दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
साल 2017 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया था जब बीजेपी ने एक प्रचंड बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीता। यहां तक कि उस समय वहां के राजनीतिक समीकरण में एक महत्वपूर्ण स्थिति बदल गई जिसने सिर्फ सपा-बसपा के परंपरागत शासन को चुनौती दी। इस चुनावी जीत में बहुत सारे कारक थे, जैसे की मोदी लहर, लेकिन एक चेहरा भी था जो बहुत मेहनती रहा और बहुत सी रैलियां की। वह थे केशव प्रसाद मौर्य, जिन्होंने ओबीसी समाज में बीजेपी के प्रति विशेष आस्था जगाई।
करीब तीन साल पहले की बात है जब चर्चा चली कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को बीजेपी आलाकमान पद से हटाना चाहता है। यह टाइम 2022 के विधानसभा चुनाव के करीब 9 महीने पहले का था। हालांकि, उन्हें पद से नहीं हटाया गया था। अब फिर से यहीं खबरें चल रही हैं कि यूपी बीजेपी में सबकुछ सहीं नहीं चल रहा है। केशव प्रसाद मौर्य के कार्यसमिति की बैठक में दिए गए बयान ने इन सबको और हवा दे दी। मौर्य ने कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है। संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है। संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा। आइए अब जानतें है कि आखिर केशव प्रसाद मौर्य कितने ताकतवर नेता हैं जिन्हें चुनाव हारने के बाद भी प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।
केशव प्रसाद मौर्य ने अपने कार्यकाल में बहुत प्रचंड रैलियां आयोजित कीं और उनके संगठनात्मक कौशल ने भी उन्हें उत्तर प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष बनने में सहायक साबित हुआ। लेकिन जब मुख्यमंत्री के चयन का समय आया, तो बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को फावड़ा दिया, जिससे अचानक केशव प्रसाद मौर्य की प्रचंड रैलियां और सक्रियता भी गायब हो गई। वे तब डिप्टी सीएम के रूप में नामित हुए, लेकिन यह उनके लिए कमजोरी का परिचय बन गया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में केशव मौर्य के कद का दूसरा ओबीसी नेता नहीं है। वह पिछड़ों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं। इसी वजह से पार्टी उन पर भरोसा करती है। केशव प्रसाद मौर्य को राज्य में मौर्य और कुशवाहा वोटर्स को साधने के लिए भी पार्टी ने उन्हें ही जिम्मेदारी दी। गैर यादव वोटर्स को एकजुट करने में भी केशव मौर्य का योगदान काफी अहम माना जाता है।
उत्तर प्रदेश के कुल वोटर्स में ओबीसी वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी के आसपास है। ऐसा कहा जाता है कि यादव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी का समर्थक है। यह उत्तर प्रदेश की सबसे प्रभावशाली जाति भी मानी जाती है। गैर वोटर्स को एकजुट करने की वजह से भी भारतीय जनता पार्टी का आलाकमान उन्हें नजरअंदाज नहीं पाता है।
मौर्य चार में से केवल एक बार जीते चुनाव
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पहली बार इलाहाबाद की पश्चिमी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। वह साल 2002 में माफिया अतीक अहमद के खिलाफ बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े। वह महज सात हजार वोट पाकर चौथे नंबर पर रहे। इसके बाद वह साल 2007 में भी अगला विधानसभा चुनाव इलाहाबाद पश्चिम की सीट से ही लड़े। हालांकि, इस चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।
केशव प्रसाद मौर्य ने 2012 में विधानसभा सीट बदली और कौशांबी के सिराथू से चुनावी मैदान में उतरे। इस सीट से वह पहली बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे। वह साल 2014 का लोकसभा इलेक्शन फूलपुर से लड़े और तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। यह सीट कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ मानी जाती थी। यहां पर पहली बार बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा था। इसके बाद से धीरे-धीरे उनके कद में बढ़ोतरी होती चली गई। केशव प्रसाद मौर्य को साल 2016 में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
14 साल से प्रदेश की सत्ता से बाहर रही भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया। भारतीय जनता पार्टी को करीब 325 सीटें मिलीं थीं। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का बड़ा दावेदार माना जा रहा था। हालांकि, उन्हें डिप्टी सीएम पद से ही संतोष करना पड़ा और योगी आदित्यनाथ को सीएम पद की कुर्सी मिली। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने साल 2022 में फिर से सिराथू से चुनाव लड़ा और इस बार वह समाजवादी पार्टी की पल्लवी पटेल से हार गए। मौर्य को कुल 98941 वोट मिले थे, वहीं पटेल के खाते में 106278 मत गए थे। चुनाव में हार के बाद भी पार्टी ने उन्हें फिर से डिप्टी सीएम बना दिया।
2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा, जिससे केशव प्रसाद मौर्य को एक नई उम्मीद का संकेत मिला। उनकी पुनरावृत्ति और उत्तर प्रदेश के समाज में उनकी वापसी की उम्मीद है।
अब यह देखना है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में केशव प्रसाद मौर्य का रोल क्या होगा और क्या वे उत्तर प्रदेश के सियासी लंबे समय के लिए एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभर सकते हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."