संतोष कुमार सोनी के साथ सुशील कुमार मिश्रा की खास रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित बांदा जिला प्राकृतिक संसाधनों और जल स्रोतों से समृद्ध है। यहां की केन नदी, जो जिले की जीवनरेखा मानी जाती है, आज खनन माफियाओं के लालच और अनियमित खनन गतिविधियों के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
खनन माफिया का बढ़ता प्रभाव
केन नदी के बालू (रेत) खनन पर सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, खनन माफिया आधुनिक तकनीक और राजनीतिक संरक्षण के बल पर यहां खुलेआम अवैध खनन कर रहे हैं। नदी के किनारे से लेकर इसके तल तक, हर जगह बालू के ट्रक दिन-रात भरते देखे जा सकते हैं। यह खनन न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि इसे करने वाले माफिया स्थानीय प्रशासन और कानून को चुनौती देते हुए अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
स्थानीय निवासियों की दुर्दशा
बांदा के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग इस अवैध खनन के सबसे बड़े शिकार हैं।
1. जलस्तर में गिरावट: केन नदी का लगातार दोहन भूजल स्तर को तेजी से गिरा रहा है। इससे किसानों के लिए सिंचाई और पीने के पानी की समस्या बढ़ गई है।
2. जमीन की कटाव: बालू खनन के कारण नदी के किनारे कटाव हो रहा है, जिससे आसपास के गांवों को खतरा बढ़ गया है।
3. आजीविका पर असर: मछुआरे, जो इस नदी पर अपनी जीविका निर्भर करते हैं, अब मछलियों की घटती संख्या के कारण प्रभावित हो रहे हैं।
प्राकृतिक संतुलन पर प्रभाव
नदी के तल से बालू निकालने के कारण नदी की धारा प्रभावित हो रही है। यह न केवल नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करता है, बल्कि आसपास की जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचाता है। कई जलचर और वन्यजीव अपने आवास खो रहे हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता
हालांकि स्थानीय प्रशासन समय-समय पर खनन रोकने के लिए कदम उठाता है, लेकिन ये प्रयास माफियाओं के रसूख के आगे नाकाफी साबित होते हैं। कई बार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर मिलीभगत के आरोप भी लगते हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब भी खनन रोकने के लिए आवाज उठाई जाती है, तब माफिया उन्हें धमकाते हैं। इससे गांवों में डर का माहौल बना रहता है।
सरकार और न्यायपालिका का रुख
खनन को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और न्यायपालिका ने कई सख्त कदम उठाए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने भी केन नदी पर खनन गतिविधियों पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद, माफिया इन नियमों की अवहेलना करते हुए अपने लाभ के लिए खनन जारी रखते हैं।
समाधान की दिशा में संभावित कदम
1. सख्त निगरानी: खनन गतिविधियों की निगरानी के लिए आधुनिक तकनीकों जैसे ड्रोन और सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
2. स्थानीय समुदाय की भागीदारी: ग्रामीणों को जागरूक करके उन्हें खनन विरोधी अभियानों में शामिल किया जाए।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप रोकना: खनन माफियाओं को मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण पर रोक लगाई जाए।
4. सख्त दंड: अवैध खनन में शामिल लोगों को कड़ी सजा दी जाए।
स्थानीय लोगों के लिए केन नदी आज वरदान की जगह अभिशाप कैसे साबित हो रहा है?
केन नदी, जो कभी बांदा जिले के लोगों के लिए वरदान थी, आज अवैध खनन और सरकारी उपेक्षा के कारण अभिशाप बनती जा रही है। इस नदी के लगातार दोहन ने स्थानीय लोगों की जिंदगी पर गंभीर प्रभाव डाला है।
1. जल संकट का गहराता संकट
केन नदी से बालू के अनियंत्रित खनन के कारण भूजल स्तर में भारी गिरावट आई है। इससे किसानों और स्थानीय निवासियों के लिए पीने और सिंचाई का पानी उपलब्ध कराना मुश्किल हो गया है। गर्मियों के मौसम में हालात और भी खराब हो जाते हैं, जब नदी में पानी की मात्रा नगण्य हो जाती है।
2. भूमि कटाव और बाढ़ का खतरा
खनन के कारण नदी के किनारे कमजोर हो गए हैं, जिससे भूमि कटाव की समस्या उत्पन्न हो रही है। बरसात के दौरान ये कटाव बाढ़ का रूप ले लेते हैं, जिससे न केवल खेती योग्य भूमि नष्ट हो रही है, बल्कि गांवों के घर भी खतरे में हैं।
3. रोजगार का नुकसान
मछुआरे, जो केन नदी पर निर्भर थे, अब मछलियों की घटती संख्या के कारण बेरोजगार हो रहे हैं। नदी के इकोसिस्टम पर खनन का इतना गहरा प्रभाव पड़ा है कि मछलियों के अलावा अन्य जलचर भी विलुप्त होने की कगार पर हैं।
4. स्वास्थ्य समस्याओं का बढ़ता प्रकोप
खनन के दौरान उड़ने वाली धूल और नदी के प्रदूषण के कारण स्थानीय लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं। पीने के पानी में गाद और अन्य हानिकारक तत्वों के कारण कई जलजनित बीमारियां फैल रही हैं।
5. सामाजिक अस्थिरता और भय का माहौल
खनन माफियाओं का आतंक स्थानीय लोगों के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है। जब भी ग्रामीण इस मुद्दे पर आवाज उठाते हैं, तो उन्हें माफिया से धमकियां मिलती हैं। इससे गांवों में डर और असुरक्षा का माहौल बन गया है। कई मामलों में, लोगों को खनन माफियाओं के खिलाफ बोलने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है।
6. खेती और पर्यावरण पर प्रभाव
केन नदी के किनारे की जमीन खनन के कारण बंजर होती जा रही है। खेतों में उपयोगी गाद (सिल्ट) की भरपाई नदी के प्राकृतिक प्रवाह से होती थी, लेकिन अब यह प्रक्रिया बाधित हो गई है। इससे किसानों की पैदावार घट रही है।
7. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व का ह्रास
केन नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। स्थानीय लोग यहां विभिन्न त्योहारों और अनुष्ठानों का आयोजन करते थे। लेकिन अब नदी के प्रदूषित और सूखते हालात ने इन परंपराओं को भी खतरे में डाल दिया है।
केन नदी, जो कभी स्थानीय लोगों के जीवन का आधार थी, आज उनके लिए मुश्किलों का कारण बन गई है। जल संकट, रोजगार की कमी, स्वास्थ्य समस्याएं, और माफियाओं का डर इसे अभिशाप बना रहे हैं। यदि अवैध खनन और प्रशासनिक उपेक्षा पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई, तो यह स्थिति और भी भयावह हो सकती है। नदी को बचाना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि स्थानीय समुदाय के अस्तित्व के लिए भी अनिवार्य है।