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26 December 2024 11:04 pm

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चमड़ा टैनरियों की हालत खराब ; निर्यात के चक्कर में देसी बाजार को गहरी चोट, हजारों मजदूर बेरोजगार

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

कानपुर और उन्नाव के चमड़ा उद्योग में इन दिनों कच्ची खाल (रॉ हाइड) की भारी कमी हो गई है, जिसके कारण टैनरियां अपनी क्षमता का केवल एक चौथाई ही काम कर पा रही हैं। 

इस कमी के कारण देसी बाजार में कच्ची खाल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं, जिससे व्यापारियों को दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोपीय देशों से प्रोसेस्ड चमड़ा आयात करना पड़ रहा है। इसका सीधा असर व्यापार के बढ़ते इम्पोर्ट बिल पर पड़ा है। 

विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा मुनाफे की लालच में रॉ हाइड की कम कीमत वाली बिलिंग (अंडर इनवॉइसिंग) कर इसे विदेशों को निर्यात किया जा रहा है और फिर वही खाल खरीदकर व्यापार चलाया जा रहा है। 

चमड़ा कारोबारियों के संगठन, काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट, ने मांग की है कि देश से कच्ची खालों का निर्यात तुरंत पूरी तरह से रोका जाए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कानपुर में 402 चमड़ा टैनरियां हैं, जहां मवेशियों की खालों को केमिकल से साफ किया जाता है। 

व्यवसायी नैय्यर जमाल ने बताया कि रॉ हाइड का कारोबार एक साइकल की तरह चलता है। जब मवेशी दूध देना बंद कर देते हैं, तो किसान उन्हें स्लॉटर हाउसों को बेच देते हैं। वहां से मिली कच्ची खालों को प्रोसेस कर लेदर उत्पाद बनाए जाते हैं। 

पिछले 4-5 महीनों से अचानक कच्ची खालों की कमी हो गई है। पहले 600-700 रुपये में मिलने वाली खाल अब 1200-1300 रुपये में मिल रही है। इसके पीछे अंडर बिलिंग के जरिए कच्ची खालों का थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है। वहां से प्रोसेसिंग के बाद इसे आयात किया जा रहा है। इसका नतीजा यह है कि कानपुर और उन्नाव की टैनरियों में प्रोसेसिंग के काम में लगे हजारों मजदूर खाली बैठे हैं। 

नैय्यर जमाल के अनुसार, कानपुर की लगभग 250 टैनरियां बंद हो गई हैं। इसका कारण कड़े सरकारी प्रदूषण नियम और कच्ची खाल की कमी है। ज्यादातर जूते बनाने वाले कारोबारी आयातित चमड़े पर निर्भर हो गए हैं। 

एक अन्य कारोबारी ने बताया कि साउथ ईस्ट एशिया के देशों में भैंस नहीं पाई जाती है, इसलिए तस्करी और अन्य माध्यमों से कच्ची खालें वहां पहुंचाई जा रही हैं, जिससे देश में रोजगार के मौके घट रहे हैं। 

काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट के रीजनल चेयरमैन असद कमाल ईराकी ने बताया कि कानपुर और उन्नाव के चमड़ा कारोबारी बेहद मुश्किल में हैं। कच्ची खाल की कमी के कारण 90 टैनरियां केवल 5-10% क्षमता पर ही काम कर पा रही हैं।

इस समस्या का तुरंत समाधान निकाला जाना चाहिए ताकि आयात का बिल घट सके और देश में रोजगार के मौके बढ़ सकें। कच्ची खालों का निर्यात तुरंत रोका जाए, यह आवश्यक है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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