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November 22, 2024 5:05 pm

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राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के चक्रव्यूह के सामने विपक्षी हो गए फेल, लेकिन कैसे हो गया ये सब? पढिए पूरी खबर

11 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

कल तीन राज्यों में 15 राज्यसभा सीटों पर आए नतीजों ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (SP) को तगड़ा झटका दिया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने चुनाव जीतने के लिए ऐसा चक्रव्यूह बनाया जिसमें विपक्षी दल उलझकर रह गए। कुल 56 सीटों में से 41 सीटों पर कैंडिडेट निर्विरोध चुने गए थे। 

बीजेपी ने यूपी में एसपी और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को चौंकाते हुए दो अतिरिक्त सीट जीत ली। दरअसल, इसके लिए बीजेपी ने बड़ी तैयारी की थी। ये एक दिन की घटना नहीं है। बीजेपी ने विपक्ष की कमजोर नस को भांपा और फिर चक्रव्यूह की रचना कर दी।

यूपी में जीत के लिए ‘राम भक्त’ प्लान

यूपी में 10 सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव होना था। आंकड़ों के हिसाब से यहां बीजेपी 7 और एसपी 3 कैंडिडेट जिता सकती थी। लेकिन बीजेपी ने ऐन वक्त पर अपना आठवां कैंडिडेट उतार दिया। इससे मामला रोचक हो गया। बीजेपी के इस दांव से एसपी के लिए मुश्किल हो गई। 

बीजेपी ने आठवें कैंडिडेट की घोषणा के साथ ही मिशन में जुट गई। बीजेपी के आठवें कैंडिडेट संजय सेठ की जीत में राम मंदिर का मुद्दा काफी अहम रहा। पार्टी ने सबसे पहले वैसे विधायकों पर नजर टिकाई जो 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का खुलकर समर्थन किया था। इनमें एसपी के विधायक राकेश सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी और मनोज पांडेय शामिल थे। 

राज्यसभा चुनाव रिजल्ट के बाद अभय सिंह ने एक्स पर लिखा, ‘वोटिंग पारदर्शी तरीके से हुई। हमने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट दिए। जब राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई और विधानसभा अध्यक्ष ने सभी विधायकों को रामलला के दर्शन के लिए बुलाया तब एसपी ने अपने विधायकों को वहां जाने से रोक दिया। ये सही नहीं था।

सीएम योगी ने खुद संभाला था ‘मिशन एसपी’ का मोर्चा

बीजेपी की तरफ से मोर्चा खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखा था। उनके अलावा वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना, जेपीएस राठौर, यूपी बीजेपी चीफ भूपेंद्र चौधरी और संगठन महासचिव धर्मपाल भी इस मिशन में शामिल थे। 

बीजेपी के एक नेता ने बताया कि वैसे विधायक जो अपनी पार्टी की चुप्पी के बाद भी राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का पुरजोर समर्थन किया, उनसे संपर्क साधा गया। इसके बाद ज्यादातर ने बीजेपी के आठवें कैंडिडेट को समर्थन करने का ऐलान किया। 

एसपी के सात विधायक अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह, राकेश पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, मनोज पांडेय, आशुतोष मौर्य और पूजा पाल थे। महाराना प्रजापति तबीयत खराब होने की बात कहकर वोट देने नहीं पहुंचीं।

बीएसपी, राजा भैया को भी साध लिया

एसपी विधायकों के वोट पक्की करने के बाद बीजेपी ने राजा भैया का रुख किया। सीएम योगी खुद राजा भैया से मिले और उसके कुछ देर बाद ही कुंडा के विधायक ने बीजेपी कैंडिडेट को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। इसके बाद बीजेपी ने बीएसपी के एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह को साधा। 

सूत्रों ने बताया कि सिंह ने बीएसपी चीफ को बीजेपी को वोट देने के लिए मनाया और अंत में मायावती ने भी उमाशंकर सिंह को बीजेपी कैंडिडेट को वोट देने के लिए हरी झंडी दे दी। इस तरह बीजेपी ने यूपी में 8 सीटों पर जीत दर्ज कर ली।

