दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
चंबल का नाम सुनते ही ददुआ, जंगल और गोलियों की आवाज की याद आ जाती है। डकैतों के अनेक किस्से आज भी प्रचलित हैं। वेब सीरीज और फिल्में चंबल के डकैतों पर बन चुकी हैं। फूलन देवी का भी नाम चंबल की डकैतों में लिया जाता है, लेकिन इन सबके बीच एक ‘फूलन’ और भी है, जिनका नाम रामलली है।
ददुआ जो बोलता था, वह चित्रकूट के लोग करते थे। चंबल के इस खूंखार डकैत के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन इसी इलाके की रामलली (50 वर्ष) ने ददुआ के खिलाफ आवाज ही नहीं उठाई, बल्कि उसके खिलाफ विद्रोह भी किया।
रामलली डकैत फूलन देवी से कई मायनों में अलग हैं। चित्रकूट की रहने वाली रामलली ने हथियार जरूर उठाए हैं, लेकिन ये हथियार डकैतों से मुकाबला करने के लिए उठाए हैं। चित्रकूट की अन्य महिलाओं को रामलली डकैतों से मुकाबला करने के लिए गुर सिखा रही हैं। रामलली चित्रकूट में पाठा की शेरनी के नाम से मशहूर हैं। यही नहीं रामलली ने डकैत ददुआ तक से लोहा लिया था।
चित्रकूट जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर पूर्व में मानिकपुर ब्लॉक के हरिजनपुर गाँव जाने का रास्ता अब बन गया है, लेकिन तब ददुआ सड़क ही नहीं बनने देता था, ताकि पुलिस न आ सके। रामलली बताती हैं, ”वर्ष 2001 में ददुआ सतना के रहने वाले एक बैंक मैनेजर के लड़के को अगवा करके लाया था। लड़के को मौका मिला तो जंगल से भागकर मेरे घर पर आ गया। यह जानते हुए कि ददुआ के लोगों ने इसे उठाया है, हमने उसे अपने घर पर रखा। जब ददुआ के लोगों को यह बात मालूम हुई, तो वे लड़के को मांगने मेरे घर आ गए। हमने देने से इंकार कर दिया।”
आगे बताती हैं, ”मेरे पति इस बात की जानकारी देने मनिकपुर पुलिस थाने जा रहे थे तो रास्ते में ददुआ के लोगों ने तीन किलोमीटर दौड़ाकर पकड़ लिया और मेरे पास एक चिट्ठी भेजी कि लड़के को वापस कर दो नहीं तो तुम्हारे पति को मार डालेंगे।”
पाठा की शेरनी नाम से मशहूर रामलली इससे भी हार नहीं मानी और गाँव की महिलाओं को लेकर थाने पहुंच गई। पुलिस पर दबाव बना और वह रामलली के साथ हो गई। इस तरह किसी तरह पुलिस ने रामलली के पति को ददुआ के चंगुल से छुड़ाया।
हरिजन गांव में डकैतों का रहा आतंक
पाठा का बीहड़ डकैतों के लिए कई दशकों तक अड्डा रहा है। मानिकपुर क्षेत्र के हरिजनपुर गांव में डकैतों का आतंक रहा है। बहू-बेटियों की इज्जत डकैतों के हाथों में हुआ करती थी। हाल ये था कि कोई भी गांव का पुरुष डकैतों के खिलाफ बोल नहीं सकता था। यह सब देखकर गांव की ही रामलली ने दस्यु गैंग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और ददुआ से मोर्चा ले लिया।
प्रशासन रामलली को कर चुका है सम्मानित
बताया जाता है कि 2001 में डकैत ददुआ ने मध्य प्रदेश के सतना से एक बैंक मैनेजर को अगवा करके गांव में लाया। मैनेजर मौका पाकर भाग निकला और रामलली के घर में घुस गया। इसकी जानकारी जब ददुआ को हुई तो वह रामलली के घर जा पहुंचा और मैनेजर को उसके हवाले करने को कहा। इस पर रामलली ने मैनेजर को ददुआ के हवाले करने से मना कर दिया।
बस, यही से रामलली दस्यु गैंग के डकैतों की दुश्मन बन गई। इसके बाद प्रशासन आगे आया और रामलली का उत्साहवर्धन करते हुए आत्मरक्षा के लिए हथियार दिए। अब रामलली गांव की लड़कियों को हथियार चलाना सिखा रही हैं।
प्रशासन की ओर से हरिजन गांव में कई लाइसेंसी बंदूकें लोगों की दी गई हैं। महिलाओं को रामलली सुरक्षा के गुर सिखा रही हैं। इसको देखते हुए प्रशासन ने रामलली को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया है। रामलली को यूपी सरकार ने पाठा की शेरनी की उपाधि दी है। सम्मान के तौर पर एक राइफल दी है।
Author: samachar
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