दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अयोध्या लोकसभा सीट पर हार से बीजेपी को गहरा झटका लगा है, और अब पार्टी इस हार की भरपाई मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव से करना चाहती है। अवधेश प्रसाद के अयोध्या से सांसद बनने के बाद मिल्कीपुर सीट खाली हो गई है। बीजेपी इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, लेकिन यहां के चुनावी ट्रेंड्स उसके लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।
फैजाबाद लोकसभा सीट का चुनाव परिणाम
फैजाबाद लोकसभा सीट से सपा के अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के लल्लू सिंह को हराकर जीत हासिल की। अवधेश प्रसाद को 5,54,289 वोट मिले, जबकि लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट मिले। इस सीट पर आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से चार पर अवधेश प्रसाद को बढ़त मिली थी।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट का इतिहास
मिल्कीपुर विधानसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी और 2008 के परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। इस सीट पर अब तक कांग्रेस, जनसंघ, सीपीआई, बीजेपी, बसपा और सपा ने जीत हासिल की है। सपा और लेफ्ट चार-चार बार, कांग्रेस तीन बार, बीजेपी दो बार, और बसपा एक बार जीत चुकी है।
उपचुनाव का इतिहास
मिल्कीपुर सीट पर यह तीसरा उपचुनाव होगा। पहले उपचुनाव 1998 में हुए थे, जब मित्रसेन यादव लोकसभा सांसद बने थे। दूसरी बार उपचुनाव 2004 में हुए थे, जब आनंदसेन यादव ने विधायकी से इस्तीफा दिया था। दोनों बार सपा ने जीत हासिल की थी।
मिल्कीपुर में चुनावी समीकरण
मिल्कीपुर सीट पर यादव, पासी और ब्राह्मण वोटरों का बड़ा प्रभाव है। यहां यादव वोटर 65 हजार, पासी 60 हजार, ब्राह्मण 50 हजार, मुस्लिम 35 हजार, ठाकुर 25 हजार, गैर-पासी दलित 50 हजार, मौर्य 8 हजार, चौरासिया 15 हजार, पाल 8 हजार और वैश्य 12 हजार हैं। सपा यादव-मुस्लिम-पासी समीकरण पर निर्भर करती है, जबकि बीजेपी सवर्ण और दलित वोटरों पर ध्यान देती है।
सपा और बीजेपी के बीच मुकाबला
2022 में सपा के अवधेश प्रसाद ने 13,338 वोटों से जीत दर्ज की थी। उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है। लोकसभा चुनाव में मिल्कीपुर सीट पर सपा को बढ़त मिली थी, जिससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उपचुनाव में सपा के जीतने की पुरानी परंपरा भी बीजेपी के लिए चुनौती साबित हो सकती है।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव बीजेपी और सपा के लिए महत्वपूर्ण है। बीजेपी इस सीट को जीतकर अयोध्या लोकसभा सीट की हार का बदला लेना चाहती है, लेकिन चुनावी ट्रेंड्स और सपा की मजबूती उसके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."