आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश कांग्रेस कुछ वर्षों के अंतराल में बड़े बदलावाें के दौर से गुजरती रही है। इसी क्रम में ताजा बदलाव प्रियंका गांधी की जगह अविनाश पांडेय को यूपी प्रभारी बनाए जाने से शुरू हुआ है। इससे पहले पार्टी ने अपने पुराने अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपी थी।
माना जा रहा है कि बदलाव का ये सिलसिला अभी और आगे बढ़ेगा और संगठन में इसका असर देखने को मिलेगा। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि यूपी में कांग्रेस को क्या इससे कुछ फर्क पड़ेगा? जो काम प्रियंका गांधी न कर सकीं, अविनाश पांडेय कर पाएंगे?
याद कीजिए 2018 आते-आते प्रियंका गांधी तेजी से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने लगी थीं। इससे पहले तक वह रायबरेली और अमेठी में ही सक्रिय रहती थीं। 2019 की शुरुआत में पार्टी नेतृत्व ने प्रियंका गांधी और ज्याेतिरादित्य सिंधिया को यूपी प्रभार सौंप दिया।
ज्योतिरादित्य यूपी में न के बराबर ही आए और बाद में वह भाजपा में चले गए। इसके बाद प्रियंका गांधी को ही पूरे यूपी का प्रभारी बना दिया गया। प्रियंका लखनऊ में कैंप करने लगीं। उन्होंने सोनभद्र के उम्भा कांड के पीड़ितों के लिए धरना प्रदर्शन किया। लखीमपुर खीरी कांड के विरोध में प्रदर्शन, नजरबंदी झेली।
प्रियंका गांधी ने आंदोलन के आक्रामक रुख से पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की। वह योगी सरकार के खिलाफ हर मुद्दे पर मोर्चा लेती रहीं। यूपी में अजय कुमार लल्लू का प्रदेश अध्यक्ष पर चयन को भी प्रियंका की ही पसंद माना गया। लखनऊ में आए दिन कांग्रेस के धरना प्रदर्शन की खबरें आने लगीं।
इसके बाद प्रियंका गांधी ने 2022 विधानसभा चुनाव में ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ कांग्रेस प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। महिलाओं के मुद्दे पर प्रियंका ने बड़ी लकीर खींचते हुए 155 टिकट महिलाओं को दिए। ये बड़ी छलांग थी क्योंकि पिछले 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 12 महिलाओं को टिकट दिया था।
लेकिन प्रियंका का ये प्रयोग पूरी तरह फेल साबित हुआ और पार्टी से सिर्फ आराधना मिश्रा मोना ही अकेली महिला विधायक जीतीं। वह लगातार जीतती रही हैं। 2017 में अराधना मिश्रा के साथ अदिति सिंह ने भी कांग्रेस से जीत दर्ज की थी लेकिन अब अदिति भाजपाई हो चुकी हैं।
यूपी में प्रदर्शन से छाई मायूसी
बहरहाल, यूपी में कुल 2 सीटों पर जीत के निराशाजनक प्रदर्शन का असर ये हुआ कि गांधी परिवार पर यूपी की सियासत को लेकर निराशा साफ दिखने लगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में इसकी साफ झलक मिली, जब दक्षिण से उत्तर तक पैदल यात्रा कर रहे राहुल गांधी यूपी के कुछ बॉर्डर जिलों से ही गुजरे।
हाल ही में कांग्रेस की बैठक में यूपी के नेताओं से राहुल गांधी ने ये तक कह दिया कि यूपी के नेताओं में उत्साह की कमी है। यहां तीन ऐसे नेता नहीं हैं, जो मुख्यमंत्री बनना चाहते हों और उसके लिए कुछ भी करने का माद्दा रखते हों। फिर इस बैठक के बाद पार्टी हाईकमान की तरफ से ताजा फरमान आया और प्रियंका गांधी की जगह अविनाश पांडेय को यूपी प्रभारी बना दिया गया।
अपनी नियुक्ति के बाद अविनाश पांडे ने एक्स पर लिखा कि मुझ पर दिखाए गए विश्वास के लिए असीम कृतज्ञता के साथ कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, हमारे नेता राहुल गांधी जी, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल जी और उस विश्वास का सम्मान करने के दृढ़ संकल्प के साथ, मैं विनम्रतापूर्वक उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव के रूप में नियुक्ति स्वीकार करता हूं।
कौन हैं अविनाश पांडे
नागपुर के रहने वाले अविनाश पांडे पेशे से वकील हैं। उन्होंने पार्टी की छात्र शाखा से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की। 2008 में वह राज्यसभा चुनाव लड़े लेकिन एक वोट से हार गए। इसके बाद 2010 में उन्हें महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद चुनाव गया।
अविनाश पांडे को राहुल गांधी कैंप का माना जाता है। अविनाश पांडे तीन साल पहले 2020 में राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही कुर्सी की जंग के दौरान चर्चा में आए थे।
दरअसल उस साल जुलाई में सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने बगावत कर दी थी। बाद में प्रियंका गांधी ने दखल दी और दोनों में सुलह हुई, जिसके बाद मामला शांत हुआ। इसके बावजूद गहलोत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करना पड़ा।
इस पूरे मामले में आखिरकार तत्कालीन राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडेय पर गाज गिरी थी। उन्हें कांग्रेस आलाकमान ने 16 अगस्त 2020 में प्रदेश प्रभारी पद से हटा दिया गया।
दरअसल अविनाश पांडे पर पायलट कैंप की तरफ से आरोप लगा था कि वह गहलोत गुट का समर्थन कर रहे हैं। पायलट गुट का कहना था कि अगर अविनाश पांडे उनकी बात कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा देते तो बगावत की नौबत नहीं आती। फिर जनवरी, 2022 में आखिरकार उनकी वापसी हुई और वह झारखंड के प्रभारी महासचिव नियुक्त किए गए।
वैसे उत्तर प्रदेश से अविनाश पांडे अनभिज्ञ नहीं हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मधुसूदन मिस्त्री जब यूपी प्रभारी हुआ करते थे तो उनके साथ वह सह प्रभारी थे। जाहिर है उत्तर प्रदेश की सियासत से वह अच्छी तरह वाकिफ हैं। लेकिन उनके सामने एक ऐसे संगठन को दोबारा खड़ा करने की चुनौती है, जो तमाम प्रयोगों, ओवरहालिंग के बाद भी प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर ही है।
कई जगह स्थिति ये है कि पार्टी को प्रत्याशी तक नहीं मिल पाते। जमीनी स्तर पर संगठन कार्यकर्ताओं के मामले में कई जगह क्षेत्रीय दलों से भी पीछे है। अब लोकसभा चुनाव 2024 करीब है, ऐसे में समाजवादी पार्टी के साथ इंडिया गठबंधन का तालमेल भी उनके सामने बड़ी चुनौती होगा।
यही नहीं राम मंदिर के माहौल में भाजपा की विकासवादी हिंदुत्व रणनीति की काट भी तलाशनी होगी। वैसे राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें यूपी से तीन नेता ऐसा नहीं मिलते, जिनका सीएम बनने का सपना हो और वह कुछ भी करने का माद्दा रखते हों। जाहिर है अविनाश पर ऐसे नेताओं को ढूंढ़ने का बड़ा दारोमदार है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."