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संपादकीय

पद, प्रतिष्ठा,धन और ताकत के असीमित दौड़ में हमारा वजूद

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अनिल अनूप

जीवन वास्तव में एक अनंत यात्रा है, जिसमें कहीं भी ठहराव नहीं है। जब तक इच्छाएँ जीवित हैं, तब तक यह दौड़ जारी रहती है। चाहे वह कोई प्रसिद्ध उद्योगपति हो या एक साधारण व्यक्ति, हर कोई इस प्रतिस्पर्धा में शामिल है। पैसा, प्रतिष्ठा, ताकत, सम्मान और यश की इस असीमित दौड़ में हम खुद को लगातार खपा रहे हैं।

लेकिन क्या यह सही दिशा में दौड़ है? जब हम अपनी खुशी को दूसरों की मान्यता पर निर्भर बना लेते हैं, तो हमारा जीवन दूसरों की राय का गुलाम बन जाता है। सोशल मीडिया इसका एक बड़ा उदाहरण है—जहाँ ज्यादा लाइक्स खुशी देते हैं और कम लाइक्स उदासी का कारण बनते हैं। यही स्थिति हमारे असली जीवन में भी लागू होती है। सवाल यह उठता है कि क्या इसका कोई विकल्प है?

नया अनुभव: अनुशासन बनाम स्वतंत्रता

कल्पना कीजिए कि एक छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए किसी दूसरे शहर में चला जाता है। घर पर उसकी सारी ज़रूरतें पूरी हो जाती थीं—खाना, कपड़े, सफाई, देखभाल। पर अब उसे अपनी हर चीज़ खुद संभालनी होगी।

शुरुआत में अकेलापन महसूस होगा, लेकिन इसके साथ स्वतंत्रता भी मिलेगी। अब कोई रोक-टोक नहीं, लेकिन जिम्मेदारियाँ भी पूरी तरह से खुद पर आ गई हैं। अगर वह अनुशासन में रहता है, तो यही स्वतंत्रता उसके लिए वरदान बन सकती है। वह अपने पैसे और समय का सही उपयोग करके अपने कौशल को विकसित कर सकता है। लेकिन अगर वह सिर्फ आज़ादी के बहाने लापरवाही बरते, तो यह आज़ादी धीरे-धीरे अराजकता में बदल सकती है।

जब अनुशासन स्वेच्छा से अपनाया जाता है, तो यह बोझ नहीं, बल्कि सफलता की कुंजी बन जाता है। इस अनुशासन से व्यक्ति परिपक्व होता है और अपनी जिम्मेदारी खुद समझता है।

अध्यात्म: अकेलापन नहीं, आनंद का अनुभव

जब यही मानसिकता अध्यात्म में बदलती है, तो अकेलापन सिर्फ एकांत ही नहीं, बल्कि आनंद का कारण बन जाता है। तब हम भीड़ में भी अकेले होने का सुख अनुभव करते हैं और अकेले रहकर भी आत्मिक शांति में डूबे रहते हैं।

कैसे? क्योंकि तब हमारा अहंकार समाप्त हो जाता है। हम समझ जाते हैं कि हम सिर्फ माध्यम हैं, कर्ता नहीं। हमारा हर कार्य, हर प्रयास, हर कदम परमात्मा के प्रति समर्पित होता है।

इस अवस्था में न तो प्रशंसा हमें अहंकारी बनाती है, न ही निंदा हमें विचलित करती है। तब जीवन में न दिखावे की जरूरत होती है, न बाहरी मान्यता की परवाह।

अध्यात्म: एक सतत यात्रा

यह समझना आवश्यक है कि अध्यात्म कोई मंजिल नहीं, बल्कि एक यात्रा है। जैसे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हमें हर दिन सही आदतों का पालन करना पड़ता है, वैसे ही आत्मिक विकास के लिए भी निरंतर अभ्यास आवश्यक है।

हम अतीत को बदल नहीं सकते, भविष्य को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन वर्तमान ही हमारे हाथ में है। यही क्षण परमात्मा से जुड़ने का है।

अगर हम इस विचारधारा को अपनाते हैं, तो हम चाहे किसी भी परिस्थिति में हों—भीड़ में भी अकेलापन महसूस नहीं करेंगे और अकेले रहकर भी संपूर्णता का अनुभव करेंगे।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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