दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर के उद्घाटन को अब गिनती के दिन बचे हैं। मंदिर निर्माण के पहले चरण का काम लगभग पूरा हो गया। अब 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से जुड़ी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
बीजेपी से राज्यसभा सांसद विनय कटियार अपने विवादित बयानों के कारण अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। वे बजरंग दल (विश्व हिंदू परिषद की यूथ विंग) के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। कटियार का जन्म 11 नवंबर 1954 को कानपुर में हुआ था। कुर्मी समुदाय से आने वाले विनय कटियार के पिता का नाम देवी चरण कटियार और मां श्याम कली है। उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में बीए की डिग्री ली है।
विनय कटियार ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से की। 1970 से 1974 के बीच वो एबीवीपी की उत्तर प्रदेश ईकाई के संगठन सचिव रहे। 1974 में जयप्रकाश नारायण के बिहार आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1980 में वो आरएसएस के प्रचारक बने। 1982 में हिंदू जागरण मंच की स्थापना की और 1984 में रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए बजरंग दल की स्थापना की।
2002 से 2004 के दौरान यूपी बीजेपी के अध्यक्ष रहे। इसके बाद 2006 में बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी भी बने। 1991, 1996 और 1999 में फैज़ाबाद सीट से तीन बार लोकसभा के लिए भी चुने गए। वर्तमान समय में वो राज्यसभा सांसद हैं।
कटियार राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा थे। बातचीत में उन्होंने मंदिर आंदोलन, लालकृष्ण आडवाणी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के योगदान और बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी भूमिका को याद किया। बता दें कि फैजाबाद के पूर्व सांसद विनय कटियार 32 नामित आरोपियों में से एक थे। बाद में मस्जिद विध्वंस मामले में बरी कर दिए गए।
राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन से कब जुड़े कटियार?
इस सवाल के जवाब में विनय कटियार ने बताया कि वह आंदोलन से जुड़े नहीं, बल्कि उन्होंने ही आंदोलन शुरू किया था। वह कहते हैं, ‘मैंने ही आंदोलन शुरू किया और अन्य लोगों को भी इससे जोड़ा। मैं एक आंदोलनकारी नेता हूं और उन लोगों में से एक हूं जिन्होंने आंदोलन की नींव रखी। बाद में और भी लोग जुड़ गए। अब मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। यह आगे बढ़ेगा और मंदिर जल्द ही बनकर तैयार होगा।
बजरंग दल की स्थापना क्यों की गई थी?
विनय कटियार ने बजरंग दल की स्थापना की थी। उनसे पूछा गया कि क्या राम मंदिर आंदोलन के लिए ही बजरंग दल का गठन हुआ था? जवाब में कटियार ने कहा, ‘बजरंग दल का गठन हिंदू समाज के जागरण के लिए किया गया था। उसे राम मंदिर आंदोलन से जुड़ना ही था। यह स्वाभाविक था। दल ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। मैंने अयोध्या में अपने घर पर बजरंग दल की स्थापना की और संगठन ने वहीं से काम करना शुरू किया। बाद में, यह विश्व हिंदू परिषद (VHP) की युवा शाखा बन गई।’
‘मैंने उस जर्जर ढांचे को हटा दिया’
विनय कटियार से अगला सवाल था कि 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई तो वह कहां थे? सवाल सुनते ही कटियार ने पहले तो यह स्पष्ट किया कि बाबरी मस्जिद नाम की कोई इमारत नहीं थी। वह कहते हैं, सबसे पहले तो यह कि उस दिन कोई ‘बाबरी विध्वंस’ नहीं हुआ था। बाबर ने कुछ भी नहीं बनाया। उसने हमारा ही पुराना मंदिर हड़प लिया। वह ढांचा जर्जर हो गया था और राम मंदिर बनाने के लिए उसे हटा दिया गया था।’
राम मंदिर की प्रतिकृति की ओर इशारा करते हुए हुए कटियार ने आगे कहा, ‘यह मॉडल है और मंदिर बिल्कुल इसी तरह बनाया जा रहा है। मैं मंदिर स्थल पर था। वहां कोई विवादित ढांचा नहीं था। वह एक मंदिर था। मैंने उस जर्जर ढांचे को हटा दिया। अब वहां पत्थरों का मंदिर बन रहा है।’
विनय कटियार व अन्य पर क्या थे आरोप?
