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23 February 2025 2:52 pm

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कमल को चुनौती दे रही साइकिल क्या गुल खिलाएगी यहाँ? पढिए इस खबर को

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ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव का माहौल पूरे देश में हैं। उत्तर प्रदेश में भी इसको लेकर तैयारी तेज हैं। चूंकि यूपी में चार चरणों के मतदान हो चुके हैं ऐसे में अब 20 मई को होने वाली 14 लोकसभा सीटों पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें हैं।

मोहनलालगंज लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। वैसे बीजेपी ने केंद्रीय राज्यमंत्री कौशल किशोर को तीसरी बार यहां से चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी आर के चौधरी की वजह से चुनावी समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। क्योंकि पूर्व मंत्री आर के चौधरी पुराने नेता हैं और मोहनलालगंज में उनका मजबूत वोट बैंक भी है। इसके अलावा वो बसपा और कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ चुके हैं। बता दें कि इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें हैं।

मोहनलालगंज, सरोजनीनगर, मलिहाबाद, बख्शी का तालाब और सिधौली विधानसभा सीट इस लोकसभा में आती हैं जोकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 

कांग्रेस-सपा में गठबंधन होने के कारण इस बार यह सीट फंसती हुई दिखाई दे रही है। वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और सपा सांसद डिंपल यादव ने आर के चौधरी के लिए जनसभा भी की है।

इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी से कौशल किशोर को कड़ी टक्कर मिल रही है। यहां से सपा ने आरके चौधरी, बसपा ने राजेश कुमार उर्फ मनोज प्रधान को प्रत्याशी बनाया है।

इस बार भाजपा प्रत्याशी कौशल किशोर को मलिहाबाद विधानसभा क्षेत्र में सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। यहां से उनकी पत्नी जयदेवी विधायक हैं। वहीं सपा प्रत्याशी आरके चौधरी की क्षेत्र के दलित वोट बैंक में खासी पैठ मानी जाती है। इस सीट पर दलित, कुर्मी और यादव मतदाता सबसे ज्यादा हैं। यही जीत-हार का फैसला करते हैं। 

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरे और उन्हें 60 हजार वोट ही मिले थे।

75 फीसदी मतदाता हैं ग्रामीण

मोहनलालगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसलिए इस सीट पर करीब-करीब 35 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति 0.01 प्रतिशत है। इसके अलावा इस सीट की कुल आबादी 26 लाख 95 हजार से भी ज्यादा है। जिसमें तीन चौथाई ग्रामीण आबादी शामिल है और एक चौथाई शहरी आबादी आती है। यानी 75.19 प्रतिशत ग्रामीण और 24.81 प्रतिशत शहरी आबादी आती है। इस तरह ये वोटर जिस करवट होते हैं, सीट उसी उम्मीदवार की होती है। 

हालांकि सबसे दिलचस्प बात ये है कि सुरक्षित सीट होने बाद भी बहुजन समाज पार्टी कभी खाता भी नहीं खोल पाई। इस सीट पर मौजूदा समय में बीजेपी का कब्जा है। लेकिन बीजेपी के अलावा सपा और कांग्रेस के उम्मीदवार भी चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं।

मोदी लहर में कौशल किशोर बने थे सांसद

2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मुकाबला कांटेदार रहा था और कौशल किशोर को 629,748 वोट मिले जबकि सीएल वर्मा को 539,519 वोट मिले। 

कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे आर के चौधरी को 60,061 वोट ही मिले। कौशल किशोर को 90,229 मतों के अंतर से जीत मिली। इससे पहले 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बीच यह सीट भी बीजेपी के खाते में आ गई। 

बीजेपी की ओर से मैदान में उतरे कौशल किशोर ने बसपा के आरके चौधरी को 1,45,416 मतों के अंतर से हराया था। मोहनलालगंज संसदीय सीट पर ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।

2014 से पहले सपा का गढ़ रहा मोहनलागंज

मोहनलालगंज लोकसभा सीट पर 1998 से 2014 तक समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा। 2014 में यहां से भाजपा के कौशल किशोर विजयी हुए थे। 2019 में भी उन्होंने ही जीत हासिल की थी। इस बार भी भाजपा ने फिर से कौशल किशोर पर भरोसा जताया है। 

2019 में कौशल किशोर ने बसपा के सीएल वर्मा को 90 हजार से अधिक वोटों से हराया था। उस चुनाव में बसपा और सपा के बीच गठबंधन का था और इस गठबंधन के तहत यह सीट बसपा को मिली थी। हालांकि, 2014 से पहले यह क्षेत्र सपा का गढ़ था। 

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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