कभी जाट-राजपूत समाजों के बीच संघर्ष जैसी सियासत भी हुई। लेकिन आखिरकार जीत हमेशा राजस्थानियों की हुई है।
ठाकुर का कुआं
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गाँव?
शहर?
देश?
यानी राजपूत, जाट, ब्राह्मण, वैश्य या दलित और सभी धर्म और समाज के लोग सामाजिक समरसता के साथ रहते आए हैं। अब इस कविता के जरिए कांग्रेस विधायक हरीश चौधरी के ‘ठाकुर का कुआं’ संबोधन को राजपूत समाज के कुछ नेता खुद से जोड़कर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
Author: samachar
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