हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
शराब घोटाले में फंसे छत्तीसगढ़ के अफसरों को PMLA (मनी लांड्रिंग एक्ट) राहत दिलाने के लिए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 का जिक्र कर एक्ट पर ही उंगली उठाकर राहत की मांग की। लेकिन अदालत में उनका दांव उलटा पड़ गया।
उन्होंने अदालत की तल्ख टिप्पणी के बाद अपनी याचिका वापस लेने की गुजारिश की तो डबल बेंच के साथ ED की तरफ से अदालत में पैरवी कर रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता और उनके सहयोगी एएसजी एसवी राजू ने भी उनको आड़े हाथ लेने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
तुषार मेहता की कोर्ट से मांग थी कि वो अपने आदेश में इस तरह की याचिकाओं पर सख्त टिप्पणी करे। उनका कहना था कि अदालत को सख्त कदम उठाना ही होगा, तभी ऐसी याचिकाएं रुकेंगी। एएसजी एसवी राजू भी अदालत में सुनवाई के दौरान तुषार मेहता के सुर में सुर मिलाते दिखे।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने छत्तीसगढ़ के अफसरों अख्तर और निरंजन दास की याचिका पर टिप्पणी की कि शीर्ष अदालत एक वैकल्पिक मंच बनता जा रहा है।
बेंच ने कहा कि आरोपी हाईकोर्ट के पास जाकर वहां कानून के प्रावधानों को चुनौती देने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर समन को चुनौती दे रहे हैं। जस्टिस त्रिवेदी ने यहां तक कहा कि इस अदालत में जारी यह चलन परेशान करने वाला है।
अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि किसी कानून को चुनौती देने वाली इस प्रकार की याचिकाएं दायर करके राहत का अनुरोध करना गलत है। बेंच ने कहा कि अदालत यह टिप्पणी करने के लिए विवश है कि विजय मदनलाल फैसले के बावजूद धारा 15 व धारा 63 और पीएमएलए के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले अनुच्छेद 32 के तहत इस तरह रिट दायर करना एक गलत चलन है।
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 में विजय मदनलाल चौधरी बनाम केंद्र के मामले में मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती को लेकर ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था।
संविधान का अनुच्छेद 32 व्यक्तियों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वो सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। इसके तहत ही सिंघवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
Author: samachar
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