Explore

Search
Close this search box.

Search

November 25, 2024 8:18 am

लेटेस्ट न्यूज़

‘कमल’ तोड़ने कई मजबूत ‘हाथ’ मैदान में आने की प्रतीक्षा में ; 40 साल बाद ऐसा जोश उमड़ा कांग्रेसियों में

14 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला और सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

सपा कांग्रेस गठबंधन होने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश आ गया है। सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत देवरिया सीट कांग्रेस को मिली है। ऐसे में पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की संख्या अधिक है। बीते चुनावों में टिकट से दूर भागने वाले नेता भी इस बार अपने बूते बदलाव की गारंटी दे रहे हैं। सपा यहां मजबूती से चुनाव लड़ती आई है। ऐसे में देवरिया सीट पर लगभग आधा दर्जन नेता लोकसभा के टिकट की लाइन में हैं और सभी अपने-अपने प्रचार में जुटे हैं।

बताया जाता है कि भाजपा का टिकट घोषित होने के बाद ही कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी सूत्रों की माने तो कांग्रेस उसी दावेदार को टिकट देना चाहती है, जिसकी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी पैठ हो।

आजादी के बाद से लेकर 1984 तक देवरिया लोकसभा सीट सोशलिस्टों और कांग्रेसियों का गढ़ मानी जाती रही है। 1951 में पहली बार हुए चुनाव में यहां कांग्रेस को ही जीत मिली थी। 90 के दशक में मंडल और कमंडल की टकराहट में यहां का चुनावी मिजाज इस कदर बदला कि कांग्रेस का सफाया हो गया। यहां की लड़ाई समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच सिमट गई।

साल 1984 के चुनाव में कांग्रेस को आखिरी बार इस सीट पर जीत मिली थी और उस जमाने के दिग्गज नेता राज मंगल पांडेय चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने थे। उसके बाद लगभग सभी चुनावों में कांग्रेस तीसरे स्थान पर ही रही और उसका प्रदर्शन भी काफी खराब रहा।

1990 के बाद सपा भाजपा में होती रही लड़ाई

वैसे यहां कि चुनावी इतिहास देखें तो अभी तक कांग्रेस को यहां पांच बार जीत मिली है। दो बार सोशलिस्ट पार्टी और एक बार जनता दल चुनाव जीती है।

साल 1990 के बाद से 2014 तक यहां की लड़ाई सपा और भाजपा के बीच रही और समाजवादी पार्टी से मोहन सिंह और भाजपा से लेफ्टिनेंट जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी सांसद होते रहे। साल 2009 में पहली बार यहां बसपा का खाता खुला और गोरख प्रसाद जायसवाल एमपी बने। साल 2014 से अब तक लगातार इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा है। 

साल 2014 के चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता कलराज मिश्र चुनाव जीते। साल 2019 में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी सांसद बने।

इस लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन के चलते कांग्रेस के टिकट के दावेदारों की संख्या बढ़ गई है। उनमें पूर्व विधायक अखिलेश सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, पूर्व जिला अध्यक्ष सुयश मणि त्रिपाठी, जाने-माने उद्योगपति अजवार अहमद और इंटक के जिलाध्यक्ष रहे पुरुषोत्तम नारायण सिंह प्रमुख हैं। अखिलेश प्रताप सिंह जिले की रुद्रपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं और कांग्रेस के प्रवक्ता हैं। अजय कुमार लल्लू देवरिया लोकसभा क्षेत्र के फाजिलनगर विधानसभा से दो बार विधायक और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।

कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रहे सुयश मणि की पहचान तेज तर्रार युवा नेता के रूप में है। मणि जिला पंचायत सदस्य रहे हैं और विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। युवाओं में उनकी अच्छी पकड़ है। 

अजवार अहमद जाने माने उद्योगपति हैं और देवरिया से लेकर मुंबई तक इनका बड़ा कारोबार है। लोगों के बीच इनकी पहचान समाजसेवी के रूप में है। अजवार की माने तो पार्टी ने अगर मौका दिया तो देवरिया सीट वह इस बार कांग्रेस की झोली में डाल देंगे।

इंटक के जिलाध्यक्ष रहे पुरुषोत्तम नारायण सिंह की पहचान जनसेवक और पुराने कांग्रेसी हैं । कांग्रेस के बुरे दिनों में भी इन्होंने पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। वैसे पार्टी सूत्रों की माने तो भाजपा का उम्मीदवार तय होने के बाद ही पार्टी अपना प्रत्याशी घोषित करेगी।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़