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November 21, 2024 7:05 pm

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खिलेगा फिर से कमल का फूल या फिर चलने लगेगी साइकिल? समय के गर्भ में ये सवाल तलाश रही है जवाब

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगने वाली है। एकतरफ जहां समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव यह मानते हैं कि आजमगढ़ सीट पर उनका किसी से मुकाबला नहीं है। लेकिन भाजपा इस सपा के इस ख्याल को ख्यालों में ही रखना चाहती है।

गौरतलब है कि 2024 आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए होने वाले चुनाव में अभी से तैयारी शुरू हो गई है। सभी संभावित प्रत्याशियों को लेकर अब तीनों पार्टियों की स्थिति कुछ हद तक साफ हो चुकी है।

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी की तरफ से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवपाल यादव को अपना उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

वहीं बसपा जिले की मुबारकपुर विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रह चुके गुड्डू जमाली को अपना उम्मीदवार बना सकती है। तो वहीं भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को फिर चुनाव में उतारने की तैयारी में है।

2022 के लोकसभा उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहे सपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि 2024 इस बार पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव को सीट के लिए जातीय समीकरण के लिहाज से आजमगढ़ 2024 लोकसभा सीट पर जीत के प्रति आश्वस्त किया है। इसी वजह से उन्होंने किसी और प्रत्याशी पर भरोसा नहीं जताया है।

अखिलेश यादव अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए इस चीज को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं। अखिलेश यादव यह मानते हैं कि आजमगढ़ में उनका किसी से मुकाबला नहीं है।

आजमगढ़ लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 5 विधानसभा गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ सदर और मेहनगर का क्षेत्र शामिल है। इन सभी विधानसभा में समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की है। इसलिए सपा को पूरा भरोसा है कि इस बार लोकसभा में जीत उसी की होगी।

वहीं दूसरी तरफ आजमगढ़ लोकसभा सीट के जातीय समीकरण के हिसाब से अखिलेश यादव जीत पक्की मान रहे हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उनकी जीत पक्की है क्योंकि 19 लाख के मतदाता वाली लोकसभा सीट में सपा के वोट बैंक की यादव मतदाता 26 फीसदी और मुस्लिम मतदाता 24 फीसदी को जोड़ दें तो 50 फ़ीसदी वोटरों पर उनकी पकड़ मजबूत है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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