पाणिनि आनंद
एक दौर था जब भारत की राजधानी दिल्ली यहाँ आए दिन होनेवाले राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलनों और मुशायरों के लिए जानी जाती थी पर अब लोगों को न तो ऐसे आयोजन सुनने को मिलते हैं और न ही सुनने वाले.
हाँ, मगर कुछ ऐसी ही हो चली दिल्ली में जब एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुशायरा आयोजित हुआ तो सुनने वालों ने फिर से अपनी एक शाम दक्षिण एशिया और दुनिया के तमाम हिस्सों से आए शायरों के नाम कर दी.
मौका था दिल्ली में जश्न-ए-बहार के पाँचवें आयोजन का, जिसमें भारत और पाकिस्तान के अलावा चीन और सऊदी अरब के शायरों ने भी शिरकत की.
जश्न-ए-बहार
शाम को जब मुशायरा जमा तो हज़ारों की संख्या में सुनने वाले भी पहुँचे और साथ ही तमाम मशहूर शख़्सियतें भी. मसलन मक़बूल फ़िदा हुसैन, पाक उच्चायुक्त अहमद अज़ीज़ खाँ और प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन जैसे कितने ही लोग मुशायरे में पहुँचे.
एमएफ़ हुसैन
मुशायरे में हुसैन भी पहुँचे और देर रात तक पूरा मुशायरा सुना.
पर लोगों के लिए तो सबसे ज़्यादा अहमियत शायरों की ही थी. पाकिस्तान से आईं ज़हरा निगार और फ़हमीदा रियाज़ की शायरी ख़ासी पसंद की गई तो भारत के जाने माने शायर वसीम बरेलवी और निदा फ़ाज़ली और मुनव्वर राना और गौहर रज़ा को लोगों ने काफ़ी सराहा.
सऊदी अरब से आए उमर सलीम अमअल अदरूस और चीन से आए शायर झांग शिक्शुआन की शायरी को भी ख़ूब पसंद किया गया.
बदलेगी फ़िज़ा
इन तमाम शायरों ने जिस एक बात पर ज़ोर दिया, वो थी पड़ोसी मुल्कों और संप्रदायों के बीच भाईचारे की.
मुशायरा
साउदी अरब से आए उमर सलीम अमअल अदरूस की शायरी भी लोगों को पसंद आई.
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भारत में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अहमद अज़ीज़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस तरह की कोशिशें दोनों ओर से होती रही हैं और इससे संबंधों को सुधारने की दिशा में काफ़ी मदद मिलती है.
यह पूछने पर कि ऐसा तो दोनों मुल्कों के बीच दो दशकों से हो रहा है, फिर भी सियासी संबंध क्यों नहीं सुधर रहे, उन्होंने मुस्कराकर कहा, “इस बार ऐसा नहीं होगा.”
पर सवाल तो ये है कि देशों के बीच संबंधों से लेकर आवाम की आवाज़ तक की तमाम उम्मीदों और ज़िम्मेदारियों से इतर मुशायरे और कवि सम्मेलनों की परंपरा ख़ुद को कितना और कब तक क़ायम रख पाएगी.
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."