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November 24, 2024 6:45 pm

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“कमल” के बिखरे पत्ते और “साईकिल” की धीमी गति को क्या “हाथी” की मदमस्त चाल मात देगी❓

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आत्माराम त्रिपाठी के साथ संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट

बांदा में बसपा आगे है ऐसा वोटिंग के बाद महसूस किया जाने लगा है। इसका बड़ा कारण है कि बसपा ने ब्राह्मण चेहरे मयंक द्विवेदी पर दांव खेला है। सीट पर करीब 3 लाख ब्राह्मण कैंडिडेट हैं। पटेल 1.50 लाख और कुशवाहा 1.30 लाख हैं।

सपा-भाजपा ने पटेल प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा प्रत्याशी को लेकर नाराजगी है। जातिगत समीकरण यहां सबसे ज्यादा हावी है। भगवान राम की कर्मस्थली रही है, इसलिए राम मंदिर मुद्दा यहां प्रभावी है। पीएम आवास, किसान सम्मान निधि और अन्य योजनाओं का फायदा लोगों को मिला है। वोटर इसको ध्यान में रखेंगे।

बांदा विधानसभा क्षेत्र में 13 लाख 28 हजार 339 मतदाता हैं। इनमें तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र के 346 मतदान केंद्रों में 3,22,321 मतदाता, बबेरू विधानसभा क्षेत्र के 350 पोलिंग बूथ में 342747 मतदाता, बबेरू विधानसभा क्षेत्र के 372 मतदान केंद्रों में 3,48,954 और बांदा सदर विधानसभा क्षेत्र में 320 मतदान केंद्रों पर 3,12,558 मतदाता पंजीकृत हैं। चारों विधानसभा क्षेत्र के 13 लाख 28339 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे।

चुनाव प्रचार के दौरान असल मुद्दों से नेता दूर रहे। पानी और पलायन जैसे मुद्दों को किसी ने नहीं उठाया। यहां की सबसे बड़ी समस्या अन्ना प्रथा है, जिनकी वजह से किसानों की फसल चौपट होती है और उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इन मुद्दों को छोड़कर सियासी नेता मतदाताओं को दूसरे मामलों में भटकाने की कोशिश करते रहे।

भाजपा से आरके सिंह पटेल, बसपा से मयंक द्विवेदी और सपा से कृष्णा पटेल प्रत्याशी हैं। पिछली बार 2019 में भाजपा के आरके सिंह पटेल ने जीत हासिल की थी।

डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, केशव मौर्य, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मतदाताओं पर डोरे डालें। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती ने भी अपने प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करने के लिए तरह-तरह के सब्जबाग दिखाएं। सभी स्टार प्रचारकों ने अंतिम समय में ताकत झोंककर सियासी पारा बढ़ा दिया है। अब मतदाता को फैसला करना है कि वह किसके सिर पर ताज सजाएंगे।

भाजपा के नेताओं ने यहां पर सिर्फ राम के नाम पर वोट मांगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान दो बार चुनावी रैलियां को संबोधन संबोधित किया और दोनों बार उन्होंने रैली में आए लोगों से नारे लगवाए। जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे। मतलब साफ है कि अयोध्या में हुए भव्य मंदिर निर्माण का फायदा लेने से भाजपा ने किसी तरह की कोई चूक नहीं की।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी एक बड़ी रैली को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने नौकरियों का मुद्दा उठाते हुए आरक्षित पदों को न भरे जाने का ठीकरा सरकार पर फोड़ा। उन्होंने गरीबों को दिए जा रहे राशन पर भी सवाल खड़े किए। इस दौरान उन्होंने अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने का वायदा किया। इसके पहले भी उन्होंने बुंदेलखंड राज्य के लिए प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा था। इस क्षेत्र की जनता की बहुत पुरानी मांग को दोहराकर उन्होंने मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश की।

इसी तरह से चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पहुंचे केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी राम मंदिर का मुद्दा छेड़ा और इसके लिए कांग्रेस और सपा के नेता राहुल गांधी, अखिलेश यादव को निशाने में रखा। कहा कि राम मंदिर के शुभारंभ पर इन दोनों नेताओं को न्यौता दिया गया था, लेकिन इन नेताओं ने अपने वोट बैंक के भय से अयोध्या आने से मना कर दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य से यह साबित करने की कोशिश की कि राम मंदिर ने समूची अयोध्या को देश का केंद्र बिंदु बना दिया है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी जनसभा में अपनी तरकश से कई तीर चलाएं। इसमें ब्रह्मास्त्र का काम किया। महंगाई ने, जिसे उन्होंने जनता की दुखती रग रखकर हाथ रखने का प्रयास किया।

सभा में अखिलेश बोले भाजपा की सरकार ने महंगाई बढ़ने का मूल मंत्र पारले जी के बिस्कुट से सीखा है। इसके पैकेट का आकार भले ही कम होता चला गया, लेकिन कंपनी का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। इसी प्रकार खाद की बोरी में खाद कम करने का आरोप लगाकर उन्होंने किसानों को अपने पाले में लाने की कोशिश की।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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