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November 2, 2024 5:03 am

जहाँ हर बार मतदाताओं का मूड बदलता रहा है…सभी दलों को मिला है यहाँ जीत का मालपुआ खाने का मौका

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

देवरिया: साल 1946 में गोरखपुर के पूर्व-दक्षिण भाग के कुछ हिस्सों को लेकर वजूद में आया देवरिया पूर्वी उत्तर प्रदेश का ऐसा जिला है, जहां का मतदाता सियासत के पेचोखम से न सिर्फ वाकिफ है बल्कि सियासत में खूब दिलचस्पी भी लेता है। 

देवरिया की जनता ने कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी इन सभी राजनीतिक दलों को बारी-बारी से आजमाया लेकिन किसी एक पार्टी को दशकों तक जिताकर देवरिया को उसका गढ़ नहीं बनने दिया है। 

बिहार की सीमा से सटा है पूर्वी उत्तरप्रदेश का जिला देवरिया। आजादी से पहले 1946 में गोरखपुर से अलग होकर यह जिला बना था। देवरिया शब्द का अर्थ होता है वह जगह जहां देवता रहते हैं। जहां उनके मंदिर होते हैं। देवरिया को कभी देवपुरिया भी कहा जाता है। इसी जिले में देवरहा बाबा ने आश्रम बनाया था। महात्मा गांधी ने देवरिया और पडरौना में 1920 में जनसभा को संबोधित किया था। 

बात राजनीति की करें तो देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव 1952 से शुरू होता है। लेकिन देबरिया की जनता ने कभी किसी एक पार्टी को सत्ता की चाबी नहीं सौंपी। यही वजह है कि देवरिया को कभी किसी राजनीतिक पार्टी का किला नहीं कहा गया। 

देवरिया लोकसभा में- देवरिया, तमकुही राज, फाजिलनगर, पथरदेवा, रामपुर कारखाना पांच विधानसभा सीट है‌। 2011 की जनगणना के जिले की आबादी 31 लाख से ज्यादा है। यहां कुल 17,54,195 मतदाता हैं इनमें 7,96,646 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 9,57,453 है।

बात लोकसभा चुनाव में मुद्दों की करें तो देवरिया जिला कभी गन्ना की खेती के लिए जाना जाता था। इस क्षेत्र में 14 चीनी मिलें हुआ करती। लेकिन गन्ने का बकाया मूल्य भुगतान नहीं होने की वजह से किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया। गन्ना उद्योग का बंद होना, बाढ़ और बेरोजगारी यहां के प्रमुख मुद्दे हैं। 

कांग्रेस पार्टी ने जरूर सबसे ज्यादा बार जीत दर्ज की है लेकिन पिछले दो चुनाव से यहां भगवा लहरा रहा है‌। 

यही वजह है कि यहां राजनीतिक दलों को बारी-बारी मौका मिलता रहा है। 90 के दशक से पहले देवरिया लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा होता था, मगर मंडल-कमंडल के उभार के बाद अब लड़ाई सपा और भाजपा के बीच सिमटकर रह जाती है। 

देवरिया लोकसभा चुनाव में मतदाता हर बार मूड बदलते रहते हैं। कभी किसी को मौका दिया तो कभी किसी और दल को जीत का स्वाद चखा दिया।

भाजपा ने इस बार भी देवरिया से अपना प्रत्याशी बदल दिया है और डॉ. रमापति त्रिपाठी की जगह भाजपा को पहली बार जीत दिलाने वाले श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी के पुत्र शशांक मणि त्रिपाठी पर भरोसा जताया है। 

कांग्रेस -सपा गठबंधन से अखिलेश प्रताप सिंह चुनाव मैदान में हैं। बसपा ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसे में लड़ाई भाजपा व गठबंधन के बीच होती नजर आ रही है। 

