नौशाद अली की रिपोर्ट
बलरामपुर। इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ लखनऊ ने बलरामपुर जिले से जुड़े दो मामलों पर फैसला सुनाया था, जिसकी बलरामपुर में आजकल बेहद चर्चा है। यह दोनों फैसले एक ही मामले से जुड़े हुए हैं। एक रिट पेटीशन में कुसुमा देवी नाम की महिला वादिनी है, तो दूसरे रिट में जिस थाने में यह घटना घटित हुई थी, उसके तत्कालीन एसओ वादी है।
करीब सात महीने पहले घटित हुए इस मामले में न्याय के लिए वादिनी कुसुमा महीनों भटकती रही, लेकिन उन्हें न्याय की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट से उन्हें न्याय की उम्मीद जगी।
वहीं, दूसरी तरफ जिले के कलेक्टर अरविंद कुमार सिंह ने महिला को न्याय दिलवाने के लिए एक कदम आगे बढ़ते हुए मामले में मजिस्ट्रेटियल जांच की अनुशंसा की और उसी जांच के आधार पर आरोपी पुलिसकर्मियों पर करवाई करने का मजिस्ट्रेटियल आदेश अपनी सांविधिक शक्तियों के तहत जारी किया।
अब इस मामले में खंडपीठ लखनऊ ने एक नहीं दो आदेशों को पारित किया है। एक आदेश के जरिए निलंबित आरोपी एसओ को उसका रुका वेतन मिलेगा, तो दूसरे आदेश के जरिए इस मामले में जांच करने के लिए SIT का गठन किया जाएगा और पूरी जांच हाई कोर्ट की निगरानी में होगी। इसके बाद इस मामले को लेकर जिले का माहौल गर्म दिखाई दे रहा है। तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
पहले जानते हैं क्या है पूरा मामला
मामला बलरामपुर जिले के गैंडास बुजुर्ग थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यही पास के धोबहा गांव के रहने वाले दलित समाज से आने वाले राम बुझारत और उनके परिजनों के दावे वाली निर्माणाधीन थाने के पास कुछ जमीन थी। उक्त जमीन का मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन था।
23/10/2023 को जब थाने के गेट से सटे प्लॉट पर निर्माण के लिए पिलर खुदवाया जाने लगा, तो राम बुझारत ने इस अवैध निर्माण को रोकने के लिए तत्काल एक एप्लीकेशन थानाध्यक्ष को दिया। उस दिन महानवमी का त्योहार मनाया जा रहा था। उसके एक दिन बाद दशहरे के दिन यानी की 24/10/23 को जब पुलिसकर्मियों द्वारा तमाम लोगों की मिलीभगत के साथ थाने के निर्माणाधीन भवन से सटी जमीन पर पिलर खड़ा कर दिया गया। इससे आहत राम बुझारत ने फेसबुक लाइव करते हुए आत्मदाह की कोशिश की।
छह दिन बाद मौत हुई
उसके बाद जिला प्रशासन और पुलिस के हाथ-पांव फूलने शुरू हुए। आनन-फानन में स्थानीय लोगों और उसके परिजनों द्वारा राम बुझारत को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे जिला अस्पताल, फिर उसके बाद लखनऊ के केजीएमयू मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए रेफर कर दिया गया।
6 दिनों तक राम बुझारत जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ता रहा। आखिरकार वह यह जंग हार गया। इसके बाद जांच पड़ताल और मान-मनौवल का दौर शुरू हुआ। खैर, प्रशासन द्वारा समझाने-बुझाने के बाद राम बुझारत के परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार करवा दिया, लेकिन जमीन के एक टुकड़े के लिए आत्मदाह करने वाले राम बुझारत, उसकी पत्नी और बच्चों को न्याय नहीं मिल सका। धीरे-धीरे पुलिस और स्थानीय प्रशासन द्वारा न्याय की उम्मीद भी मरने लगी।
