अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
स्वामी प्रसाद मौर्य का उत्तर प्रदेश की सियासत में दो दशक तक जलवा रहा। पहले बसपा में थे। 2017 से पहले भाजपा में आए और विधानसभा चुनाव जीतकर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को भाजपा ने बदायूं से 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ाया।
लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मौर्य ने मंत्री पद और भाजपा दोनों से इस्तीफा दे दिया।
भाजपा पर पिछड़ों की अनदेखी का आरोप लगाया। फिर वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। विधानसभा टिकट पड़रौना से चाहते थे। लेकिन अखिलेश यादव ने टिकट दिया फाजिलनगर सीट से। जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। तो भी उनके कद को देखते हुए अखिलेश यादव ने कुछ दिन बाद ही उन्हें एमएलसी बना दिया। भाजपा से बगावत उन्होंने की पर खमियाजा उनकी सांसद बेटी को भी भुगतना पड़ा।
इस बार भाजपा ने बदायूं से संघमित्रा मौर्य का टिकट काट दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य सनानतन और रामचरित मानस पर विवादास्पद टिप्पणी कर विवादों में घिरे तो अखिलेश ने भी उनसे किनारा कर लिया। नाराज होकर उन्होंने सपा और एमएलसी दोनों से त्यागपत्र दे दिया। अपनी राष्टीय शोषित समाज पार्टी बना इंडिया गठबंधन का समर्थन करने का एलान कर दिया। उम्मीद की, गठबंधन कुशीनगर लोकसभा सीट उनके लिए छोड़ देगा। अब निर्दलीय हैसियत से ही चुनाव मैदान में हैं। दल-बदल के माहिर मौर्य इस बार गच्चा खा गए।
ममता दीदी का यू टर्न
ममता बनर्जी राजनीति की बिसात पर मजबूत खिलाड़ी हैं। पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर मुख्य मुकाबला भले तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हो पर वाम मोर्चे और कांग्रेस का गठबंधन भी कई जगह मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहा है। शुरू में दीदी ने कहा था कि वे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चे से गठबंधन नहीं करेंगी क्योंकि ये दोनों राज्य में भाजपा के साथ मिलीभगत रखती हैं।
वहीं कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने लगातार कहा कि दीदी लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा से भी हाथ मिला सकती हैं। खुद ममता ने बुधवार को बयान दिया था कि दिल्ली में इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी और तृणमूल कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन देगी। लेकिन 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि दीदी ने यू टर्न ले लिया। फरमाया कि इंडिया गठबंधन उन्होंने ही बनाया था। वे इसमें थी, हैं और रहेंगी। सरकार में भी शामिल होंगी।
भाजपा को दिल्ली में बढ़त की आस
स्वाति मालीवाल के मुद्दे पर भाजपा दिल्ली में बढ़त लेने की कोशिश में जुट गई है। इस मामले में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को घेरने का बड़ा कार्ड भाजपा के हाथ में आ गया है। इसकी आड़ में भाजपा ‘नारी हूं लड़ सकती हूं’ के नारे पर विपक्षी गठबंधन को घेर रही है। भाजपा तंज कर रही है कि जहां एक राज्यसभा महिला सांसद सुरक्षित नहीं है, वहां पर गठबंधन कैसे किसी आम महिला को सुरक्षा दे पाएगा।
इसके साथ ही पहली बार ऐसा है कि दिल्ली की सातों सीट से किसी भी महिला को विपक्षी गठबंधन ने टिकट नहीं दिया है। वहीं, भाजपा की दो महिला नेता इस बार चुनाव मैदान में अपनी दावेदारी के साथ खड़ी हैं। दिल्ली का चुनावी मुद्दा इस ओर जाएगा, यह तो किसी ने नहीं सोचा था।
राजा भैया ने भाजपा की चिंता बढ़ाई
राजा भैया की भी अपनी पार्टी है-जनसत्ता दल। इसके तीन एमएलए और एक एमएलसी हैं। योगी आदित्यनाथ से राजा भैया के रिश्ते अच्छे हैं। राजा की पार्टी भाजपा से लोकसभा की एक सीट चाहती थी। जो नहीं मिली। उन्होंने राज्यसभा, विधान परिषद और राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को दिए गए अपने समर्थन का भी वास्ता दिया। राजा भैया प्रतापगढ़ और कौशांबी की लोकसभा सीटों पर असर रखते हैं।
अमित शाह ने उन्हें बंगलूर बुलाकर उनसे समर्थन मांगा था। पर बात बनी नहीं। फिर प्रतापगढ़ की अपनी सभा में अमित शाह ने मंच पर राजा भैया के लिए कुर्सी भी लगवाई। पर राजा भैया नहीं पहुंचे। उधर, अखिलेश यादव से उनका मनमुटाव खत्म हो गया। पिछले हफ्ते अपनी पार्टी की बैठक बुला राजा भैया ने एलान कर दिया कि उनका किसी से गठबंधन नहीं हुआ है।
लिहाजा कार्यकर्ता स्वतंत्र हैं कि जिसका चाहे समर्थन करें। कार्यकर्ता इसे परोक्ष रूप से इंडिया गठबंधन के समर्थन का फैसला मान रहे हैं। कौशांबी के सपा उम्मीदवार पुष्पेंद्र सरोज और उनके पिता इंद्रजीत सरोज भी राजा भैया से मिलकर पुराने गिले-शिकवे दूर कर चुके हैं। राजा भैया के संबंधी एमएलसी अक्षय प्रताप ने पुष्टि कर दी है कि इंद्रजीत सरोज के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने को राजा भैया राजी हो गए हैं। राजा भैया कौशांबी, प्रतापगढ़ की सीटों के नतीजे को प्रभावित कर अपनी अहमियत तो जरूर बनाकर रखेंगे। इससे भाजपा खेमे की चिंता बढ़ गई है।
शिंदे को ज्यादा अहमियत मिलने से अजित नाराज
महाराष्ट्र में इस बार भाजपा मुश्किल में नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें इसी सूबे में हैं। भाजपा ने शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार को गिरा दिया था। बाद में भाजपा ने शरद पवार की एनसीपी को भी तोड़ दिया। शरद पवार के भतीजे अजित पवार दूसरे उपमुख्यमंत्री बन गए। लोकसभा चुनाव जहां कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना मिलकर लड़ रहे हैं वहीं भाजपा ने शिंदे को 14 और अजित पवार को पांच सीटें दी हैं।
अजित पवार सात सीटें मांग रहे थे। चर्चा है कि महायुति में शिंदे को ज्यादा अहमियत मिलने से वे नाराज हैं। तभी दस मई के बाद प्रचार में नहीं दिखे। प्रधानमंत्री के नामांकन के लिए वाराणसी भी नहीं पहुंचे। उनके मुंबई के रोड शो में भी नहीं दिखे। नासिक की सभा में भी गैर हाजिर रहे। उनकी पार्टी के नेता सफाई दे रहे हैं कि बारिश में भीग जाने के कारण वे बीमार पड़ गए। इसीलिए एक हफ्ते से कहीं नहीं दिखे। महाराष्ट्र में चुनाव का आखिरी और पांचवा चरण 20 मई को खत्म हो जाएगा। लिहाजा इस चरण की सीटों के लिए तो वे अब कहां कर पाएंगे चुनाव प्रचार।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."