हिमाचल में यूं चुपचाप चला ‘ऑपरेशन लोटस’

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के पास 40 विधायक हैं जबकि बीजेपी के पास महज 25 विधायक थे। तकनीकी रूप से बीजेपी के पास राज्यसभा कैंडिडेट को जिताने के लिए पर्याप्त नंबर तक नहीं थे। 

राज्यसभा में जीत के लिए 35 विधायकों की संख्या चाहिए। ऐसे में कांग्रेस के पास जीत के लिए नंबर आसान था। लेकिन बताया जा रहा है कि बीजेपी को कांग्रेस में चल रही अंदरूनी खींचतान की भनक थी। भगवा दल ने चुपचाप नाराज विधायकों से संपर्क साधना शुरू किया। संकेत मिलते ही बीजेपी ने हिमाचल से भी कैंडिडेट हर्ष महाजन का ऐलान कर दिया। 

कांग्रेस के 6 विधायकों और 3 निर्दलीय ने राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग कर दी और पूरा खेल ही बदल गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उसके 6 विधायकों का बीजेपी ने अपहरण कर लिया। हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने अंदरूनी मतभेद के कारण हारी है।

बीजेपी ने यूं किया ‘हिमाचल विजय’

बीजेपी ने वैसी जगह ये जीत दर्ज की है जहां कुछ भी उसके फेवर में नहीं था। दरअसल, उसके कैंडिडेट हर्ष महाजन पहले कांग्रेस में ही हुआ करते थे। वो आजतक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। 

बीजेपी ने कांग्रेस से आए ही नेता को खड़ा कर सत्तारूढ़ दल को सकपका दिया। इसके बाद पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने कांग्रेस में सेंध लगाने का मिशन शुरू किया। हर्ष ने भी इसके लिए पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव वाले दिन तक कांग्रेस को अपने कैंडिडेट अभिषेक मनु सिंघवी के जीत का भरोसा था। लेकिन क्रॉस वोटिंग के खेल में कांग्रेस पिछड़ गई। बीजेपी ने कांग्रेस में नाराज चल रहे विधायकों को अपने कैंडिडेट हर्ष महाजन के पक्ष में वोटिंग करने के लिए मना लिया। इसके अलावा 3 निर्दलीय को भी भगवा दल ने साध लिया। इसके साथ ही बीजेपी को 9 अतिरिक्त वोट मिल गए। गिनती के आखिर में सिंघवी और हर्ष को 34-34 वोट मिले।

किस्मत ने भी हिमाचल में दे दिया कांग्रेस को धोखा

सब राज्य में मुकाबला टाइ हो गया तो परिणाम के लिए ड्रॉ की जरूरत आन पड़ी। लेकिन यहां किस्मत ने कांग्रेस के साथ खेल कर दिया। चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 75 (4) के तहत कैंडिडेट को बराबर वोट मिले की स्थिति में ड्रॉ का सहारा लिया जाता है। इसके लिए रिटर्निंग अफसर कैंडिडेट के नाम वाली पर्चियों को एक बॉक्स में रखता है। पर्ची निकालने से पहले उसे अच्छे तरह मिला दिया जाता है। 

लेकिन यहां ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि जिस कैंडिडेट के नाम वाले की पर्ची बाहर निकलती है वो चुनाव हार जाता है और जिसके नाम की पर्ची पेटी में रह जाती है वो मुकाबला जीत जाता है। सिंघवी के साथ यही हुआ, पेटी से उनके नाम की पर्ची निकली और वो मुकाबला हार गए।

रणनीति, कांग्रेस-एसपी की अंदरूनी कलह में बीजेपी विजेता

15 में से 10 सीटों पर जीत में बीजेपी की रणनीति काफी कारगर रही। उधर, एसपी कैंडिडेट आलोक रंजन और कांग्रेस कैंडिडेट सिंघवी की हार के पीछे पार्टी की अंदरूनी कलह भी जिम्मेदार रही है। 

एसपी अपने विधायकों को साध नहीं पाई वहीं कांग्रेस के विधायक हिमाचल के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू से नाराज चल रहे थे। नाराजगी इतनी थी कि उन्होंने बीजेपी को वोट किया।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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