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November 1, 2024 4:53 pm

एक बार उन्होंने कहा “खोल दो”… और फिर “ठंडा गोश्त” रखकर “काली सलवार” छोड़ गए… सबसे अलग थे “सआदत हसीन मंटो “

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अनिल अनूप की खास प्रस्तुति

सआदत हसन मंटो एक ऐसे लेखक थे जिनके काम ने उन्हें विवादों में फँसाया था, खासकर उनकी कुछ कहानियों ने। उनकी कहानियों में समाज की वास्तविकता और समस्याओं को उजागर करने का प्रयास था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अश्लीलता के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

पाकिस्तान के गठन से पहले, उनकी कहानियों ‘काली सलवार’, ‘धुंआ’, और ‘बू’ पर अश्लीलता के मुक़दमे चले थे और उन्हें इन मुक़दमों में सज़ा भी हुई थी। हालांकि, हर बार जब उन्हें अपील किया गया, उन्हें अदालतों ने अश्लीलता के आरोप से बरी कर दिया। इससे स्पष्ट होता है कि उनकी कहानियाँ उस समय की सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता को चुनौती देने में सजग थीं, और उनका काल्पनिक और रचनात्मक दृष्टिकोण उन्हें विवादों में डालने के लिए काफी शक्तिशाली साबित हुआ।

सआदत हसन मंटो की कहानी ‘ठंडा गोश्त’ उनके लेखन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो उन्होंने पाकिस्तान की स्थापना के बाद लिखी थी। इस कहानी में वे सामाजिक मुद्दों को उजागर करते हैं और उन्होंने इसे एक रोमांचक और चुनौतीपूर्ण दृष्टिकोण से पेश किया।

1949 के मार्च महीने में, इस कहानी को लाहौर के अदबी महानामा ‘जावेद’ में प्रकाशित किया गया था। इस कहानी के प्रकाशन के बाद, 30 मार्च को ‘इंकलाब’ नामक दैनिक पत्रिका में इसकी छापा मारी गई। इस घटना ने समाज में विवाद उत्पन्न किया और पत्रिका के कार्यालय पर छापा मारने का कारण इस कहानी का प्रकाशन बताया गया। विशेष रूप से उस समय के समाज में इस कहानी की अश्लीलता के आरोपों पर ध्यान दिया गया था।

इस घटना ने मंटो के साहित्यिक करियर में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखा, जो उनकी स्वतंत्र और विवादास्पद लेखनी को दर्शाता है। इस घटना ने साहित्यिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता के मुद्दे पर भी गहरी प्रतिष्ठा डाली।

सआदत हसन मंटो के लिए ‘ठंडा गोश्त’ के मुक़दमे का दर्ज एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो उनके साहित्यिक जीवन में एक मार्कर स्थापित करती है। इस मुक़दमे के माध्यम से, उन्होंने साहित्यिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता के मुद्दे पर सख्ती से विचार किए।

जब वे लाहौर आए तो उनकी मानसिक स्थिति बहुत अजीब थी, क्योंकि उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे कहाँ हैं – भारत या पाकिस्तान। इस परिस्थिति में उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या पाकिस्तान का साहित्य भी अलग होगा और यदि होगा तो वह कैसा होगा। उन्होंने अपनी समझाने की कोशिश की कि भारतीयों और पाकिस्तानियों की समस्याएं कितनी समान हैं और क्या उन्हें अपनी स्वतंत्रता के बाद भी सरकारी आलोचना करने की आज़ादी मिलेगी।

उन्होंने इस संदर्भ में अपने लेख में व्यापक रूप से चिंतन किया और इस विचारधारा को अपनी कहानी ‘ठंडा गोश्त’ के प्रस्तावना में बयान किया। इस प्रकार, उनके लेखन में विचारशीलता और साहित्यिक समझदारी की गहराई दिखती है, जो उन्हें एक महत्वपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व बनाती हैं।

