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November 23, 2024 8:15 am

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आज़म के बहाने अल्पसंख्यक वोटों की उम्मीद में विपक्षी दलों ने ‘दर्द’ में दवा तलाशने की कवायद तेज कर दी

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

अपने सख्त तेवर और ज्वलंत बयानों से सियासत की रंगत बदलने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां इस समय खामोश हैं, सलाखों के पीछे हैं। आजम भले सियासी तौर पर सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन यूपी की सियासी फिजा में इस समय वह खुद एक मुद्दा बने हुए हैं। खासकर, उनके फिर जेल जाने के बाद मुस्लिम वोट के सियासत की धुरी उनके आस-पास घूम रही है। यही वजह है कि इस वोट की पूंजी में हिस्सेदारी को लेकर सपा और कांग्रेस में आजम के बहाने जंग तेज हो गई है।

समाजवादी पार्टी के गठन के तीन दशक बाद भी आजम पार्टी का सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरा बने हुए हैं। सदन, संगठन, सरकार में भागीदारी भले कई की रही हो, लेकिन, जब बात वोट के लिए नुमाइंदगी की हुई तो आगे आजम ही किए गए। यही वजह है कि आजम सपा छोड़ने के बाद जब दोबारा पार्टी में लौटे तो मुलायम ने उनका स्वागत पहले से भी अधिक शिद्दत से किया।

सदन से सड़क तक कभी-कभी ‘असहज’ होने के बाद भी आजम के हर तेवर और ‘अपेक्षा’ को मुलायम से लेकर अखिलेश पूरा करते रहे हैं। फिलहाल, सपा के लिए अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण की कमान संभालने वाले आजम पिछले 9 साल से खुद पार्टी के लिए मुद्दा बने हुए हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह और आजम के बीच चली जुबानी जंग ने भाजपा के ध्रुवीकरण की रणनीति को खाद-पानी दे डाला था।

‘दर्द’ में दवा तलाशने की कोशिश

2022 के विधानसभा चुनाव में भी आजम का सवाल मुखर था। करीब 27 महीने बाद जब वह पिछले साल मई में जेल से बाहर आए तो उनके बयानों में भी उपेक्षा के सवाल मुखर थे। हालांकि, चुनाव में सपा के साथ ही मुस्लिम वोटबैंक के राजनीति करने वाले एआईएमआईएम जैसे दलों ने भी उनके मुकदमों को मुद्दा बनाया था। सपा भी निशाने पर थी। हालांकि, सपा को विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटरों का जमकर साथ मिला। अब लोकसभा चुनाव के पहले आजम खां को सात साल की सजा हो गई है। 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की इस मुद्दे पर सक्रियता को इसी का हिस्सा मना जा रहा है। इससे सीधा दबाव सपा पर है। यही कारण है कि I.N.D.I.A. गठबंधन में साथ होने के बाद भी सपा कांग्रेस पर हमलावर है। सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद सवाल पूछ रहे हैं कि जब कांग्रेस ने आजम को फंसाया था, तब ये लोग कहां थे? मंचों से अखिलेश लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि आजम को मुस्लिम होने की सजा भुगतनी पड़ रही है।

कांग्रेस क्यों जोड़ रही उम्मीद?

यूपी में पिछली बार कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनाव में दहाई अंक में पहुंची थी, जब यहां उसके 21 सांसद जीते थे। फर्रुखाबाद, खीरी, फिरोजाबाद और मुरादाबाद लोकसभा सीट से पार्टी के मुस्लिम सांसद जीते थे। दस साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिले रेस्पॉन्स, कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली जीत के बाद अपने लिए 2024 में बेहतर संभावनाएं देख रही है। इन संभावनाओं की जमीन यूपी के बिना तय नहीं हो सकती।

पार्टी को लगता है कि अगर वह यूपी में भी कुछ सीटों पर अपने आप को मुख्य दावेदार के तौर पर पेश करने में सफल रही तो अल्पसंख्यक वोट उसकी झोली में आ सकते हैं। 2009 में जीते उसके चार मुस्लिम सांसदों में तीन वेस्ट यूपी से थे। आजम के मुद्दे की सर्वाधिक प्रतिक्रिया भी उसी क्षेत्र में होती है, क्योंकि मुस्लिम वोटरों के असर वाली अधिकतर सीटें इधर ही हैं। इसलिए, वह आजम सहित हर उस मुद्दे को हवा देने में लगी है।

सपा को साथ बनाए रखने की चिंता

पिछले दो चुनावों से यूपी में अल्पसंख्यक वोटरों के वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। ध्रुवीकरण की जमीन पर हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों के विपक्षी दलों में हुए बिखराव ने यूपी में उनकी नुमाइंदगी शून्य पर ला दी थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा दोनों को ही माइनारिटी वोट मिले और भाजपा तीन-चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में आई। 2019 में विपक्ष एक हुआ तो अल्पसंख्यक वोटर भी एक मंच पर आए और 6 मुस्लिम चेहरे यूपी से संसद पहुंचे।

2022 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने सपा को एकतरफा वोट किया। एक-चौथाई मुस्लिम उम्मीदवार देने के बाद भी बसपा का महज एक सीट पर सिमटना इसकी नजीर है। सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में इस वोटिंग पैटर्न व साथ को बनाए रखना चाहती है। इसलिए, वह कांग्रेस या बसपा आजम का मुद्दा किसी और दल के हाथ नहीं देना चाहती है। क्योंकि, अल्पसंख्यक वोटों में पार्टी की सारी पैठ के बाद भी आजम को लेकर उठने वाले सवाल हलचल पैदा करते हैं।

पिछले साल आजमगढ़ में हुए लोकसभा उपचुनाव में अल्पसंख्यक वोटों के बिखरने के खतरे को रोकने के लिए भी सपा को आजम को चुनाव प्रचार में उतारना पड़ा था। हालांकि, नजदीकी मुकाबले में सपा हार गई। एक बार फिर सपा मुखिया अखिलेश यादव लगभग हर मंच से आजम का नाम ले रहे हैं और कह रहे हैं कि ऊपरी अदालतों से उन्हें न्याय मिलेगा और वह हमारे साथ चुनाव प्रचार में होंगे।

यूपी में मुस्लिम सियासत

– 30 से अधिक लोकसभा सीटों पर 20% से अधिक मुस्लिम आबादी

– 06 सीटों पर 40 से 50% तक है मुस्लिमों की आबादी

-12 लोकसभा सीटों पर 30% से 40% तक हैं मुस्लिम वोटर

इन लोकसभा सीटों पर सर्वाधिक असर

रामपुर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, सहारनुपर, मेरठ, बिजनौर, कैराना, नगीना, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, बरेली, बहराइच, आजमगढ़, घोसी, गाजीपुर।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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