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November 22, 2024 1:58 pm

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रोचक एवं मनमोहक संस्मरणों की पोटली है “स्मृति की खिड़की”

24 पाठकों ने अब तक पढा

 प्रमोद दीक्षित मलय

एक पाठक के तौर पर संस्मरण मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे हैं। एक तो यही कि संस्मरण पढ़कर सम्बंधित व्यक्ति की प्रकृति, स्वभाव, व्यक्तित्व एवं कर्म कौशल से परिचय होता है वहीं दूसरे यह कि एक संस्मरण में ही कहानी, यात्रा वृत्तांत, जीवनी, रेखाचित्र आदि विधाओं के रस का स्वाद भी मिल जाता है। वास्तव में संस्मरण पाठक को अपने साथ अंगुली पकड़कर उस यात्रा पर ले चलता है जहां पर निर्मल भावों की सुमधुर ललित सरिता प्रवहमान है, जहां पर जीवन का यथार्थ षटरस के साथ उपस्थित होता है। संस्मरण पढ़ते हुए पाठक जेठ-वैसाख की तपन महसूस करता है तो सावन की बदली एवं रिमझिम फुहार भी। इसमें मानव जीवन के विविध रंग आकार लेने लगते हैं। पाठक टाईम मशीन में बैठकर उन पलों को जीने लगता है जिनका हिस्सा वह भले ही कभी न रहा हो। संस्मरण पाठक के व्यक्तित्व को गढ़ने लगता है। संस्मरण मन की दुख-पीर एवं अशांति को खींचकर सुख-शांति का मृदुल बिछौना बिछाकर संगीत के कोमल राग छेड़ देता है। यही कारण है कि जितेन्द्र शर्मा की हालिया प्रकाशित संस्मरण पुस्तक ‘स्मृति की खिड़की’ मिलते ही एक बैठक में पढ़ गया। काव्यांश प्रकाशन ऋषिकेश से दिसम्बर 2021 में प्रकाशित इस पुस्तक में कुल 13 रोचक मनोहारी संस्मरण सम्मिलित हैं जिनमें जीवन के विविध प्रतिबिम्ब दिखाई देते हैं। इन संस्मरणों में समृद्ध प्रकृति का स्पंदन एवं कोमल स्पर्श है तो पहाड़ों के अप्रतिम सौंदर्य का आकर्षण भी। अपनी देशज माटी की मोहिनी महक है तो विदेश की सैर के मोहक चित्र भी। दोस्ती का अल्हड़पन एवं खुलापन है तो संत एवं साहित्यकारों के प्रति आदर-सम्मान का नेह अर्घ्य भी निवेदित है। कुल मिलाकर ये संस्मरण अतीत की खिड़की से झांकते-मुस्काते समय का मृदुल हास्य है, उजास की एक पगडंडी है जिस पर बढ़ते हुए पाठक मानवीय मूल्यों एवं संवेदना से सराबोर हो जाता है। इनमें आत्मीयता का अनुभूत आंनद है और जीवन के इंद्रधनुषी रंगों का चित्ताकर्षक फलक भी जिसमें प्रेम, सद्भाव, समता, मानवता जीवंत होकर मंगल गान कर रहे हैं।
आत्मकथ्य ‘बिंध गये सो मोती’ में लेखक कहता है, ‘‘संस्मरण का आधार स्मृति है। स्मृति सुप्तावस्था में मस्तिष्क में जड़ जमाए रहती है। स्मृति क्षेत्र में स्थान, व्यक्ति के आकार तथा अनुभवों का चित्रात्मक संग्रह विद्यमान होता है। उसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास अपेक्षित होता है।’’ इस दृष्टि से लेखक ने अपने मानस में अंकित असंख्य चित्रों में श्वास भरकर प्राण प्रवाहित कर दिया है। पाठक इन संस्मरणों को पढ़ते हुए ऐसा अनुभव करता है कि मानो वह स्वयं वहां साक्षात उपस्थित रहा हो। यह लेखक की लेखन शैली की कुशलता है कि उसने कथानक, दृश्य, संवाद एवं कहन में इतनी मिठास उड़ेल दी है कि शहद भी फीका लगने लगे। पहला संस्मरण ‘झरोखे से’ प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड से सम्बंधित है। इसमें वह देहरादून में पड़ोसी रस्किन के साथ बिताए पलों को शब्दों का जामा पहनाते हैं और बच्चों से उनकी दोस्ती, सेवक के परिवार को गोद लेने, अविवाहित रहने और उनके लेखन से जुड़े रुचि पूर्ण प्रसंगों को सिलसिलेवार गूंथते चलते हैं। ‘स्विट्जरलैंड का संन्यासी’ संस्मरण एक विदेशी व्यक्ति के भारत के योग, दर्शन एवं अध्यात्म में रुचि लेने एवं सांसारिक जीवन से मुक्त हो संन्यास लेकर भारत में बस जाने की कोमल गाथा है। जिसमें उनकी कुटिया की पूरी छत को ढकते श्रीयंत्र को देख लेखक के मन में उपजे प्रश्न पर संन्यासी का उत्तर कि भारतीय ज्यामितीय ज्ञान अतुलनीय है। खेद है कि भारत के युवाओं में इस प्राचीन विज्ञान को लेकर कोई रुचि नहीं है। इसके साथ ही संन्यासी के निर्देश पर एक अंग्रेज युवक को कुटिया से होटल तक छोड़ने और अगली सुबह अखबारों से यह पता चलने पर कि वह प्रसिद्ध अमेरिकी पॉप सिंगर स्टिंग था, का प्रसंग कौतूहल भरा है। सांध्यकालीन कीर्तन में सहभागी बनने के सुख का