इरफान अली लारी की रिपोर्ट
देवरिया। ईद मिलाद-उल-नबी यानी पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के जन्मदिन की खुशी में निकाला गया जुलूस, जिसे जुलूसे-ए-मोहम्मदी कहा जाता है, 12 रबी-उल-अव्वल के मौके पर मनाया जाता है। 16 सितंबर, सोमवार के दिन देवरिया जिले के भाटपार रानी कस्बे और आस-पास के गांवों में बड़ी धूमधाम से यह जुलूस निकाला गया।
यह जुलूस सुबह 9 बजे से भाटपार रानी की जामा मस्जिद से शुरू हुआ। मस्जिद कमेटी की ओर से इस जुलूस का आयोजन बड़े ही अकीदत और ऐहतराम के साथ किया गया था। इस जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और अपनी-अपनी आवाज़ में पैगंबर मोहम्मद साहब की तारीफ में नातें (धार्मिक गीत) पढ़ रहे थे। किसी की ज़ुबान से “सरकार की आमद मरहबा” सुनाई दे रहा था, तो कोई “दिलदार की आमद मरहबा” कह रहा था। जुलूस के दौरान सभी लोगों के दिलों में पैगंबर की पैदाइश की खुशी झलक रही थी और पूरे वातावरण में उत्साह की लहर दौड़ रही थी।
इस मौके पर सपा के लोकप्रिय विधायक, आशुतोष उपाध्याय उर्फ़ बबलू, भी इस मोहम्मदी जुलूस में शामिल हुए और सभी को दिल से मुबारकबाद दी।
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उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम आपस में मिलकर इसी तरह पैगंबर की पैदाइश की खुशी मनाते रहें और वे हमेशा इस जश्न का हिस्सा बनते रहेंगे।
जुलूस के दौरान कई घोड़े भी आगे-आगे चल रहे थे, जो इस जुलूस की शोभा बढ़ा रहे थे। साथ ही, अमन और शांति का भी संदेश दिया गया, जहां हर तरफ भाईचारे का माहौल था। पुलिस प्रशासन ने भी शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जुलूस के साथ कदम से कदम मिलाकर चला।
ईद मिलाद-उल-नबी मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद अहम दिन है। यह दिन पैगंबर मोहम्मद साहब की पैदाइश के तौर पर मनाया जाता है।
इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल में मनाए जाने वाला यह त्यौहार सुन्नी मुसलमानों के लिए बहुत मर्तबा वाला दिन होता है। इस दिन को बड़ी अकीदत और खुशी के साथ मनाया जाता है, क्योंकि यही वह दिन है जब पैगंबर मोहम्मद, जो कि नबियों के सरदार और समस्त कायनात के रहम करने वाले बने, इस धरती पर तशरीफ लाए।
इस खुशी में हर साल जश्न-ए-मिलादुन्नबी मनाया जाता है, ताकि पैगंबर मोहम्मद के जीवन और उनके द्वारा दी गई रहमतों को याद किया जा सके।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."