पाकिस्तान के बनने के बाद, सआदत हसन मंटो की साहित्यिक दृष्टि में एक नया चुनौतीपूर्ण समय आया था। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज और सरकार की तारीफ और आलोचना दोनों किए। उन्होंने ‘इमरोज़’ में लेखन शुरू किया जो बाद में ‘तल्ख़, तरुश और शीरीं’ के नाम से प्रकाशित हुआ।

उसी समय, अहमद नदीम कासमी ने लाहौर से अपनी पत्रिका ‘नुक़ूश’ का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने मंटो को भी इस पत्रिका में लेखन के लिए प्रेरित किया। मंटो ने अपनी पहली कहानी ‘ठंडा गोश्त’ लिखी, जो कासमी जी को बहुत पसंद आई। उन्होंने मंटो से कहा कि यह कहानी ‘नुक़ूश’ के लिए बहुत गरम है।

कुछ दिनों बाद, कासमी के कहने पर, मंटो ने एक और कहानी ‘खोल दो’ लिखी। यह कहानी भी ‘नुक़ूश’ में प्रकाशित हुई, लेकिन सरकार ने छह महीने के लिए ‘नुक़ूश’ का प्रकाशन बंद कर दिया। इसके बावजूद, समाचार पत्रों में सरकारी कदम का विरोध हुआ, लेकिन सरकार ने अपना निर्णय बदला नहीं।

जगदीश चंद्र वाधवान ने अपनी पुस्तक ‘मंटो नामा’ में इस घटना को विस्तार से वर्णित किया है, जिसमें वह बताते हैं कि आरिफ़ अब्दुल मतीन ने अपनी पत्रिका ‘जावेद’ के लिए ‘ठंडा गोश्त’ को मांगा और इसे प्रकाशित कर दिया। यह कहानी उन्हें चौधरी नज़ीर अहमद के पास थी, लेकिन उन्होंने इसे प्रकाशित नहीं किया। इसके बाद मंटो ने इसे मुमताज शीरीं को भेजा, लेकिन उन्होंने भी इसे प्रकाशित करने से मना कर दिया। अंततः, आरिफ़ अब्दुल मतीन ने इसे अपनी पत्रिका ‘जावेद’ में प्रकाशित किया।

ठंडा गोश्त के प्रकाशन के समय में बहुत हलचल थी और इसे गिरफ़्तार करने के लिए प्रेस एडवाइज़री बोर्ड में मामला पेश हुआ। इस बोर्ड में विभिन्न संघ, अखबारों और समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों की शामिली थी, जिनमें नामी व्यक्तित्व शामिल थे।

चौधरी मोहम्मद हुसैन, जो जावेद के प्रेस ब्रांच के इंचार्ज थे, उन्होंने अपने हाथों से इस कहानी का छापा मारने का फैसला किया। इसके पहले, यह कहानी अन्य अखबारों में पहले से ही प्रकाशित हो चुकी थी, जैसे कि इंक़लाब में जो इसे प्रकाशित करने के दिन पर पहुंच गया था।

मंटो ने अपनी लेखनी में इस विवादित कहानी को बहुत साहित्यिक महत्व दिया, और उन्होंने बड़े साहस से समाज की विभिन्न समस्याओं पर नज़र डाली। प्रेस एडवाइज़री बोर्ड ने मामले को अदालत पर छोड़ दिया, जिससे यह साबित होता है कि इस कहानी का प्रकाशन समाज में गहरा प्रभाव डाला था।

गवाही प्रक्रिया में 14 लोगों की गवाही बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई, जिसमें सात गवाह मंटो के पक्ष में पेश हुए और बाकी चार गवाह अदालत की तरफ से। इसमें मंटो की कहानी ‘ठंडा गोश्त’ के साहित्यिक महत्व को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण और समाजिक परिप्रेक्ष्य था।