आखिरकार, राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी ने CRPC की धारा 156/3 के तहत न्यायालय में एक वाद दायर कर उक्त मामले में एफआईआर दर्ज करवाने की मांग की। जिला न्यायालय द्वारा मामले में राजस्वकर्मियों और अन्य के खिलाफ तो एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन पुलिस कर्मियों पर पता नहीं किस रिपोर्ट आधार पर FIR नहीं दर्ज हुई।
थानाध्यक्ष, लेखपाल और गांव के कुछ अन्य लोगों पर लगा था आरोप
थानाध्यक्ष, लेखपाल और गांव के कुछ लोगों पर गंभीर आरोप लगे थे। आरोप था कि निर्माणाधीन थाना भवन के बाहर विवादित भूमि पर पुलिस संरक्षण में हुए पिलर का निर्माण देखकर राम बुझारत नहीं सहन कर पाया। पुलिस की दबंगई से उसे अपनी पुश्तैनी जमीन अवैध रूप से कब्जा होकर उसके हाथ से चले जाने का डर उसके मन में बैठ गया था। इसी से आहत होकर राम बुझारत ने आत्मदाह का रास्ता चुना।
इस मामले में डीएम अरविंद सिंह के निर्देश पर अपर जिला अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह और अपर पुलिस अधीक्षक नम्रता श्रीवास्तव मजिस्ट्रेट जांच की अनुशंसा पर थानाध्यक्ष के साथ ही कार्यदायी संस्था से जुड़े अधिकारियों और पीड़ितों का बयान दर्ज हुए थे।
बताया जाता है कि अपर पुलिस अधीक्षक नम्रता श्रीवास्तव ने अपनी प्रारंभिक जांच में थाने के प्रभारी पवन कुमार कन्नौजिया को दोषी माना था। बताया जाता है कि उन्हीं की अनुशंसा पर निलंबन की कार्रवाई की गई।
कार्यदायी संस्था और पुलिस ने मिली भगत से ऐसे समय को निर्माण के लिए चुना, जब छुट्टी हो। शनिवार, रविवार को अवकाश था। राम बुझारत ने सोमवार को थाना गैंडास बुजुर्ग पर इस बाबत शिकायती पत्र दिया और उसके दूसरे दिन दशहरे का त्योहार था। थाने पर उसे करीब 3 घंटे तक बिठाए रखा गया। उसके बाद जब तमाम लोगों ने हस्तक्षेप किया तो उसे छोड़ा गया, लेकिन उससे कहा गया कि उक्त जमीन को पाने के लिए उसे कोर्ट से स्टे आर्डर लाना होगा।
गौरतलब है कि 4 दिन छुट्टी होने के करण राम बुझारत को किसी तरह स्टे नहीं मिल सकता था। निर्माणाधीन थाने की जमीन के गेट के पास हो रहे इस अवैध निर्माण का मकसद दिया था कि छुट्टी के दिनों में राम बुझारत की पड़ी हुई जमीन पर अवैध रूप से पहले कब्जा कर लिया जाएगा। फिर आने वाले समय में कमर्शियल जमीन को महंगे दामों में बेच दिया जाएगा, लेकिन राम बुझारत को जब स्थानीय थाने के स्तर से न्याय मिलता नहीं दिखाई दिया तो उसने आत्मदाह का प्रयास किया। इस घटना में वह लगभग 60% झुलस गया था। इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया था।
मजबूर होकर डीएम को जाना पड़ा कोर्ट
उक्त मामले में जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने मजिस्ट्रेट जांच में थानाध्यक्ष और पुलिसकर्मियों की भूमिका को संदिग्ध पाया था। 