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November 23, 2024 2:47 am

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कांग्रेस-BJP के बीच  कड़ी टक्कर ; ‘गांधी’ की प्रतिष्ठा से ज्यादा रायबरेली को है बड़े कायाकल्प की जरूरत

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ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) से पहले ही कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने रायबरेली सीट छोड़ने का फैसला किया। वे राजस्थान से राज्यसभा चली गई हैं। 

अब खबरें हैं कि इस सीट से गांधी परिवार के ही किसी सदस्य जैसे प्रियंका गांधी या फिर राहुल गांधी चुनाव लड़ सकते हैं। इन सबसे अलग अगर रायबरेली की स्थिति की बात करें तो वह बेहद खराब है, जो यह सवाल उठाता है कि देश के जाने माने परिवार की विरासत कहे जाने वाले रायबरेली शहर में कई मूलभूत सुविधाएं तक नहीं है। इसको लेकर यहां की आम जनता में भी दिक्कतें हैं।

इसको लेकर कांग्रेस नेताओं में से एक और पार्टी की शहर समिति के सचिव अमित मिश्रा कहते हैं कि वह इस बात से आहत हैं कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत रायबरेली आए राहुल गांधी अपनी जीप से बाहर नहीं निकले। 

उन्होंने कहा कि आप परिवार का रिश्ता कहते हैं पर रायबरेली में 29 स्थानों पर राहुल का स्वागत किया गया, वह कहीं भी जीप से बाहर नहीं उतरे।

गांधी परिवार को लेकर लगातार भावनात्कम जुड़ाव की बात कही जाती है, लेकिन कांग्रेस नेता अमित इस बात से नाखुश दिखते हैं। उन्होंने कहा कि रायबरेली में पार्टी कार्यकर्ताओं को ध्यान चाहिए कि भावनाओं की भी उम्र होती है। 

पार्टी ने 39 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की है लेकिन अमेठी और रायबरेली के प्रत्याशियों का कोई अता-पता नहीं है।

गौरतलब है कि कांग्रेस अमेठी में राहुल गांधी को मिली हार से अभी भी सकते में है। ऐसे में अब पार्टी की एक मात्र सीट केवल रायबरेली की है। ऐसे में सोनिया गांधी का अमेठी छोड़ना बता रहा है कि रायबरेली में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है। 

कांग्रेस के स्थानीय नेता बताते हैं कि इस चुनाव में पार्टी जोखिम नहीं उठा सकती। पार्टी के कुछ दिग्गजों ने इंदिरा गांधी के साथ अपने रिश्तेदारों की तस्वीरें निकालीं; कुछ पूर्व प्रधान मंत्री द्वारा लिखे गए पत्र साझा करते दिखे।

इस दौरान युवा लोग इस बात से नाराज़ हैं कि गांधी परिवार के सदस्य निर्वाचन क्षेत्र का दौरा तक नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आखिरी बार सोनिया ने जनवरी 2020 में रायबरेली का दौरा किया था, जब वह प्रियंका के साथ थीं। दोनों ही पूर्व विधायक अजय पाल के बेटे के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने पहुंचे थे।

गांधी परिवार की उपस्थिति ने रायबरेली को वीवीआईपी चमक प्रदान की लेकिन यह विकास के मामले में पिछड़ता दिख रहा है क्योंकि इसे गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों के साथ भूमि और मंजूरी के लिए संघर्ष करना पड़ा। 

2004 से 2024 तक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली सोनिया ने रेल कोच फैक्ट्री, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआईएफटी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एंड रिसर्च (एनआईपीईआर) की सौगात दी थी। 2014 में यूपीए सत्ता से बाहर हो गई तो परियोजनाएं या तो धीमी हो गईं या प्रस्तावों पर कभी प्रकाश ही नहीं पड़ा।

2013 में यूपीए शासन के दौरान प्रस्तावित देश का “पहला महिला विश्वविद्यालय”, केंद्र में कांग्रेस के सत्ता खोने के बाद कभी पूरा नहीं हुआ है। कांग्रेस की जीत का अंतर कम होना पार्टी के लिए चिंता का कारण है। 

2009 में जीत का अंतर 3.72 लाख से घटकर 2014 में 3.52 लाख और 2019 में मात्र 1.66 लाख हो गया, जब सोनिया ने दिनेश प्रताप सिंह को हराया, जबकि समाजवादी पार्टी परंपरागत रूप से रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारती है और जब वह विधानसभा चुनावों में ऐसा करती है, तो कांग्रेस लगातार हारती जा रही है।

कांग्रेस में रहीं अदिति सिंह ने इसको लेकर कहा कि रायबरेली को कांग्रेस की सीट कहना गलत है। जनता पार्टी एक बार इंदिरा के खिलाफ जीती थी और फिर मेरे चाचा अशोक सिंह भाजपा उम्मीदवार के रूप में रायबरेली लोकसभा से दो बार (1996 और 1998) जीते। 

यह सच है कि इस सीट का प्रतिनिधित्व लंबे समय तक कांग्रेस ने किया है, लेकिन दुर्भाग्य से उसके पास दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। गांधी परिवार भले ही 10 साल से सत्ता में नहीं है, लेकिन यह आपको अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करने या उसकी देखभाल करने से नहीं रोकता है।

रायबरेली का माहौल बता रहा है कि कांग्रेस पार्टी को लेकर लोगों में नाराजगी है और यह नाराजगी बीजेपी भुनाने का प्रयास में है जो कि पार्टी लोकसभा चुनाव के लिहाज से फायदा पहुंचा सकती है। ऐसे में इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान रायबरेली सीट काफी दिलचस्प नतीजे दे सकती है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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