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November 22, 2024 10:56 pm

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ये कैसा इंसाफ…. दुष्कर्म और हत्या से सन्न हुआ देश, लेकिन न्याय की आस पूरी टूट गई 

11 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

देश का संविधान सबको न्याय देने का वादा करता है, लेकिन कई बार न्याय की उम्मीद धरी की धरी रह जाती है। गीतिका शर्मा स्यूसाइड मामले में आरोपी गोपाल कांड और सहआरोपी अरुणा चड्ढा के बरी होने से परिवार के लिए न्याय की आस पूरी टूट गई। लेकिन यह पहला मामला नहीं है जब किसी पीड़ित के परिवार के साथ पूरा न्याय नहीं हुआ और अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवार अदालतों में ‘न्याय’ होने के बाद भी खुद को ठगा हुआ किया। सालों तक अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने और आर्थिक-मानसिक संताप झेलने के बाद भी उनके साथ पूरा न्याय नहीं हुआ। ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। एक मां को बेटे के कातिलों को जेल भेजने में अपनी ज़िंदगी दांव पर लगानी पड़ी। तो वहीं एक दूसरी माँ ने बेटी की मौत के दुख और न्यायिक पचड़े से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। लेकिन आरोपी कई बार मामूली सजा के बाद बाहर आ गए या बरी हो गए और परिवार के साथ न्याय की लंबी लड़ाई के बाद भी इंसाफ नहीं हुआ।

‘नो वन किल्ड जेसिका’

30 अप्रैल 1999 को मनु शर्मा ने दिल्ली के एक पब में रात के 2 बजे मॉडल जेसिका लाल को गोलियों से भून दिया था। जेसिका का मनु को शराब परोसने से मना करना, हत्या की वजह थी। एक बड़े राजनीतिक परिवार से आने वाले मनु शर्मा पर 7 साल तक मुकदमा चला और सबूतों के अभाव में फरवरी 2006 में मनु शर्मा अदालत से बरी हो गया। इस फैसले से देश सन्न था। यह जानते हुए भी कि गोली मारी गई है और गोली मारने वाला भी कोई और नहीं मनु ही है, कोर्ट से उसका बरी हो जाना जेसिका के परिवार को ही नहीं, बल्कि देश को झकझोर गया। अखबारों में हेडिंग बनी- No One Killed Jessica!

जेसिका लाल का परिवार इस फैसले से पूरी तरह से निराश हो गया था। हालांकि, आरोपियों के बरी होने के बाद भी जेसिका के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी। खासकर जेसिका की बहन सबरीना लाल ने मामले को ठंडा नहीं होने दिया। मीडिया ने भी अपनी भूमिका निभाई और आखिरकार केस को दोबारा खोलना पड़ा। दिल्‍ली पुलिस ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल की। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिसंबर, 2006 में मनु शर्मा को मामले में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 50 हजार रुपए जुर्माने का दंड दिया। एक बार फिर से परिवार को झटका लगा। परिवार को उम्मीद थी कि इस निर्मम हत्याकांड के आरोपी को मौत की सजा मिलेगी। दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट में 3 साल से ज्यादा समय तक सुनवाई चली। अप्रैल 2010 में कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। उम्रकैद की सजा पाने के बाद मनु शर्मा फरलो पर जेल से बाहर आया और शादी भी रचाई। अब वह जेल से बाहर है और सामान्य जिंदगी जी रहा है। लेकिन पीड़ित परिवार और उससे जुड़े लोगों की जिंदकी हमेशा के लिए बदल गई। जेसिका के परिवार को दो दशक चली इस लंबाई लड़ाई के बाद भी न्याय नहीं मिला। जेसिका के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने वालीं उनकी बहन सबरीना लाल की भी 2021 मौत हो गई।

अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए लड़ी मां

नीलम कटारा का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। उनकी पहचान यह है कि उन्होंने अपने बेटे नीतीश कटारा के हत्यारों को सलाखों के पीछे भेजने में अपनी जिंदगी लगा दी। न्याय के लिए उनका संघर्ष उनके परिवार पर बेहद भारी पड़ा। उनके दूसरे बेटे को जहर देकर मारने की कोशिश हुई, तो खुद उन्हें केस वापस लेने के लिए धमकियों का सामना करना पड़ा। नीतीश कटारा को एक बाहुबली नेता डीपी यादव की बेटी से प्यार करने का अंजाम अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। उन्हें जिंदा जला दिया गया। इस मामले में न्याय का मखौल कुछ ऐसा उड़ाया गया कि इसके मुख्य आरोपी विकास यादव को दो साल में 60 से ज्यादा बार बेल मिली और वह भी बिना किसी खास कारण के। मई 2008 में लोअर कोर्ट ने आरोपी विशाल, विकास और सुखदेव पहलवान को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन नीलम कटारा इस फैसले से खुश नहीं थीं। वह चाहती थीं कि उनके बेटे की हत्या जितनी वीभत्स तरीके से की गई थी, उसे देखते हुए आरोपियों को फांसी होनी चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी उन्हें निराशा हाथ लगी। खास बात यह है कि नीतीश के पिता आईएएस अफसर थे, इसके बावजूद न्याया की उम्मीद में कटारा का परिवार सालों तक मानसिक पीड़ा झेलता रहा।

