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November 22, 2024 4:47 pm

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‘अढाई कोस’ की स्पीड से चल पडी़ ‘इंडिया’ की गाड़ी … कहाँ तक जाएगी… ?? 

14 पाठकों ने अब तक पढा

आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की चौथी बैठक के बाद कहा जा सकता है कि वह कुछ सक्रिय हुआ है, कुछ फैसले लिए गए हैं, चुनाव जीतने की ललक जगी है और पहली बार प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम उभरा है। हालांकि गठबंधन का साझा न्यूनतम कार्यक्रम, सचिवालय, प्रतीक चिह्न आदि अभी विचाराधीन हैं, लेकिन संयोजक या प्रधानमंत्री चेहरे का प्रस्ताव बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने रखा, जिसे आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत 12 दलों के नेताओं ने अनुमोदित किया। ममता-केजरीवाल ने यह निर्णय कांग्रेस को बताए बिना ही लिया था। उनकी रणनीति थी कि यदि देश के सामने प्रथम दलित प्रधानमंत्री और एक बेदाग छवि वाले, अनुभवी नेता को पेश किया जाए, तो गठबंधन के पक्ष में जनमत तैयार करने में सुविधा होगी, लेकिन सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने मीडिया के सामने कहा कि बैठक में प्रधानमंत्री चेहरे पर कोई चर्चा ही नहीं हुई। ऐसे विरोधाभास ‘इंडिया’ की एकजुटता पर सवाल करते हैं।

बहरहाल कांग्रेस अध्यक्ष खडग़े ने प्रधानमंत्री चेहरे के मुद्दे को अस्वीकार करते हुए कहा कि सबसे पहले हमें चुनाव जीत कर बहुमत हासिल करना है। यदि सांसदों का ही बहुमत नहीं होगा, तो प्रधानमंत्री कैसे बनेगा?

खडग़े ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री चुनावी जीत के बाद तय कर लिया जाएगा। पहले हम सभी का मिलकर चुनाव लडऩा और जीतना जरूरी है। शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने ‘संयोजक’ का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कमोबेश नेतृत्व करने वाला चेहरा तो होना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि जो संयोजक हो, उसे ही बाद में प्रधानमंत्री बनाया जाए।

लेकिन खडग़े ने यह मुद्दा हाशिए पर सरका दिया। दरअसल विपक्ष के सामूहिक गठबंधन का बीड़ा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाया था। उन्होंने ही विपक्ष के प्रमुख नेताओं से संपर्क और संवाद किए थे, लेकिन चार बैठकों के बाद भी उनकी भूमिका गठबंधन के एक घटक की है, लिहाजा वह और राजद अध्यक्ष लालू यादव नाराज बताए जा रहे हैं। वे प्रेस ब्रीफिंग से पहले ही पटना लौट गए। इस तरह ‘इंडिया’ के संयोजक और सारथी की भूमिकाएं अब भी अनसुलझी हैं। अलबत्ता विपक्ष ने साझा सक्रियता के मद्देनजर कुछ फैसले जरूर लिए हैं।

हालांकि 28 दलों के गठबंधन में कुछ नेता आरोपिया भाषा बोल रहे थे कि कांग्रेस ने राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए कमोबेश एक साल का समय बर्बाद कर दिया। हम अब भाजपा से काफी पीछे हैं। आम चुनाव में तीन माह ही शेष हैं और अभी सीटों का बंटवारा ही नहीं हुआ है। इस बैठक में ममता बनर्जी के एक प्रस्ताव के संदर्भ में सीटों के बंटवारे की डेडलाइन 31 दिसंबर तय की गई है। खडग़े इसे ‘अग्निपरीक्षा’ मान रहे हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार, उप्र और महाराष्ट्र आदि राज्यों में सीटों का बंटवारा पहली प्राथमिकता है, यह खडग़े ने स्पष्ट कर दिया है। इन राज्यों में कांग्रेस तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी रह गई है। उसके लिए सीटें छोडऩा वाकई पेंचदार स्थिति है। दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल के साथ खडग़े बात कर समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करेंगे। बहरहाल ‘इंडिया’ की गाड़ी चल निकली है, बेशक गति अभी ‘अढाई कोस’ की है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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