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27 December 2024 3:36 pm

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विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण से आरक्षण पर संकट, कर्मचारियों में बढ़ता आक्रोश

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल लागू किए जाने से राज्य में आरक्षण व्यवस्था प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने विरोध दर्ज कराया है। संगठन का आरोप है कि विद्युत वितरण निगम में आरक्षण को लेकर पावर कॉरपोरेशन ने जानबूझकर चुप्पी साध रखी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भविष्य में आरक्षण के अधिकारों पर गंभीर संकट आ सकता है।

एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर यह निजीकरण प्रस्ताव कैबिनेट में पेश किया जाता है, तो उसे तत्काल वापस लिया जाए। वर्मा ने बताया कि पहले पावर कॉरपोरेशन ने द्विपक्षीय वार्ता में आश्वासन दिया था कि आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) का मसौदा तैयार होने के बाद उसे सार्वजनिक कर सभी पक्षों से राय ली जाएगी। लेकिन अब, इस प्रक्रिया को पूरी तरह से गुप्त रखते हुए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में इसे मंजूरी दिलाई गई और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में भी इसे अनुमोदित करा लिया गया।

दलित और पिछड़े कर्मचारियों में गहराता रोष

एसोसिएशन के महासचिव अनिल कुमार और सचिव आर.पी. केन ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर सरकार और कॉरपोरेशन की चुप्पी दलित और पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों के साथ घोर अन्याय है। इससे कर्मचारी वर्ग में नाराजगी बढ़ती जा रही है। उन्होंने मांग की है कि वह मसौदा तुरंत सार्वजनिक किया जाए, जिसे कैबिनेट के समक्ष लाया जाना है, ताकि सभी हितधारकों की राय सामने आ सके।

प्रदेश में विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला जारी

विद्युत व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ पूरे उत्तर प्रदेश में व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं। विद्युत कर्मचारी और विभिन्न संगठनों के सदस्य सरकार के इस कदम को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। विपक्षी पार्टियां भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटी हुई हैं।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मसले पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार की मंशा बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने की है, जिससे आरक्षण की व्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने शनिवार को कहा कि यह फैसला न केवल कर्मचारियों के भविष्य के लिए घातक है, बल्कि इससे आम जनता पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि विद्युत वितरण के निजीकरण से न केवल नौकरी की सुरक्षा खतरे में आएगी, बल्कि बिजली की दरें भी बढ़ सकती हैं, जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ेगा। कर्मचारी संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

इस मुद्दे पर प्रदेश की राजनीति में हलचल मची हुई है और सरकार पर बढ़ते दबाव के बीच यह देखना होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पर क्या रुख अपनाते हैं।

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