मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
अगले साल 22 जनवरी की तारीख ऐतिहासिक होगी। इस पर पूरे देश की नजर है। इस दिन अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन है। इसके लिए अतिथियों को न्योता भेजा जा रहा है। इनमें विपक्ष के कई नेता भी शामिल हैं। विपक्ष के नेताओं को न्योता भेजकर बीजेपी ने उन्हें पूरी तरह उलझा दिया है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बीजेपी राम मंदिर का पूरा श्रेय अपने खाते में लेगी। विपक्ष को इस बात का डर है। उसे पता है कि बीजेपी समारोह को इतना बड़ा और भव्य बनाएगी कि दुनिया देखेगी।
विपक्ष के सामने दुविधा यह है कि वह आयोजन में जाने से मना करेगा तो फंसेगा, वहां जाएगा तो भी। लोकसभा चुनाव में तय है कि बीजेपी राम मंदिर का श्रेय लेगी। इसका श्रेय लेने से उसे कैसे रोका जाए, इस पर भी विपक्षी दलों में मंथन हो चुका है।
बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे पर विपक्ष को पूरी तरह धर्मसंकट में डाल दिया है। विपक्ष के जिन नेताओं को निमंत्रण मिला है, उनमें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, अधीर रंजन चौधरी, सीताराम येचुरी सहित कई नाम शामिल हैं। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई मंत्रियों और 4000 संतों के शामिल होने की उम्मीद है।
सीताराम येचुरी ने कार्यक्रम में जाने से किया इनकार
वाम दलों को छोड़कर कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर अब तक विपक्ष की ज्यादातर पार्टियों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर चुके हैं। लेफ्ट पार्टी ने कहा है कि उसका मानना है कि धर्म व्यक्तिगत मामला है। वाम दल के पोलित ब्यूरो ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक धार्मिक समारोह को राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया है। इसमें सीधे प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारी शामिल हो रहे हैं।
जाएं या नहीं… कांग्रेस पूरी तरह से कन्फ्यूज
हालांकि, कांग्रेस को इस निमंत्रण ने पूरी तरह उलझाकर रख दिया है। वह अब तक साफ नहीं कर पाई है कि उसके नेता कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे या नहीं। कांग्रेस के जिन नेताओं को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से न्योता गया है, उनमें सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी के नाम हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी निमंत्रण दिया गया है। दिक्कत यह है कि अगर सोनिया, खरगे और अधीर कार्यक्रम में नहीं जाते हैं तो फट बीजेपी को मौका मिल जाएगा। उसे कांग्रेस को ‘हिंदू विरोधी’ साबित करने में जरा देर नहीं लगेगी। जाते हैं तो मुसलमानों की नाराजगी मोल लेनी पड़ सकती है। कांग्रेस के नेता कार्यक्रम में गए और सपा-बसपा ने इससे दूरी बनाई तो मुस्लिम वोटरों का समीकरण बिगड़ सकता है। दरअसल, उस स्थिति में मुसलमान मतदाता सपा और बसपा का रुख कर सकते हैं। कांग्रेस ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी।
इसकी भी वजह है। हाल के कुछ वर्षों में कांग्रेस मुसलमानों का भरोसा जीतते हुए दिखी है। तेलंगाना में कांग्रेस की फतह इसकी बानगी है। वहां बीआरएस से पल्ला छुड़ाकर मुसलमानों ने कांग्रेस का हाथ थामा। सबसे ज्यादा संसदीय सीटों वाले यूपी का उदाहरण लें तो यहां सपा की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम मतदाता के साथ उसका खड़ा होना है।
बसपा और कांग्रेस को भी उनका वोट मिलता है। बीजेपी को चुनौती देने वाली पार्टी की तरफ मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ता है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस बीजेपी को सबसे बड़ी चुनौती पेश करती है। ऐसे में कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को नाराज नहीं करना चाहेगी।
बीजेपी की आक्रामकता ने बदली है राजनीति
हिंदुओं पर बीजेपी की आक्रामकता के कारण पिछले कुल सालों में राजनीति में बड़ा फर्क आया है। उसने एक तरह से दूसरी पार्टियों को मजबूर किया है कि वे हिंदुओं के मुद्दों को दरकिनार नहीं कर सकती हैं। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के निमंत्रण को ठुकराना इसलिए मुश्किल है। I.N.D.I.A अलायंस की ज्यादातर पार्टियों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के बूते राष्ट्रीय पटल पर पहचान बनाई है। इनमें से कई ने या तो राम मंदिर आंदोलन का विरोध किया या फिर इससे दूरी बनाकर रखी।
1990 में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में ही बिहार में रथ यात्रा को घुसते ही रोक दिया गया था। इस यात्रा का नेतृत्व कर रहे लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार हो गए थे। उसी साल यूपी में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं।
राम मंदिर आंदोलन से लेकर राम मंदिर बनने तक का सफर लोगों ने आंखों से देखा है। इससे कई पीढ़ियां जुड़ी रही हैं। ऐसे में तथ्यों को छुपाया या तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता है। यहां बीजेपी के पास बड़ा ‘एडवांटेज’है। राम मंदिर के लिए उसका संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज है। उसी का वह फायदा उठा रही है।