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November 23, 2024 1:53 am

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गढकेलवा…जानते हैं आप…लजीज व्यंजनों का ठिकाना बनेगा छग

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हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

रायपुरः छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद चखने लोग राजधानी में बने गढ़कलेवा पहुंचते हैं। इसे और आकर्षक व सुविधायुक्त बनाने की पहल होगी। छत्तीसगढ़ी व्यंजन के लिए मशहूर है राजधानी का गढ़कलेवा। नवगठित बीजेपी सरकार के आदिम जाति कल्याण मंत्री रामविचार नेताम ने गढ़कलेवा पहुंचकर जायजा लिया और इसे अधिक आकर्षक और सुविधायुक्त बनाने की जरूरत बताई।

 उन्होंने अधिकारियों से कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही अन्य प्रदेशों के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। छत्तीसगढ़ी खान-पान से उन्हें परिचित कराने के लिए यहां और सुविधाएं बढ़ाई जाएं। साथ ही गढ़कलेवा परिसर में साफ-सफाई के साथ-साथ आकर्षक कलाकृतियों से सजावट की जाए।

आदिम जाति कल्याण मंत्री नेताम ने खुद गढ़कलेवा में आम नागरिकों, युवाओं और प्रबुद्धजनों के साथ चिला, फरा, लाई के लड्डू, ठेठरी, खुरमी सहित अन्य छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का आनंद लिया। उन्होंने अलग-अलग स्टॉलों पर जाकर तैयार हो रहे व्यंजनों की जानकारी ली। साथ ही गढ़कलेवा को आकर्षक बनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया।

नेताम ने गढ़कलेवा संचालित कर रहे स्व-सहायता समूह के प्रबंधकों से कहा कि नाश्ता और खाना में दोना-पत्तल का इस्तेमाल किया जाए। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। ऐतिहासिक कलाकृतियों को स्थापित कर गढ़कलेवा को और खुबसूरत बनाया जाए।

गढ़कलेवा नामक इस आस्वाद केंद्र पर मुख्यतः छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले सूखे और गीले नाश्ते तथा भोजन की व्यवस्था रहती है। इस स्थल की स्थापना जनवरी 26, 2016 को की गई थी। इस केंद्र की स्थापना छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति विभाग का, खान-पान को भी पारंपरिक संस्कृति का एक अटूट हिस्सा मानकर, उसके संरक्षण के लिए उठाया गया एक माना जा सकता है। आज न सिर्फ भारतवर्ष वरन पूरे विश्व में खानपान का बाजार बहुत शक्तिशाली और संगठित हुआ है, और यह छत्तीसगढ़ में भी सर्वत्र देखने के लिए मिलता है जहां भांति-भांति के रेस्टोरेंट होटल, ढाबे, खोमचे, स्नैक कॉर्नर इत्यादि हमें देखने को मिलते हैं। किंतु इनमें कहीं पर भी पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खान-पान या भोजन प्राप्त नही होता। इन सभी स्थानों पर आमतौर पर सामान्य उत्तर भारतीय नाश्ता और भोजन तथा मिठाइयां उपलब्ध रहती हैं लेकिन छत्तीसगढ़ी खानपान के लिए कोई जगह नहीं है|

छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के बाद पिछले 18 सालों में राज्य काफी आगे बढ़ा है। यहां के शहर, कस्बों और गांवों ने अपने आकार और जनसंख्या, सभी में वृद्धि की है, और इसके साथ ही व्यापार-व्यवसाय का भी बहुत विस्तार हुआ है, जिसमें खान-पान से संबंधित व्यापार का एक प्रमुख स्थान है। किन्तु उनमें छत्तीसगढ़िया खानपान का फिर भी कोई व्यावसायिक केंद्र नहीं खुला। देश और सभी राज्यों की सरकारें अपने-अपने राज्यों की पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन, प्रचार प्रसार और लोकप्रियकरण के लिए कई तरह की गतिविधियां संचालित करती हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य ने भी इस और ध्यान दिया और इस नवाचारी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गढ़कलेवा के रूप मे एक पूर्ण छत्तीसगढ़ी खानपान स्थल की स्थापना की है, जिसके माध्यम से पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खानपान को आम जनता को उपलब्ध कराने और खानपान से संबंधित पारंपरिक ज्ञान पद्धतियों को सहेजने के काम की शुरुआत की है।

गढ़कलेवा परिसर में खाद्य पदार्थों को परोसने के लिए भी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाले कांसे और पीतल के बर्तनों की व्यवस्था की गई| पूरे गढ़कलेवा परिसर में कुछ भी गैर ग्रामीण न हो, इस विचार से इसे प्लास्टिक से मुक्त रखा गया| इस परिसर की एक विशेषता यह भी है किसके उद्घाटन फलक को छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा गया है, जो शायद समूचे छत्तीसगढ़ राज्य में एकमात्र छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा गया उद्घाटन फलक है|

छत्तीसगढ़ राज्य ने भी इस और ध्यान दिया और इस नवाचारी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गढ़कलेवा के रूप मे एक पूर्ण छत्तीसगढ़ी खानपान स्थल की स्थापना की है, जिसके माध्यम से पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खानपान को आम जनता को उपलब्ध कराने और खानपान से संबंधित पारंपरिक ज्ञान पद्धतियों को सहेजने के काम की शुरुआत की है।

गढ़कलेवा परिसर में खाद्य पदार्थों को परोसने के लिए भी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाले कांसे और पीतल के बर्तनों की व्यवस्था की गई| पूरे गढ़कलेवा परिसर में कुछ भी गैर ग्रामीण न हो, इस विचार से इसे प्लास्टिक से मुक्त रखा गया| इस परिसर की एक विशेषता यह भी है किसके उद्घाटन फलक को छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा गया है, जो शायद समूचे छत्तीसगढ़ राज्य में एकमात्र छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा गया उद्घाटन फलक है। 

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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