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November 22, 2024 11:27 am

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16 साल पहले किए काम दिखाएं करके वरना इमरान का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? पढ़िए इस खबर को

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

पश्चिम यूपी में अचानक सियासी हलचल तेज हो गई है। इसकी वजह ये है कि मायावती ने इमरान को बसपा से निकाल दिया है। इमरान काफी धूमधाम के साथ बसपा में आए थे। उनको नगर निगम चुनाव में मेयर टिकट भी दिया गया। साथ ही संगठन में पश्चिम यूपी और उत्तराखंड की जिम्मेदारी भी दी।

पार्टी ने अनुशासनहीनता की बात कहते हुए पूर्व विधायक मसूद को बाहर कर दिया है। बसपा की इस कार्रवाई के बाद सवाल ये है कि सहारनपुर में राजनीति करने वाले इमरान मसूद के पास अब विकल्प क्या है।

किस पार्टी में जाएंगे इमरान?

इमरान मसूद बसपा से निकाल दिए गए हैं। अखिलेश यादव से विधानसभा चुनाव के बाद ही उनके रिश्ते तल्ख हो गए थे। भाजपा और उनका मिजाज नहीं मिलता है। कांग्रेस में भी वो रहकर आ गए हैं तो अब इमरान मसूद के पास क्या विकल्प बचे हैं।

इमरान मसूद लोकसभा चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में कितनी संभावना है कि उनको कांग्रेस या राष्ट्रीय लोकदल लोकसभा चुनाव लड़ाने का वादा कर ज्वाइन कराए। जाहिर है कि गठबंधन बनने की स्थिति में पार्टियों को खुद सीटों को लेकर क्लियर नहीं है तो किसी नेता से क्या वादा किया जा सकता है। ऐसे में अच्छा है कि इमरान 16 साल पुराना इतिहास दोहरा दें।

क्या हुआ था 16 साल पहले

इमरान मसूद ने साल 2006 में राजनीति में एंट्री की थी। उन्होंने सहारनपुर नगरपालिका का चुनाव जीता और चेयरमैन बन गए। इमरान सपा में थे, उन्होंने 2007 में विधानसभा का टिकट मांगा। उनको टिकट नहीं मिला, इमरान ने सपा की सरकार होते हुए बगावत का झंडा उठाया और निर्दलीय लड़ गए। इमरान ने सपा के जगदीश राणा को चुनाव हरा दिया। ये वो चुनाव था, जिसने रातोंरात इमरान को पश्चिम का स्टार बना दिया। इस जीत के बाद इमरान की ना सिर्फ सपा में भी कदर हो गई बल्कि उनको कांग्रेस ने भी हाथोंहाथ लिया। कह लीजिए कि बीते 16 साल से इमरान इसी चुनाव की जीत को भुना रहे हैं।

बसपा से निकाले जाने के बाद इमरान एक बार फिर बेरास्ता अकेले खड़े हैं। इमरान की हालत को देखते हुए साफ है कि उनकी शर्तों पर अब कोई पार्टी उनको शायद ही लेगी। ऐसे में एक ही रास्ता है कि वो 16 साल पहले वाला काम फिर से करके दिखाएं। यानी वो अपनी ताकत दिखाएं और आने वाले चुनाव में अपने दम पर कोई फर्क पैदा कर दें। इसके बाद ही संभव है कि कोई पार्टी उनको पूछे, अगर ऐसा नहीं होता है तो शायद फिर उनके लिए राजनीतिक वापसी मुश्किल हो जाएगी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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