27/10/2023 को थानाध्यक्ष और अन्य पुलिसकर्मियों के विरूद्ध कानूनी आदेश पुलिस अधीक्षक को दिया, लेकिन छह महीने बीतने के बाद भी जब पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं कि गई और राम बुझरत का परिवार न्याय के लिए दर दर भटकता रहा, तब मजबूरन जिला मजिस्ट्रेट अरविंद सिंह ने अपने कोर्ट से 35 पेज का आदेश 30/04/24 को पवन कन्नौजिया के विरुद्ध पारित किया। साथ ही पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया कि अन्य संलिप्त पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए, लेकिन बलरामपुर पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई और पुलिस डीएम के विरुद्ध के ही कोर्ट चले गए। मामले की पहली तारीख 23 मई 2024 लगाई गई, जिसमें डीएम और अन्य आला अधिकारी चुनाव में व्यस्त थे।
राम बुझारत और उसके परिजनों का मामला था कोर्ट में
निर्माणाधीन थाना गैंडास बुजुर्ग के गेट पर सटा प्लॉट बेहद महंगा बताया जाता है, क्योंकि उसकी व्यावसायिक उपयोगिता है। जिस प्लॉट के टुकड़े के लिए राम बुझारत ने आत्महत्या की, उस पर उसके परिवार के लोगों का कई सालों से सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था।
उक्त मामले में कोर्ट ने जमीन के लिए एक कमीशन रिपोर्ट का आदेश भी कर दिया था। कोर्ट कमीशन 02/09/23 को हो जाने के कारण स्थानीय तहसील स्तर पर यह मामला किसी तरह से भी आदेश के कैटगरी में नहीं आ सकता था। राम बुझारत ने जिस दिन उसके दावे वाली जमीन पर कब्जा हो रहा था, उस दिन भी उसने थानाध्यक्ष से न्याय की गुहार लगाई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गई। वहीं, राम बुझारत और जमुना ने 23/10/23 को दिए अपने प्रार्थना पत्र में यह बात बताई। इसके साथ ही यह स्वीकार किया कि सिविल कोर्ट से निर्णय हो जाने के बाद जमीन जिसके भी हक में आएगा, उसके लिए वह फैसला स्वीकार होगा।
राम बुझारत की पत्नी ने उठाया कदम तो आगे बढ़ा मामला
राम बुझारत की अंत्येष्टि और तेरहवीं के करीब तीन महीने बीत जाने के बाद जब कोई कार्रवाई हुई तो पत्नी कुसुमा देवी ने जिला न्यायालय में एक वाद दायर करते हुए एफआईआर पंजीकृत करवाने की मांग की, लेकिन किसी कारण वश केवल राजस्व कर्मी और कुछ प्राइवेट व्यक्तियों पर ही एफआईआर हुई।
बताया जाता है कि इस मामले में जिन अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई है, उसमें से कई लोग पिछले एक-डेढ़ साल से विदेश में हैं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पुलिसकर्मियों के ऊपर एफआईआर नहीं दर्ज की गई। अंत में, कुसुमा देवी ने लखनऊ खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया। वहां से इन्हें न्याय मिलता दिखा। हाई कोर्ट ने मामले में अहम फैसला दिया है, जबकि आने वाले 12 जून को मामले की फिर सुनवाई होनी है।
लखनऊ हाई कोर्ट ने क्या दिया आदेश
पहला आदेश:
निलंबित थानाध्यक्ष पवन कुमार कनौजिया की रिट याचिका पर लखनऊ हाई कोर्ट ने जिलाधिकारी के वेतन रोकने के आदेश पर चार हफ्तों के लिए स्टे लगाकर जिलाधिकारी अरविंद सिंह से काउंटर एफिडेविट मांगा है। जिलाधिकारी के पास अब यह अवसर है कि वह अपनी बात और तथ्यों को हाई कोर्ट के सामने सीधे रख सकते हैं।
