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18 January 2025 4:54 am

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कौन है जिम्मेदार गौशालाओं की बदहाली का : बेजुबानों के लिए कब जगेगी इंसानियत…?

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सुशील कुमार मिश्रा के साथ सोनू करवरिया 

बांदा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित गौशालाओं की स्थिति दिनोंदिन बदतर होती जा रही है। बेसहारा गोवंश के संरक्षण और देखभाल के लिए सरकार द्वारा जारी अनुदान और सुविधाओं का सही उपयोग नहीं हो रहा है। जिले के कई गांवों में चल रही गौशालाओं में गोवंशों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। पशुओं के लिए भोजन, पानी और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं, जिससे गौशालाओं में लगातार गायों की मौत हो रही है।

गौशालाओं की वास्तविक स्थिति

पपरेंदा ग्राम पंचायत की गौशाला: तिंदवारी ब्लॉक के पपरेंदा गांव में स्थित अस्थायी गौशाला में गोवंशों की देखभाल पूरी तरह से बदहाल स्थिति में है। हाल ही में एक निरीक्षण के दौरान पाया गया कि दर्जनों गायें दलदल में फंसी हुई थीं। उनके लिए बनाए गए आश्रय स्थलों की हालत भी खराब थी, जिससे बारिश के दौरान उनका जीवन और भी कठिन हो जाता है। स्थानीय किसानों ने बताया कि गोवंशों के रखरखाव के लिए मिलने वाला अनुदान अधिकारियों और प्रबंधकों के बीच ही सिमट जाता है, जबकि जमीन पर स्थिति जस की तस बनी रहती है।

रिसौरा गांव की गौशाला

महुआ विकासखंड के रिसौरा गांव की गौशाला में प्रशासनिक टीम के निरीक्षण के दौरान गंभीर लापरवाहियां उजागर हुईं। गौशाला के रजिस्टर में दर्ज संख्या से 15 गोवंश कम पाए गए, जिससे संकेत मिलता है कि यहां गोवंशों का उचित प्रबंधन नहीं किया जा रहा है।

इसके अलावा, गौशाला में पानी की चरही में कीड़े और गंदगी मिली, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यहां पशुओं को साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा है।

हाईटेक गौशाला का हाल भी बेहाल

बांदा शहर से सटी हाईटेक कही जाने वाली गौशाला, जो आधुनिक सुविधाओं से लैस होने का दावा करती है, वहां भी गायों की मौतें आम बात हो गई हैं। इस गौशाला में पिछले छह महीनों में कई गोवंशों की भूख और बीमारी से मृत्यु हो चुकी है। प्रबंधन की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई गायें कुपोषण का शिकार हो गई हैं, जबकि इस गौशाला के लिए सरकार से हर महीने लाखों रुपये का अनुदान जारी किया जाता है।

सरकार की योजनाएं और जमीनी हकीकत

उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसहारा गोवंशों की देखभाल के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन बांदा जिले में इन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।

मुख्यमंत्री स्वदेशी गो संवर्धन योजना

देसी नस्ल की गायों के पालन के लिए किसानों को 80,000 रुपये तक का अनुदान देने का प्रावधान है।

बेसहारा गोवंश आश्रय योजना

इस योजना के तहत प्रत्येक गोवंश के पालन के लिए 900 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं, ताकि उनके भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था हो सके।

स्थायी एवं अस्थायी गौशालाओं की स्थापना: सरकार ने कई स्थानों पर अस्थायी गौशालाएं बनवाई हैं और उनके संचालन के लिए पर्याप्त बजट भी जारी किया जाता है।

क्यों फेल हो रही हैं ये योजनाएं?

सरकारी योजनाओं के बावजूद बांदा जिले में गौशालाओं की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो पा रहा है? इसकी मुख्य वजहें निम्नलिखित हैं:

अनुदान का दुरुपयोग

सरकारी फंड का बड़ा हिस्सा गौशाला संचालकों और अधिकारियों के बीच बंदरबांट हो जाता है।

निरीक्षण की कमी

प्रशासनिक स्तर पर नियमित जांच और निगरानी की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है।

भ्रष्टाचार

कई मामलों में गौशाला संचालकों और स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से फर्जी आंकड़े दिखाकर सरकारी मदद हड़प ली जाती है।

समुदाय की भागीदारी की कमी

गौशालाओं को चलाने के लिए स्थानीय समुदाय और किसानों को शामिल नहीं किया जाता, जिससे ये केंद्र कागजी योजनाओं तक ही सीमित रह जाते हैं।

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स्थानीय लोगों की शिकायतें और प्रशासन की उदासीनता

गांवों के किसानों और ग्रामीणों का कहना है कि गोवंशों के लिए जारी किया गया चारा और दवाएं बाजार में बेच दी जाती हैं। कई जगहों पर गौशाला के नाम पर केवल बोर्ड लगे हैं, जबकि असल में वहां कोई सुविधा नहीं दी जाती। जब स्थानीय लोगों ने इन मुद्दों को लेकर प्रशासन से शिकायत की, तो आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

समाधान और आवश्यक कदम

अगर बांदा जिले की गौशालाओं की स्थिति में सुधार करना है, तो निम्नलिखित कदम उठाने जरूरी हैं:

नियमित निरीक्षण और जवाबदेही

प्रशासन को हर महीने गौशालाओं का निरीक्षण कर वास्तविक स्थिति की रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।

पारदर्शिता

सभी गौशालाओं के खर्च और गोवंशों की संख्या की जानकारी ऑनलाइन सार्वजनिक की जाए।

स्थानीय समितियों की भागीदारी

गौशालाओं की देखभाल के लिए स्थानीय किसानों और पशुपालकों की समितियां बनाई जाएं।

भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई

अनुदान के दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो।

बांदा जिले की गौशालाओं की दुर्दशा यह दर्शाती है कि सरकारी योजनाएं केवल कागजों पर चल रही हैं और जमीनी हकीकत कुछ और ही है। अगर प्रशासन ने जल्द से जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है। गौशालाओं की व्यवस्था सुधारने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि बेसहारा गोवंशों को सही मायनों में संरक्षण मिल सके।

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