ऐसा ही सुर्खिया बटोरने वाला एक केस है प्रियदर्शिनी मट्टू का। साल 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक लॉ स्टूडेंट के साथ उसके घर में दुष्कर्म किया गया और बाद में हत्या कर दी गई। हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि प्रियदर्शिनी मट्टू के साथ कॉलेज में पड़ने वाला एक सीनियर युवक था। एकतरफा प्यार में मट्टू के कॉलेज के सीनियर संतोष ने इस वारदात को अंजाम दिया। संतोष के पिता उस समय जम्मू-कश्मीर में आईपीएस अफसर थे और उन्होंने अपने बेटे को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। पुलिस की जांच रिपोर्ट में प्रियदर्शिनी के साथ दुष्कर्म होने की बात शामिल नहीं थी। केस सीबीआई के पास गया लेकिन पुलिस ने सबूतों को जुटाने में काफी कोताही बरती और इसका परिणाम यह हुआ कि तीन साल बाद 1999 में कोर्ट ने संतोष को सबूत के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट से बरी होने के बाद संतोष सिंह की शादी हो गई और सामान्य पारिवारिक जिंदगी जीने लगा। लेकिन प्रियदर्शिनी के परिवार को यह ‘न्याय’ पूरी तरह तोड़ गया। इस फैसले से आम लोग भी न सिर्फ निराश हुए बल्कि इसने उनकी भावनाओं को इतना भड़का दिया था कि लोगों ने इंसाफ के लिए खूब धरने-प्रदर्शन किए। बाद में सीबीआई ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की। 6 साल के बाद अक्टूबर 2006 में कोर्ट ने संतोष को प्रियदर्शिनी के साथ रेप और हत्या का दोषी पाया। संतोष ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के ऑर्डर पर स्टे लगा दिया। अक्तूबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने संतोष की सजा को फांसी से घटाकर उम्रकैद में बदल दिया। प्रियदर्शिनी को न्याय दिलाने के लिए उनके पिता चमनलाल मट्टू ने काफी मेहनत की लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वह बेहद निराश हुए। उन्होंने कहा, ‘यह निराशाजनक है। 14 साल का संघर्ष बहुत होता है। कोर्ट से हमें यह उम्मीद नहीं थी।’

11 साल की लड़ाई, 189 पेज का फैसला….

एयर होस्टेस गीतिका शर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा को दिल्ली की एक अदालत ने बरी कर दिया। कोर्ट ने मुख्य आरोपी गोपाल कांडा के साथ-साथ अरुणा चड्ढा को भी कोर्ट ने बरी किया है। 11 साल से चल रहे इस केस में परिवार हर दिन इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठा रहा लेकिन उनकी सारी उम्मीदें उस समय टूट गईं जब कोर्ट से दोनों आरोपी बरी हो गए। मंगलवार को कोर्ट का फैसला आने के बाद गीतिका शर्मा के भाई अंकित शर्मा के चेहरे पर निराशा के भाव देखे जा सकते थे। उन्होंने कहा कि 11 साल से हम एक इमोशनल ट्रॉमा में जी रहे हैं। गीतिका के 66 साल के पिता भी इस फैसले से सदमे में हैं। स्पेशल जस्टिस विकास ढुल ने गोपाल कांडा और केस में सहआरोपी अरुणा चड्ढा को आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 120-बी (आपराधिक साजिश) और 466 (जालसाजी) सहित अन्य धाराओं के तहत लगाए गए सभी आरोपों से बरी किया है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपों को साबित करने में असफल रहा है कि आपराधिक साजिश के तहत ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं जिनकी वजह से गीतिका शर्मा के पास स्यूसाइड करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। एक दशक से ज्यादा चली कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट का 189 पेज का फैसला, परिवार के लिए बेटी की मौत से ज्यादा दर्दनाक साबित हुआ। फैसला आने के बाद गीतिका के भाई अंकित शर्मा के शब्द थे, ‘We are in complete shock. Our faith in the judiciary has been shaken…’

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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