न्यायाधीश अब्दुल मोइन की बेंच ने गैंडास बुज़ुर्ग मामले में निलंबित थानाध्यक्ष चल रहे पवन कुमार कन्नौजिया के वेतन पर रोक लगाने से संबंधित कलेक्टर अरविंद सिंह के आदेश पर रोक लगाते हुए 29/05/24 को यह आदेश दिया कि इस केस में जिलाधिकारी को आदेश पारित करने का अधिकार है, तो वह उसका आधार कैसे है। उसे काउंटर एफिडेविट के माध्यम से दाखिल करें। सुनवाई के दौरान तमाम तरह की दलीलें भी दी गईं, जिस पर कोर्ट ने थानाध्यक्ष के पक्ष को सही मानते हुए केवल उनके वेतन को जारी करने का आदेश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद होगी। तब तक डीएम एफिडेविड के माध्यम से अपना पक्ष अगले चार हफ्तों में कोर्ट के समक्ष रखेंगे।
दूसरा आदेश :
वहीं, दूसरी तरफ राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की डबल बेंच जो क्रिमिनल साइट पर पूरे मैटर को देख रही थी, प्रकरण पर एसआईटी जांच का आदेश दिया है, जिसको हाई कोर्ट खुद गठित करेगी। मृतक राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए डबल बेंच के न्यायधीश (आपराधिक पक्ष पर खंडपीठ) पुलिस द्वारा मामले में जिस तरह से जांच और कार्रवाई की गई, उससे संतुष्ट नहीं दिखे। हाई कोर्ट ने पूरे पेटीशन और उसमें लगाए गए साक्ष्यों के आधार पर यह माना कि पुलिस की भूमिका प्रतिकूल है। इस पर डबल बेंच ने आदेश पारित करते हुए वादिनी के सीबीआई से जांच की मांग को तो नकार दिया, लेकिन खंडपीठ की निगरानी में एक उच्च स्तरीय एसआईटी जांच की आदेश पारित किया है।
अपने आदेश में डबल बेंच ने कहा है कि अपर मुख्य सचिव (गृह) उच्च निष्ठा वाले वरिष्ठ अधिकारियों का नाम हाई कोर्ट के पैनल को सुझाए, फिर हाई कोर्ट स्वयं जांच के लिए पैनल में दिए गए पांच अधिकारियों के नामों का चयन करेगा। पूरी जांच हाई कोर्ट की निगरानी में की जाएगी। हाई कोर्ट ने कहा है कि जांच टीम में आईजी रैंक के ऐसे पुलिस अधिकारी को शामिल किया जाए, जिसे इस तरह के जांच का अनुभव और पर्याप्त विशेषज्ञता हो।
डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान यह कहा कि पुलिस ने जानबूझकर मामले की ठीक से जांच नहीं की या नहीं कर रही है। यह घटना 24/10/2023 को घटित हुई थी, लेकिन आज तक कोई प्रभावशाली जांच इस मामले में नहीं की गई है। हाईकोर्ट ने कहा कि आज भी दायर किए गए संक्षिप्त जवाबी हलफनामे में एकमात्र अनुलग्नक पत्र 28/5/2024 का है, जो संबंधित अस्पताल को भेजा गया है, जहां पीड़ित राम बुझारत को भर्ती करवाया गया था। मामले में यह भी संज्ञान में आया है कि पुलिस निष्पक्ष और सही जांच करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
कोर्ट ने कहा कि पीड़ित लगभग छह दिनों तक जीवित रहा, लेकिन पीड़ित का मृत्यु पूर्व कोई भी बयान दर्ज करने का संदर्भ हमारे पटल पर नहीं रखा गया है, इसलिए इन परिस्थितियों में निष्पक्ष और उचित जांच के लिए हम एक उच्च स्तरीय टीम की गठन करेंगे। गृह विभाग की तरफ से उपस्थित सरकारी वकील ने पुलिस के बचाव के लिए तमाम दलीलें दी, लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को उचित नहीं माना। वहीं, हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 30/05/24 DM के न्यायिक आदेश के ठीक एक माह बाद जिला मजिस्ट्रेट बलरामपुर अरविंद सिंह के द्वारा मजिस्ट्रेट जांच के आधार पर पारित उनके आदेश 30/04/ 24 को सही माना है। उनके 35 पन्नों के आदेश को कोर्ट ने साक्ष्य के तौर पर एडमिट किया है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."