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के आरोपियों में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और बजरंग दल संस्थापक विनय कटियार जैसे नेता शामिल थे।
आरोपियों के खिलाफ सीबीआई की मुख्य दलील यह थी कि इन नेताओं ने अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए साजिश रची और कारसेवकों को उकसाया।
दूसरी ओर अपने बचाव में आरोपियों ने दलील दी है कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वे दोषी हैं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक प्रतिशोध के तहत उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया।
इस मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई थी और एजेंसी ने विशेष अदालत के समक्ष सबूत के तौर पर कुल 351 गवाह और लगभग 600 दस्तावेज पेश किए थे। शुरुआत में 48 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे, लेकिन लगभग तीन दशकों तक चली सुनवाई के दौरान उनमें से 16 की मृत्यु हो गई।
विशेष अदालत को यह तय करना था कि 1992 में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार और अन्य का हाथ था या नहीं।
अदालत ने फैसले में क्या कहा?
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के जज एसके यादव ने 30 सितंबर, 2020 को फैसला सुनाया था। जज ने पहले ही सभी आरोपियों को फैसले वाले दिन अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था। सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था।
6 दिसंबर 1992 को दोपहर 12:00 बजे तक सब कुछ सामान्य था और अशोक सिंघल कारसेवकों से प्रतीकात्मक कारसेवा के लिए सरयू से रेत और पानी लाने को कह रहे थे। ऐसा कारसेवकों के दोनों हाथों को व्यस्त रखने के लिए किया गया था ताकि वे संरचना को नुकसान पहुंचाने के लिए कोई उपकरण न ला सकें। जब सिंघल ने प्रतीकात्मक कारसेवा की घोषणा की तो एक वर्ग भड़क गया और विवादित ढांचे पर चढ़ गया। सिंघल ने उग्र समूह को नीचे उतरने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने उन पर पथराव करना शुरू कर दिया। उन पर हमला भी किया।
पथराव में शांतिपूर्वक अपना काम कर रहे कई कारसेवक घायल हो गए। ऐसे में कोई यह कैसे मान सकता है कि दोनों एक ही समूह के थे जबकि उनके पास एक ही लक्ष्य नहीं था? आरएसएस और विहिप के स्वयंसेवक महिलाओं, बुजुर्गों की व्यवस्था का ध्यान रख रहे थे। कारसेवकों का जो वर्ग अचानक हिंसक हो गया और ढांचे को गिराने लगा, उसे केवल ‘अराजक तत्व’ ही कहा जा सकता है।
सीबीआई यह साबित नहीं कर सकी कि सभी 49 आरोपी 6 दिसंबर, 1992 को होने वाली कारसेवा पर चर्चा करने के लिए एक निश्चित स्थान और समय पर एक साथ इकट्ठा हुए थे। सीबीआई द्वारा पेश किए गए गवाहों के बयान में विरोधाभास थे। उनमें से कई तो घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थे।
अयोध्या में अप्रिय घटनाओं की आशंकाओं के बारे में 2 दिसंबर, 1992 की एलआईयू रिपोर्ट और शहर में पाकिस्तान समर्थित राष्ट्रविरोधी व्यक्तियों की उपस्थिति के बारे में 5 दिसंबर, 1992 की केंद्रीय गृह विभाग की रिपोर्ट की जांच नहीं की गई।
जहां तक नफरत फैलाने वाले भाषणों की बात है, तो सीबीआई यह साबित नहीं कर सकी कि किस आरोपी ने क्या कहा और कौन से नारे लगाए जिससे सांप्रदायिक दुश्मनी पैदा हो सकती थी। जो वीडियो कैसेट प्रस्तुत किए गए हैं, उन्हें संपादित और छेड़छाड़ किया गया है। इसे संबंधित गवाहों ने स्वीकार कर लिया है।
नवंबर 1990 में जब पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चलाई तब विनय कटियार कहां थे?
कटियार बताते हैं कि वह गोलीकांड वाले दिन भी कारसेवकों के साथ ही थे। वह कहते हैं, ‘दो भाई शरद कोठारी और राम कुमार कोठारी की मौत हो गई। सीआरपीएफ ने उन्हें मार गिराया। उस घटना के बाद मैंने उस दिन के लिए कारसेवा बंद कर दी। लेकिन अगले दिन इसे फिर से शुरू कर दिया। कारसेवा निर्बाध रही।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."