चित्रण और रात में कुटिया से वापस आते समय रास्ते में सांप मिलने पर संन्यासी के कथन कि इस जंगल पर हमसे पहले इन जीव-जंतुओं का अधिकार है। और संन्यासी की आत्मकथा के पाठ एवं संशोधन करने के वृत्तांत भी पाठक को पुस्तक से बांधे रखता है। ‘जो रह गये’ संस्मरण में आजादी के बाद युवा एंग्लो इंडियन तो इंग्लैंड, आस्ट्रलिया एवं कनाडा में बस गये। लेकिन नौकर, खानसामा, माली आदि सुविधाओं के आदी हो चुके बूढ़े यहीं मसूरी में ही आलीशान कोठियों में अपने पालतू कुत्तों के साथ रह गये। कभी सत्ता की हनक और आये दिन होने वाली पर्टियों से गुलजार रही पर आज बेबसी एवं अकेलेपन में जीने को मजबूर इन कोठियों के बारे में पाठकों को तमाम नवीन जानकारियों एवं तथ्यों से परिचित कराते हैं। हजारों मील दूर अमेरिका के शिकागों में अचानक किसी अपने देशवासियों को देखकर जो खुशी और आत्मीयता की चमक चेहरे पर प्रकट होती है, उसे शब्दों में बांध व्यक्त कर पाने में लेखक सफल हुआ है अपने संस्मरण ‘दूर भी नजर आती हैं नजदीकियां’ में। लेखक अपने शिकागो यात्रा में रेलवे स्टेशन से निकलने पर एक भारतीय लड़की का भाग कर आने और मसाला चाय पिलाने हेतु अपने कमरे ले जाने का दृश्य बहुत रोचक बन पड़ा है। यह घटना उस समय की है जब अमेरिका में बहुत ज्यादा भारतीयों की आमद नहीं थी। बाद के वर्षों में पुनः अमेरिकी प्रवास के दिनों में वहां काम के लिए गये हजारों भारतीयों से बन जाने वाले एक लघु भारत का दृश्य भी खींचा है। तो ‘टैरी मेरा हमदम’ में अंग्रेज मित्र टैरी मैकार्मिक’ की पचास सालों की दोस्ती का चित्र लुभाता है जिसमें लेखक के इंग्लैंड जाने, टैरी के पास रुकने, लोगों से मिलने एवं घूमने तथा टैरी के भारत आने, पर्वतारोहण करने और वर्षों बाद पेरिस में भेंट होने का वर्णन पाठक को उस दुनिया में ले जाता है जिसमें पारिवारिक रिश्ता बन जाने एवं जीवन मूल्यों की महक समायी हुई है। लेखक के पहले विदेशी प्रवास का सफरनामा है ‘मेरी पहली उड़ान’ जिसमें ब्रिटिश सरकार के आमंत्रण पर विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने, शिक्षकों एवं छात्रों से संवाद करने, अपने मित्र टैरी के आत्मीय व्यवहार एवं वर्ड्सवर्थ के घर डाॅव काॅटेज देखने के साथ तमाम छोटी यात्राओं के प्रसंग हैं। ‘बाबू संतराम’ शीर्षक संस्मरण बोर्डिंग स्कूल में ठिगने कद के गांधी टोपी लगाने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संतराम के अपनी कर्तव्यनिष्ठा, मधुर व्यवहार एवं कार्य कौशल के द्वारा एक कारपेंटर के पद से एस्टेट मैनेजर पद तक पहुंचने की दास्तान पाठक को प्रेरित करती है। ऐसे ही छात्र जीवन के साथी प्रोफेसर कृष्ण गोपाल वर्मा के साथ जिये लम्बे काल खण्ड का शब्दचित्र मनोहारी है। अन्य संस्मरणों में कवि व कथाकार होशियार सिंह चैहान, मृत्युयोग, दूरस्थ गांव: एक स्मृति चित्र तथा बदलते मुकाम पाठक को बिना पढ़े पुस्तक रखने नहीं देते है।
कुल मिलाकर ‘स्मृति की खिड़की’ पाठक को स्मृतियों के उपवन में ले जाकर नाना प्रकार के सुगंधित सुमनों की भेंट अर्पित कर आनंद सरोवर में अवगाहन कराती है। पुस्तक बढ़िया कागज पर साफ-सुथरी मुद्रित की गयी है। मुखपृष्ठ सादा किन्तु आकर्षक है। बाईंडिंग बहुत बढ़िया है। कुछ चित्र भी दिए गये हैं जो पाठ को गति देते हैं। एक खास बात वर्तनीगत त्रुटियां नहीं हैं। 120 पृष्ठों की यह पुस्तक पठनीय है और संस्मरण विधा पर एक उच्चकोटि का प्रयास है। लेखक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं कि एक श्रेष्ठ कृति से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि काव्यांश प्रकाशन की यह पुस्तक पाठकों द्वारा न केवल सराही जायेगी बल्कि साहित्यानुरागियों के मध्य पुस्तक-चर्चा के केन्द्र में रहेगी।
पुस्तक – स्मृति की खिड़की, लेखक – जितेन्द्र शर्मा,
प्रकाशक – काव्यांश प्रकाशन ऋषिकेश, मूल्य – ₹175/-
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समीक्षक शिक्षक हैं एवं विद्यालयों को आनन्दघर बनाने के अभियान पर काम कर रहे हैं। बांदा (उ0प्र0)।
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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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