पहले तीन गवाहों ने कहानी को गंदा और आपत्तिजनक बताया, जबकि अन्य गवाहों ने इसे साहित्यिक और कला के रूप में देखा। डॉक्टर आई लतीफ ने विशेष रूप से इसे साहित्यिक कहा, जबकि अन्य गवाहों ने यह अपमानजनक माना।

मंटो ने इस प्रक्रिया में अपनी बदलती साहित्यिक दृष्टि और समाज के मुद्दों पर अपने लेखों के माध्यम से ध्यान दिया, जिससे उनके लेखकीय योगदान की गहरी मान्यता मिली।

यहां पाकिस्तान के साहित्यिक और न्यायिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण मुक़दमे का विवरण है, जिसमें साहित्यिक स्वतंत्रता और मीडिया के स्वतंत्रता के मुद्दे उठाए गए थे।

16 जनवरी 1950 को, नसीर अनवर, आरिफ़ अब्दुल मतीन, और सादत हसन मंटो को अश्लील कहानी लिखने और प्रकाशित करने के आरोप में आरोपी ठहराया गया। अदालत ने प्रत्येक आरोपी पर तीन सौ रुपये का जुर्माना लगाया और मंटो को तीन महीने की क़ैद सज़ा सुनाई। नीचली अदालत में इन फैसलों के खिलाफ आरोपियों ने सत्र न्यायालय में अपील की, जिसे मजिस्ट्रेट इनायतुल्ला खान ने स्वीकार करते हुए निचली अदालत के फ़ैसले को खारिज कर दिया और आरोपियों को बाइज़्ज़त बरी करते हुए उनके द्वारा अदा किया गया जुर्माना वापस करने का आदेश दिया।

हालांकि, सरकार ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद मुनीर और न्यायमूर्ति मोहम्मद जान ने 8 अप्रैल 1952 को अपना फ़ैसला सुनाया।

उच्च न्यायालय ने अश्लीलता के मामले में मंटो और उनके साथियों के लिए सही और वजनदार फैसला दिया। वे इस बात को स्पष्ट किया कि ‘ठंडा गोश्त’ की कहानी में विवरण और विरोधाभासी कथन अश्लीलता को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं, लेकिन वह खुद अश्लीलता की परिभाषा पर अंगुली उठा नहीं सकते। उन्होंने मंटो और उनके साथियों के खिलाफ निर्दिष्ट जुर्माने को वापस लेने का आदेश दिया।

इस प्रकार, यह मुक़दमा पाकिस्तानी साहित्यिक समुदाय और न्यायिक संस्थाओं के बीच समझौते का परिचायक हुआ, जिसने साहित्यिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा की।

मौत के बाद ख़त्म हुआ एक मुक़दमा

‘ठंडा गोश्त’ का मामला समाप्त हुआ तो, कुछ साल बाद, मंटो एक और कहानी ‘ऊपर नीचे और दरमियान’ पर चलाये जाने वाले अश्लीलता के एक और मुक़दमे में फंस गए। यह कहानी सबसे पहले लाहौर के अख़बार ‘एहसान’ में प्रकाशित हुई थी‌। उस समय तक, चौधरी मोहम्मद हुसैन की मृत्यु हो गई थी, इसलिए लाहौर में शांति थी। 

लेकिन बाद में जब यह कहानी कराची की एक पत्रिका, ‘पयाम-ए-मशरिक़’ में प्रकाशित हुई, तो वहां की सरकार हरकत में आई और मंटो को अदालत में बुला लिया गया। 

यह मामला मजिस्ट्रेट मेहंदी अली सिद्दीकी की अदालत में पेश हुआ। जिन्होंने सिर्फ कुछ तारीखों की सुनवाई के बाद मंटो पर 25 रुपये का जुर्माना लगाया। 

जुर्माना तुरंत अदा कर दिया गया और इस तरह इस अंतिम मुक़दमे से भी मंटो को बरी कर दिया गया। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."