आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा: यूपी के बबेरू तहसील में सिविल जज के पद पर तैनात महिला जज की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई चिट्ठी ने जुडिशल क्षेत्र में भूचाल ला दिया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए आधी रात को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।
रिपोर्ट शुक्रवार को दोपहर 11 बजे तक देने के लिए समय भी तय किया गया है। हाई कोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मिलने के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कोई बड़ा फैसला ले सकता है।
सिविल जज ने बाराबंकी के जिला जज पर मानसिक और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी थी।महिला जज ने अपनी शिकायती पत्र में बाराबंकी में तैनाती के दौरान कोर्ट में दुर्व्यवहार और जिला जज द्वारा मानसिक व यौन शोषण की शिकायत का हवाला देते हुए पत्र में उल्लेख किया है कि मैंने 2022 में मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद और प्रशासनिक न्यायाधीश से इस मामले की शिकायत की थी। जिस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी ने मुझसे पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या हुआ?
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में तैनात रहीं और ‘इच्छामृत्यु’ मांगने वाली जूनियर डिवीजन जज को 1 साल पहले 7 अक्टूबर 2022 को भरी अदालत में अपमानित किया गया था। इसे जज ने रेकॉर्ड में दर्ज भी किया था। इस अपमान भरी घटना को देखकर लगता है जैसे वाकई उनका मानसिक शोषण किया गया है। बांदा की बबेरू तहसील में तैनात सिविल जज ने बाराबंकी जिले में तैनाती के दौरान 7 अक्टूबर 2022 की घटना को फर्द एहकाम में दर्ज किया है। इसके मुताबिक उन्होंने बताया, ‘11.10 बजे मैं अपना न्याय कार्य करने बैठी थी। तभी बार के महामंत्री रितेश कुमार मिश्रा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मोहन सिंह और अन्य पदाधिकारी, तमाम अधिवक्ता के साथ आए और न्यायालय कक्ष में आकर न्याय कार्य बाधित किया।’
उन्होंने आगे बताया, ‘इन अधिवक्ताओं ने मुझे धमकी दी कि आपको हमारा सपोर्ट नहीं करना है? दिमाग खराब है, सुधर नहीं रही हैं।’ जब मैंने बोला है तो क्यों डेस्क पर बैठकर फाइल देख रही हैं। जिला जज से और सीजीएम से शिकायत की है तो मुझे आश्वासन दिया गया है कि कोर्ट नंबर-14 में जज बिल्कुल नहीं बैठेगी। तब कैसे बैठ गईं?’ उन्होंने आगे बताया कि उन्हें डायस से उतारने के लिए मजबूर किया गया। इसके लिए अधिवक्ताओं ने बदतमीजी भी की।
महिला जज ने बताया कि अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी, ‘तुम्हारी कोर्ट का पूरी तरह से बायकाट कराया जाएगा। तुम काम नहीं कर पाओगी। इस लायक तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। महिला अधिकारी हो सुधर जाओ और डायस से उतर जाओ। वरना आज तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा। बहुत कुछ हो सकता है आज तुम्हारे साथ। तानाशाही और बेशर्मी से कोर्ट चलाने के लिए डायस पर बैठ जाती हो और आदेश पारित कर देती हो। जब हम डेली बॉयकाट कर रहे हैं तो तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है।’
इस दौरान अधिवक्ताओं ने मुर्दाबाद के नारे भी लगाए और न्यायालय का दरवाजा बंद कर लाइट बंद कर दी। इसके बाद भी महिला जज अपनी कुर्सी पर डटी रहीं। इस घटना का पूरा विवरण महिला जज ने जिला जज को भेजा था। इस तरह की घटना एक बानगी है, जिससे लगता है कि जो पत्र उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखा है उसमें निश्चित ही उनका दर्द छिपा है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."