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28 December 2024 7:45 am

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नेहरू से वरुण तक… सियासी ज़मीन पर गांधी परिवार की धमक… कोई 28 में तो किसी ने 63 साल में लडा चुनाव

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

देश की 18वीं लोकसभा की चुनावी राजनीति में भी गांधी परिवार की एंट्री हो गई है। बिल्कुल आखिरी समय में राहुल गांधी ने रायबरेली सीट से नामांकन कर दिया। सोनिया गांधी के संन्यास के ऐलान के बाद चर्चा थी कि प्रियंका गांधी उनकी विरासत संभाल सकती हैं। लेकिन अभी तक प्रियंका ने चुनावी पर्दापण नहीं किया है। इसके साथ ही गांधी-नेहरू परिवार की राजनीति की भी चर्चा उठी है। बीते चार पीढ़ियों से आजाद भारत की राजनीति की बागडोर संभाल रहे परिवार में किस शख्स ने किस उम्र में सियासी एंट्री की, आइए जानते हैं।

देश के आजाद होने के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरू वैसे तो 1912 में ही सियासत में आ गए थे। विदेश से पढ़ाई कर लौटने के बाद उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लिया। शुरू किया था। हालांकि आजाद भारत की पहली लोकसभा के लिए जब नेहरू निर्वाचित हुए, तब उनकी उम्र 62 साल की थी।

जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने आजादी के 8 साल के बाद 1955 में कांग्रेस की केंद्रीय कार्य समिति की सदस्य के रूप में राजनीति में कदम रखा था। 1959 में वह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं। 1964 में इंदिरा ने राज्यसभा सदस्य के रूप में अपने संसदीय सफर का आगाज किया और फिर 1967 में वह रायबरेली सीट से लोकसभा के लिए चुनी गईं। इंदिरा 1967 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, तब इंदिरा 50 साल की थीं।

इंदिरा के पति फिरोज गांधी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे। देश की आजादी के पांच साल पहले 1942 में उन्होंने शादी कर ली थी। आजादी के बाद 40 साल की उम्र में पहले आम चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर प्रतापगढ़ रायबरेली सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे। वह 1957 के दूसरे आम चुनाव में रायबरेली सीट से कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचे।

इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने 1977 में अमेठी सीट से चुनावी राजनीति की शुरुआत की। संजय की उम्र 33 साल थी और वह इमरजेंसी विरोधी लहर में चुनाव हार गए थे। वह 1980 में फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। इसी साल दुर्घटना में उनका निधन हो गया था।

संजय गांधी की मौत के बाद अमेठी सीट से उपचुनाव में कांग्रेस ने राजीव गांधी को उम्मीदवार बनाया। राजीव ने उपचुनाव के बाद फिर 1984 और 1989 में भी अमेठी सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर आए। राजीव ने 36 साल की उम्र में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। अपनी मां इंदिरा गांधी के मर्डर के बाद उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला।

मेनका गांधी की शादी इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ 1974 में हुई थी। संजय की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने अनबन के बाद मेनका को घर से निकाल दिया था। मेनका ने तब राष्ट्रीय संजय मंच नाम से अपनी पार्टी बनाई और 1984 के चुनाव में खुद अमेठी सीट से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गईं। मेनका तब 28 साल उम्र की थीं। हालांकि मेनका खुद इस चुनाव में हार गई थीं। बाद में मेनका भाजपा में शामिल हो गईं और कई बार सांसद और केंद्रीय मंत्री बनीं।

इटली की मूल निवासी सोनिया गांधी ने अपने पति राजीव गांधी की हत्या के करीब 6 साल बाद 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली। वह 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और 53 की उम्र में 1999 के लोकसभा चुनाव में अमेठी लोकसभा सीट से चुनावी राजनीति में पदार्पण किया। सोनिया 1999 में सांसद निर्वाचित होने के बाद लोकसभा में विपक्ष की नेता भी रहीं।

कांग्रेस पार्टी के युवराज के तौर पर आए राहुल गांधी ने 34 साल की उम्र में अमेठी सीट से पहली बार लोकसभा लड़ा और संसद पहुंचे। इसके बाद लगातार 3 चुनाव जीतकर उन्होंने अमेठी की जनता का प्रतिनिधित्व किया। 2019 में अमेठी सीट से चुनाव हारने के बाद राहुल ने केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा और वहां से जीत हासिल की। 

संजय गांधी के बेटे वरुण भी मां मेनका गांधी के साथ चुनावी प्रचार के समय से ही सियासत में कदम रख चुके थे। लेकिन साल 2004 में बीजेपी की सदस्यता के साथ ही वह राजनीति में सक्रिय हो गए। तेवर वाली राजनीति के साथ जल्द ही वह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। महज 29 साल की उम्र में 2009 में वह पीलीभीत लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए।

प्रियंका गांधी वैसे तो 1999 से ही सियासी चेहरा रही हैं। वह मां सोनिया गांधी के पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने के समय से ही उनकी सीट पर चुनाव प्रचार की बागडोर संभालती रही हैं।

हालांकि सक्रिय राजनीति में वह 23 जनवरी 2019 को आईं। प्रियंका को कांग्रेस ने महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन अभी 52 साल की प्रियंका गांधी अभी तक किसी चुनाव में खुद नहीं उतरी हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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