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November 8, 2024 8:33 pm

चुनाव जीतने के पैंतरे… किसी ने तले समोसे तो किसी ने बनाया चाउमिन, चाय बनाकर सबको पिलाई तो किसी ने खेत की फसल काटकर बोझा ढोया

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

एक जमाने में फिल्मी पर्दे पर राज करने वाली ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी अब अपना लंबा राजनीतिक सफर भी तय कर चुकी हैं। वह मथुरा से बतौर सांसद हैटट्रिक लगाने की तैयारी कर रही हैं। 

फिल्मों की तरह राजनीति में भी वह चर्चा में बने रहने के लिए अक्सर ‘स्टंट’ करते हुए नजर आती हैं। हाल में उनकी एक ऐसी ही फोटो वायरल हुई, जिसमें वह खेत में गेहूं काट रही महिलाओं के साथ हाथ में हंसिया लिए नजर आ रही हैं। हेमा ने अपनी यह फोटो खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट की। जब यह फोटो चर्चा में आई तो मथुरा से ही कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश धनगर से रहा नहीं गया। वह भी खेत में गए। उन्होंने गेहूं की फसल काटने के बाद वहीं बैठकर रोटी-चटनी खाते हुए फोटो खिंचवाई। इतना ही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान वह भूसा भी ढो रहे हैं। वह खुद को असली किसान साबित करने में जुटे हैं और हेमा मालिनी को चुनौती भी दे दी है कि वह लगातार एक घंटे तक फसल काटकर दिखाएं।

बात इन दो प्रत्याशियों तक सीमित नहीं है। लोकसभा चुनाव है तो नेताओं को आम जनता से कनेक्ट होने के लिए प्रचार का यह बेहतर तरीका नजर आ रहा है। कई नेता फसल काटते हुए अपनी फोटो खिंचवा रहे हैं। फसल काटने के साथ नेता सिर पर गेहूं का बोझा और भूसा ढो रहे हैं तो चारा भी काट रहे हैं।

कुछ नेता चाउमीन बनाते हुए और समोसे तलते हुए भी नजर आ रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे प्रतीकों के जरिए नेता जनता से कितना कनेक्ट होते हैं? इसका वोटों पर भी कुछ असर पड़ता है या फिर हंसी-मजाक का माध्यम बनकर ये दृश्य वायरल हो जाते हैं? ये नेता गेहूं की फसल से सियासत की फसल कितना काट पाते हैं?

गेहूं काटकर ढोया सिर पर बोझा

दरअसल, प्रतीकात्मक तौर पर नेता कई तरह से जनता से जुड़ना चाहते हैं। चुनाव के मौसम में यह कोशिश और तेज हो जाती है। इस समय गेहूं की कटाई का सीजन है और ज्यादातर किसान इस काम में जुटे हैं। ऐसे में नेताओं को कनेक्ट होने के लिए यही सबसे बेहतर तरीका लग रहा है।

सुभासपा नेता ओम प्रकाश राजभर भी गेहूं की फसल काटते हुए नजर आए। वह इन दिनों घोसी लोकसभा सीट पर अपने बेटे अरविंद राजभर के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इटावा लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी जितेंद्र दोहरे भी इसमें पीछे नहीं हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान उनको हरा चारा काटने वाली मशीन दिखी। वह रुके और गांव में पब्लिक के सामने चारा काटने लगे। सपा के ही मीरजापुर के प्रत्याशी राजेंद्र एस. बिंद कहां पीछे रहने वाले। उन्होंने तो गेहूं की फसल की कटाई करवाई और सिर पर बोझा भी ढोया।

चाउमीन बना रहे और समोसे भी तल रहे

लोकसभा चुनाव देशभर में हो रहे है तो प्रतीकों की यह राजनीति हर कहीं हो रही है। इस तरह की राजनीति में दो बड़े राष्ट्रीय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी बहुत आगे हैं। नुक्कड़ पर जाकर चाय पीना और ‘चाय पर चर्चा’ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही लोकप्रिय बनाया।

वहीं, राहुल गांधी कभी कुली बनकर सामान ढोते नजर आए हैं तो कभी रिंच हाथ में लेकर मोटर मैकेनिक भी बने हैं। धान की रोपाई करते हुए पिछले साल उनकी फोटो काफी वायरल हुई। इस चुनाव में भी वह हाल में मध्य प्रदेश के शहडोल पहुंचे। यहां कुछ औरतों को महुआ बीनते हुए देखा। उनके साथ महुआ बीनने लगे और बातचीत की।

अभी तक राज्यसभा सदस्य रहे और दूसरों को चुनाव लड़ाते आए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव इस बार खुद अलवर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह भी खेतों में किसानों के साथ फसल काटते हुए देखे गए।

बिहार की सारण लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी एक गांव में पहुंचे। वहां पर चाउमीन के ठेले वाले का हाथ बंटाने लगे। उन्होंने अपने हाथ से चाउमीन बनाकर सबको खिलाई।

मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन अपने पिता के लिए प्रचार कर रहे हैं। वह इस दौरान कभी समौसे तलते नजर आ रहे हैं तो कभी लोगों के साथ भजन गाते हुए।

कितनी कारगर है प्रतीकों की राजनीति?

सोशल मीडिया स्ट्रेटजिस्ट अनूप मिश्र कहते हैं कि फिल्म स्टार और नेता अक्सर इस तरह के चुनावी स्टंट करते हैं। उनको लगता है कि इस तरह भी लोग उनसे कनेक्ट हो सकते हैं। आज युवाओं के पास स्मार्टफोन हैं। उन्हें पता है कि यह चुनावी स्टंट है। वह पहले तय कर लेता है कि कहां वोट देना है।

इस प्रतीकों की राजनीति से जुड़ने वालों की संख्या बहुत कम होती है। मनोवैज्ञानिक डॉ. पीके खत्री भी कहते हैं कि इस तरह के स्टंट का कोई खास फर्क नहीं पड़ता। लोगों को मालूम है कि चुनाव के बाद नेता फिर ऐसा नहीं करने वाले।

प्रतीकों के साथ नेता-नेता में भी फर्क होता है कि वह लोगों के साथ कितनी निकटता दिखा पाते हैं। फर्क इसका भी पड़ता है कि कुछ नेता स्थायी तौर पर प्रतीकों के साथ खुद को ढाल लेते हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."