दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुए एक सत्संग के दौरान भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई, और इस घटना ने कई परिवारों को तबाह कर दिया। इस हादसे के केंद्र में सूरजपाल उर्फ भोले बाबा हैं, जिनके सत्संग में यह त्रासदी घटी। लेकिन, बाबा के खिलाफ कार्रवाई करने से पुलिस और सत्ताधारी दल दोनों ही बच रहे हैं। सत्ताधारी और विपक्षी दलों की चुप्पी इस मामले में उनके राजनीतिक हितों से जुड़ी हुई है, खासकर आगामी करहल विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी तक ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, लेकिन बाबा पर सीधे आरोप लगाने से बचते नजर आए। सीएम योगी ने इस घटना को एक साजिश बताया, जबकि विपक्ष ने प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाए।
बीजेपी सरकार, जो अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए जानी जाती है, इस मामले में सतर्कता बरत रही है। इसके पीछे मुख्य कारण वोट बैंक की राजनीति है। करहल उपचुनाव और अन्य उपचुनावों में दलित और ओबीसी वोटरों की नाराजगी बीजेपी के लिए खतरा बन सकती है। यही वजह है कि बाबा के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने से बचा जा रहा है।
बाबा भोले का धार्मिक साम्राज्य मैनपुरी के बिछवां में स्थित है, जहां से उनका प्रभाव क्षेत्र व्यापक है। उनके भक्तों में ज्यादातर दलित समुदाय के लोग शामिल हैं, लेकिन ओबीसी जातियों के लोग भी उनके अनुयायी हैं। राजनीतिक दल इस वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते, इसलिए बाबा के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रहे हैं।
2023 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी बाबा के सत्संग में शामिल हुए थे, जिससे सपा और बाबा के बीच के संबंध स्पष्ट होते हैं। करहल विधानसभा सीट, जो अखिलेश यादव के विधायक पद से इस्तीफे के बाद खाली हुई है, सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। इसलिए सपा भी बाबा पर आरोप लगाने से बच रही है।
कांग्रेस, जो सपा के साथ गठबंधन में है, भी इस मामले में चुप है। राहुल गांधी ने भी पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, लेकिन बाबा के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया।
स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि करहल विधानसभा सीट की राजनीति बाबा के अनुयायियों पर निर्भर करती है। बाबा पर सवाल उठाने का मतलब है उनके भक्तों को नाराज करना, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। करहल सीट पर यादव, शाक्य, पाल और दलित समुदाय के लोग बड़ी संख्या में वोटर हैं, जो बाबा के समर्थक हैं।
सपा से तेज प्रताप यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा है, जो अखिलेश यादव के चचेरे भतीजे हैं। इसलिए सपा बाबा को आरोपित कर राजनीतिक नुकसान नहीं उठाना चाहती। बीजेपी भी शाक्य और दलित समुदाय के वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती, इसलिए बाबा पर सीधे कार्रवाई करने से बच रही है।
इस प्रकार, हाथरस भगदड़ कांड में सूरजपाल उर्फ भोले बाबा पर कार्रवाई न करने की राजनीतिक मजबूरी साफ नजर आती है। सत्ताधारी और विपक्षी दल दोनों ही अपने-अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए बाबा के खिलाफ सख्त रुख अपनाने से बच रहे हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."