आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा। जिले का “निकम्मा सूचना विभाग मीडिया एवं प्रशासन के बीच वैमनस्यता की दरार डाल” रहा है? हालत यह हैं की “अपने निकम्मेपन से यह जहां अपने दायित्वों का पालन नहीं कर पा रहा वहीं यह शासकीय निर्देशों को धत्ता बता” रहा है!
शासन का निर्देश है कि सूचना विभाग मीडिया से मधुर तालमेल रखें। जिससे सरकार की योजनाओं एवं कार्यशैली को प्रमुखता से प्रचार मिल सके। लेकिन हालत यह है कि “सूचना विभाग उल्टा बांसुरी बजा रहा है! इस कहानी को चरितार्थ करता है कि “अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह -चीन्ह के देय”?
ऐशा इसलिये लिखा जा रहा है कि “डीएम की प्रेस वार्ता होनी होगी तो उन्हीं मीडिया वालों को बुलाया जायेगा जो समान्यतया इन्हें अपना मालिक एवं विधाता समझते” हैं।
अब ताजा उदाहरण बताता हूँ जो उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि सूचना विभाग की कदाचारिता को दर्शाता है। अवसर था दीपावली पर्व के आगमन पर डीएम और एसपी द्वारा पत्रकारों को मिष्ठान एवं दिया वितरण का। इसमें सूचना विभाग ने अपने खास 30-35 मिष्ठान एवं दीपक वितरण करा दिया गया। इससे पत्रकारों में भेद -भाव होने का संदेश गया। सूचना विभाग ने सफाई दिया कि कलक्ट्रेट सभागार में सारे पत्रकारों को बैठने की जगह नहीं थी पर इस तरह की निकम्मी सोच कई मौकों पर दिखाने वाले सूचना विभाग को कौन समझाए कि यह आयोजन विकास भवन सभागार में भी हो सकता था। “बात मीठा और दीया की नहीं सूचना विभाग की सोच और कार्यशैली की है जो निरन्तर प्रशासन एवं मीडिया के बीच खाई उत्पन्न करने का कथित” कार्य कर रहा है।
Author: samachar
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