यहां सवर्ण मतदाता ही हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं। यहां की राजनीति बेरोजगारी, पलायन और बंद चीनी मिलों को चालू कराने के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। इस चुनाव में भी तस्वीर कुछ ऐसी ही बन रही है।

देवरिया का इतिहास देखें तो यहां कांग्रेस सर्वाधिक 5 बार जीती है। 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के विश्वनाथ राय यहां के पहले सांसद चुने गए थे। 

आखिरी बार उसे 1984 में जीत नसीब हुई थी और राजमंगल पाण्डेय चुनाव जीते थे। 90 के दशक में मंडल और कमंडल की टकराहट में कांग्रेस की उम्मीदें चूर-चूर हो गईं। तब से हुए सभी चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर ही रही। 1991 में जनता दल के मोहन सिंह यहां से सांसद बने थे।

1996 में पहली बार जीती थी भाजपा

1992 में लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई राम रथयात्रा के बाद प्रदेश में कमंडल की लहर आई तो देवरिया भी भाजपामय में हो गया।

1996 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार यहां से भाजपा जीती और श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी सांसद चुने गए। 1998 के चुनाव में सपा ने यहां से जीत दर्ज की। 1999 में भाजपा और 2004 में सपा ने जीत दर्ज किया।

2009 में खुला था बसपा का खाता

2009 के चुनाव में पहली बार यहां बसपा का खाता खुला और गोरख जायसवाल सांसद चुने गए। 2009 में यहां धनबल का खुला प्रदर्शन हुआ और गोरख जायसवाल ने मोहन सिंह और जनरल श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी जैसे नेताओं को हराकर अप्रत्याशित जीत हासिल की। 2014 में मोदी मैजिक की धूम मची और भाजपा के कद्दावर नेता कलराज मिश्र सांसद चुने गए। 

2019 में भाजपा ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी पर दांव लगाया। इस बार भाजपा के पास यहां हैटट्रिक का मौका है।

सामान्य वर्ग के वोटर हैं निर्णायक

देवरिया लोकसभा सीट पर सामान्य आबादी ही निर्णायक होती है। ब्राह्मण बहुल इस संसदीय क्षेत्र में क्षत्रिय व अल्पसंख्यकों की संख्या भी काफी अधिक है, मगर नतीजों को हमेशा सवर्ण मतदाताओं ने ही प्रभावित किया है और वे ही निर्णायक रहे हैं। यह इस बात से भी साबित होता है कि आजादी के बाद से अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, सभी चुनावों में यहां से सामान्य वर्ग के लोग ही सांसद चुने गए हैं।

सबको मिला है मौका

देवरिया संसदीय सीट से सभी प्रमुख दलों ने जीत का मजा चखा है। 1951 में कांग्रेस के विश्वनाथ राय, सरजू प्रसाद मिश्र, 1957 में सोशलिस्ट पार्टी के रामजी वर्मा, 1962, 1967, 1971 में फिर कांग्रेस के विश्वनाथ राय, 1977 में जनता पार्टी के उग्रसेन सिंह, 1980 में कांग्रेस के रामायण राय, 1984 में कांग्रेस के राजमंगल पाण्डेय, 1989 में जनता दल के राजमंगल पाण्डेय, 1991 में सपा के मोहन सिंह, 1996 में भाजपा के श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, 1998 में सपा के मोहन सिंह, 1999 में भाजपा के श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, 2004 में सपा के मोहन सिंह, 2009 में बसपा के गोरख प्रसाद जायसवाल, 2014 में भाजपा के कलराज मिश्र व 2019 में भाजपा के रमापति राम त्रिपाठी को देवरिया ने सांसद बनाया।

पिछले चुनाव के नतीजे

रमापति त्रिपाठी, भाजपा, 5,80,644

बिनोद कुमार जायसवाल, बसपा, 3,30,713

नियाज अहमद, कांग्रेस, 51,056

कुल वोटर- 17.29 लाख

पुरुष 9.34 लाख

महिला 7.95 लाख

कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24
Author: कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24

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