महाकुंभ में जंगम साधु ; मांग कर गुजारा करते हैं लेकिन माया को हाथ नहीं लगाते

275 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार चौधरी की रिपोर्ट

प्रयागराज महाकुंभ में हजारों साधु-संतों और श्रद्धालुओं के बीच एक अनोखा समुदाय ध्यान खींचता है—जंगम साधु। गेरुआ लुंगी-कुर्ता, सिर पर दशनामी पगड़ी, और उस पर तांबे-पीतल के बने गुलदान में सजे मोर पंख इनके पारंपरिक परिधान का हिस्सा हैं। हाथ में विशेष प्रकार की घंटी, जिसे टल्ली कहते हैं, लेकर ये साधु शिव भजनों की गूंज के साथ अखाड़ों और शिविरों में घूमते हैं।

जंगम साधुओं की पहचान और परंपरा

जंगम साधु, जिन्हें ‘जंगम जोगी’ भी कहा जाता है, कुंभ मेले में अपने अनूठे अंदाज के लिए जाने जाते हैं। ये शिव भजनों के माध्यम से शिव-पार्वती विवाह कथा, कलयुग की कथा, और शिव पुराण के प्रसंग सुनाते हैं। खास बात यह है कि ये साधु कभी हाथ से दान स्वीकार नहीं करते। जब कोई दान देना चाहता है, तो वे अपनी टल्ली को उलटकर उसमें भिक्षा स्वीकार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा भगवान शिव के उस आदेश से जुड़ी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि माया को हाथ से न छुएं।

हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आए जंगम साधुओं की टोली के नेतृत्व कर रहे सोमगिरि जंगम ने बताया कि ये साधु अखाड़ों और शिविरों के सामने खड़े होकर घंटी बजाते हुए शिव भजनों का गायन करते हैं। प्राप्त भिक्षा को धर्म का दान मानते हुए इसे अपने परिवारों के पालन-पोषण का मुख्य साधन मानते हैं।

पारंपरिक वेशभूषा और धार्मिक महत्व

जंगम साधु अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं। नागराज, मोरपंख, माता पार्वती के आभूषणों का प्रतीक बाला, और घंटियां उनकी पोशाक का हिस्सा हैं। जूना अखाड़े की महंत अर्चना गिरि बताती हैं कि जंगम साधु शिव की महिमा का गुणगान करते हैं और इनकी भजन शैली अन्य साधुओं से अलग है। यही कारण है कि साधु-संत और महंत इन्हें आदर और दान देते हैं।

जंगम साधुओं की उत्पत्ति और पौराणिक मान्यताएं

जंगम साधुओं की उत्पत्ति को लेकर दो प्रमुख कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार, माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने अपनी जांघ से रक्त की बूंद से कुश नामक मूर्ति को जीवित किया। यही मूर्ति जंगम साधुओं के प्रारंभ का प्रतीक बनी। दूसरी कथा में कहा गया है कि शिव-पार्वती विवाह के दौरान भगवान शिव ने दक्षिणा देने के लिए अपनी जांघ से जंगम साधुओं को उत्पन्न किया। इन साधुओं ने ही विवाह के रस्मों को पूर्ण किया।

अनूठा समुदाय और सख्त परंपराएं

जंगम साधु केवल अपने वंशजों को ही इस परंपरा में शामिल करते हैं। हर पीढ़ी से एक व्यक्ति साधु बनता है, जिससे यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से जीवित है। ये साधु भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं—महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में जंगम, कर्नाटक में जंगम अय्या, तमिलनाडु में जंगम वीराशिव पंडरम, और आंध्र प्रदेश में जंगम देवा।

इनकी कुल जनसंख्या 5-6 हजार के बीच बताई जाती है। धार्मिक आयोजनों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है, और शिव-पार्वती विवाह जैसे अनुष्ठान को संपन्न कराने का अधिकार केवल इन्हें प्राप्त है।

जंगम साधु: भक्ति और परंपरा का संगम

प्रयागराज महाकुंभ में जंगम साधु भक्ति और परंपरा के अनोखे प्रतीक हैं। इनकी धार्मिक भूमिका, सादगीपूर्ण जीवनशैली, और भगवान शिव के प्रति अटूट निष्ठा, भारतीय संस्कृति में इन्हें एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top