संतोष कुमार सोनी के साथ सोनू करवरिया की रिपोर्ट
बांदा(उत्तर प्रदेश)। बुंदेलखंड के हृदय में बसे बांदा जिले के ग्रामीण इलाकों में सरकारी गौशालाओं की स्थिति बदहाल है। इन गौशालाओं में गौंवशों की दुर्दशा का दृश्य ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को उजागर करता है। सरकारी दावों के विपरीत, हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
सरकारी गौशालाओं की बदहाली: एक मूक त्रासदी
बांदा के कई ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने पर यह स्पष्ट होता है कि यहां की सरकारी गौशालाएं कुप्रबंधन और संसाधनों की कमी की मार झेल रही हैं। यहां पर मौजूदा गौंवशों के लिए भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है।
भोजन की कमी
अधिकांश गौशालाओं में चारे की भारी कमी है। कहीं-कहीं तो गौंवशों को सूखा भूसा तक उपलब्ध नहीं होता। पशुओं को हरा चारा मिलना तो दूर की बात है, कई जगहों पर तो पशु भूख से तड़प रहे हैं।
पानी की समस्या
गर्मी के मौसम में पानी की उपलब्धता का संकट और भी विकराल हो जाता है। गौशालाओं में पानी की उचित व्यवस्था न होने के कारण पशु प्यास से बेहाल रहते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी
बीमार और घायल गौंवशों के लिए इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए कोई डॉक्टर या पशु चिकित्सा सुविधा नहीं है। नतीजतन, कई पशु इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं।
स्थानीय निवासियों की राय
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, सरकार द्वारा स्थापित गौशालाओं का संचालन कागजों में ही सुचारू रूप से चल रहा है। असल में, गौशालाओं की देखरेख के लिए जो बजट आता है, वह पशु सेवा में खर्च न होकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।
बिसंडा ब्लॉक के निवासी राम सिंह ने बताया, “गौशाला में गायों की स्थिति देखी नहीं जाती। कई बार हम लोग खुद अपने घर से चारा ले जाकर देते हैं।”
वहीं, तिंदवारी क्षेत्र की एक गौशाला के पास रहने वाले राकेश यादव ने कहा, “गौशालाओं में ना तो पर्याप्त चारा है और ना ही पानी। प्रशासन ध्यान नहीं देता, और कई बार तो कई गायें भूख-प्यास से मर भी जाती हैं।”
गौशालाओं के लिए सरकार की योजनाएं: कहां हो रही चूक?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य भर में हजारों गौशालाएं स्थापित की हैं ताकि आवारा और बेसहारा गायों की देखभाल की जा सके। इसके लिए सरकारी बजट से भारी धनराशि आवंटित की गई है।
हालांकि, बांदा जिले की स्थिति को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इन योजनाओं का लाभ यहां के पशुओं को नहीं मिल पा रहा है। सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है। इसका मुख्य कारण है स्थानीय प्रशासन की उदासीनता और भ्रष्टाचार।
क़रीब 60% गौशालाओं में नियमित रूप से चारा उपलब्ध नहीं होता, जिसके चलते गायों की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है।
स्थानीय आंकड़े बताते हैं कि औसतन हर गौशाला में 10-15 गायें कुपोषण का शिकार हैं।
जिले में 300 से अधिक बीमार गायें बिना इलाज के मर चुकी हैं, जो प्रशासनिक उदासीनता का स्पष्ट प्रमाण है।
केवल 25% गौशालाओं में कभी-कभार डॉक्टरों की टीम दौरा करती है, बाकी जगहों पर पशु चिकित्सा सेवाएं बिल्कुल भी नहीं पहुंचतीं।
बांदा जिले में कुल 100 से अधिक गौशालाएं हैं, जिनमें से लगभग 70% गौशालाओं की स्थिति अत्यंत खराब है।
30% गौशालाएं आंशिक रूप से ठीक हैं लेकिन उनमें भी संसाधनों की कमी है।
केवल 5-7% गौशालाएं ही ऐसी हैं जहां स्थिति अपेक्षाकृत संतोषजनक है।
क्या हो सकता है समाधान?
पारदर्शिता और निगरानी: गौशालाओं के लिए आवंटित बजट का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता और सख्त निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।
स्थानीय संगठनों की भागीदारी: स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और ग्रामीण समुदायों की भागीदारी से गौशालाओं की स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता: गौशालाओं में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति और नियमित स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था करनी चाहिए।
स्थाई चारे की व्यवस्था: ग्रामीण क्षेत्रों में चारे की खेती को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे गौशालाओं को स्थाई चारा मिल सके।
सरकारी आंकड़ों और वास्तविकता का अंतर
सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, गौशालाओं के संचालन के लिए हर साल करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया जाता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
2023-24 में, बांदा जिले की गौशालाओं के लिए 10 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था, लेकिन इनमें से केवल 40% राशि ही सही मायने में खर्च की गई।
बाकी का बजट कागजों में योजनाएं बनाकर या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
सितंबर 2024 में, बिसंडा ब्लॉक की एक गौशाला में 20 गायें चारा और पानी के अभाव में मरी पाई गईं।
अक्टूबर 2024 में, तिंदवारी क्षेत्र में 10 गायों की मौत ठंड और बीमारी से हो गई।
300 से अधिक मृत गायों के शवों को बिना उचित प्रबंधन के खुले में छोड़ दिया गया, जिससे दुर्गंध और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
बांदा जिले की सरकारी गौशालाओं की दुर्दशा केवल प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार का परिणाम नहीं है, बल्कि यह पशु सेवा के प्रति हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का भी सवाल उठाती है। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो गौंवशों की स्थिति और भी दयनीय हो सकती है।
सरकार को चाहिए कि वह केवल कागजों पर योजनाएं बनाने के बजाय जमीनी स्तर पर सुधार लाने के लिए ठोस कदम उठाए। तभी बांदा जैसे ग्रामीण इलाकों में गौशालाओं की स्थिति सुधर सकेगी।
{यह रपट बांदा जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे और स्थानीय निवासियों से बातचीत पर आधारित है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य सरकारी गौशालाओं की मौजूदा स्थिति को उजागर करना है ताकि सरकार और प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठा सकें।}