वल्लभ लखेश्री की खास रिपोर्ट
हम आए दिन केवल देखते और सुनते ही नहीं आ रहे हैं बल्कि इस दर्द की पीड़ा को अपने अंतस्थ में महसूस करते हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों से हर रोज सैंकड़ों सफाई कर्मचारी युवा अपने अधिकारियों के फरमान की पालना की दौरान मौत को गले लग रहे हैं। उनकी मौत आकस्मिक या दुर्घटना से नहीं जोड़ा जा सकता है। न ही हम लापरवाही का नाम दे सकते हैं। क्योंकि इस तरह की घटनाएं दिनों महिनों या सालों में एक आध बार घटित न होकर रोज़ मर्रा की बदस्तूर चलने वाला मौत का भयंकर चक्र बन गया । जो न रूके न थमे अनवरत चलता ही जाता हैं।
रूके भी कैसे? क्योंकि यहां केवल गरीबों की हत्या की जा रही हैं। जिस पर न कोई जवाब देही सुनिश्चित है, न ही कोई मानवीय मूल्यों को लेकर राष्ट्रीय आन्दोलन बन पाया और न ही मानव अधिकार आयोग ने इस पर अपना मुंह खोला।
इतना ही नहीं बल्कि कुछ सरकारी तंत्र द्वारा इस पर लीपा पोती की रश्म के दौरान मृतक परिवार को कुछ आर्थिक सहयोग या आश्रितों को नौकरी देने का आश्वासन घाव में नमक छिड़कने से ज्यादा कुछ नहीं है।
यहां सब सोची समझी सुनियोजित रणनीति के तहत इस तरह मौतों को अंजाम दिया जाता आ रहा है। क्योंकि पूर्व में इस तरह की दुर्घटनाओं के खतरे का आभास एवं पूर्व जानकारी के बावजूद भी इस तरह की मौतों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
मुल्क में आए दिन दर्जनों तथा हर सप्ताह सैकड़ों सफाई कर्मचारी नवयुवक सिविल लाइन और सेफ्टी टैंक में जहरीली गैसों में दम घुटकर तड़प तड़प के मौत के भंवर जाल में फंसते चले आ रहे हैं।
अपने वृद्ध माता पिता एवं पत्नी को अनंत दर्द के दरिया में डूबोने के साथ-साथ अपने नौनिहालों को अनाथ करके बेवक्त मौत के आगोश में हमेशा के लिए चले जाते हैं ।
सिविर लाइन सफाई के दौरान दिनांक 6/4/24 को राजस्थान की सुजान गढ़ नगर परिषद में दो सफाई वीर शहीद हो गए।जो हमेशा की तरह मानवीय मूल्यों के इतिहास पर कालिख पोत गए।हर बार सिर्फ एक ही वाकया सामने आता है कि सीवरेज योजना की मॉनिटरिंग का अभाव एवं बिना सुरक्षा उपकरणों के कारण निर्दोष गरीब लोगों की जान के साथ खिलवाड़ की जाती है ।
मेरा भारत महान, सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले, चांद पर बस्ती बसाने का सपना देखने वाले, विश्व गुरु का दम भरने वालों के पास क्या सफाई कार्य के लिए एक छोटी सी तकनीकी एवम् आधुनिक उपकरण तक नहीं है ।
अगर विश्व के अन्य देश को देखा जाए जो भारत से बहुत छोटे और अर्ध विकसित होते हुए भी इस तरह की घटनाएं वहां देखने को नहीं मिलती । सरकारें अपनी जवाबदेही एवं उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए आधुनिक उपकरण, सफाई सुरक्षा तकनीकी, प्रशिक्षण , नियमित मोनिटरिंग, आक्सीजन मास्क सेफ़्टी किट, ऑक्सीजन किट ,के माध्यम से लाखों घरों के चिरागों को बुझने से बचाया जा सकता है।
लेकिन सरकारी तंत्र की नाकामयाबी ,न्याय व्यवस्था की अनदेखी ,मीडिया की निरश्ता के फल स्वरुप इस प्रकार की मौत दर मौत पर इजाफा दर इजाफा होता जा रहा है।
यही वजह है कि आने वाला कल फिर ऐसी घटनाओं को बड़ी निर्लजता के साथ आमंत्रित करने को आतुर है ।तो दूसरी तरफ हमारा सरकारी तंत्र गहन कुंभकरण की निद्रा में सोता हुआ इस तरह की मृत्यु के तांडव से पूरी तरह से बेखबर है। यदि इसे थोड़ा सा गंभीरता से लिया जाए तो दसकों पहले ही इस तरह की मृत्यु को रोका जा सकता था ।अब भी भविष्य में इसे आसानी से रोका जा सकता है लेकिन इस देश की फितरत में गरीब की मौत का कोई मूल्य नहीं है।
Author: कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं