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November 2, 2024 4:59 am

औघड़ दानी बामेश्वर, जो हजारों फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान अपने भक्तों की आज भी सुनते हैं 

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

भक्तों पर कृपा बरसाने वाले भगवान भोलेनाथ के अनेकों नाम हैं। महर्षि बामदेव की तपस्थली बांदा नगर में भगवान श्री बामदेवेश्वर विराजमान है। ऐसी किवदंती है कि महर्षि बामदेव की तपस्या से बांबेश्वर पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना हुई थी। यह मंदिर रामायण कालीन माना जाता है।

मंदिर के पुजारी पुत्तन महाराज बताते हैं कि बांदा ऋषि वामदेव की तपोस्थली रही है। इसी पर्वत पर ऋषि वामदेव तपस्या किया करते थे। मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान राम जब माता जानकी और भाई लक्ष्मन के साथ चित्रकूट आए, तब उन्हें पता चला कि बांदा में वामदेव तपस्या कर रहे हैं।यह जानकर भगवान राम उनसे से मिलने इसी पर्वत पर आए। कहते हैं कि भगवान राम के आने की खबर सुनकर पत्थर भी इतने आनंदित हो गए कि जहां-जहां उनके चरण पड़े, उस पत्थर से संगीत की धुन निकल पड़ी थी। त्रेतायुग से कलयुग यानि आज तक यह धुन उसी तरह निकल रही है।

सावन मास में शिवभक्ति का खास महत्व है। इस माह में जो भी भगवान शिव की अराधना करते हैं उन्हें हजार गुना फल अधिक मिलता है। महर्षि बामदेव की नगरी में विराजमान श्रीबामदेवेश्वर बहुत ही प्राचीन स्थान हैं। इसका उल्लेख रामायण काल में भी बताया जा रहा है। पर्वत चोटी पर गुफा के अंदर विराजमान शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए यूं तो प्रतिदिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन सावन मास में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ जाती है। सोमवार के दिन लोग तड़के से ही प्रभु के दर्शन व पूजा अर्चना के लिए मंदिर में पहुंच जाते हैं और भीड़ इस कदर हो जाती है कि पंक्ति में खड़े होकर दर्शन के लिए पहुंचना पड़ता है। मंदिर के पुजारी महाराज पुत्तन तिवारी बताते हैं कि महर्षि बामदेव का तपस्या स्थल बांबेश्वर पर्वत था। महर्षि की तपस्या से गुफा के अंदर शिवलिंग स्थापित हुए पहले यह गुफा इतनी नीची थी कि लोगों को लेटकर दर्शन के लिए जाना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे कर गुफा ऊंची होती चली गई और अब लोग दर्शन के लिए खड़े होकर प्रवेश कर जाते हैं। पुजारी जी कहते हैं कि प्रतिवर्ष एक जौ गुफा की ऊंची होने की किवदंती है। प्रभु के दरबार में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से आता है प्रभु उसकी जरूर सुनते हैं और मुरादें पूरी होती हैं।

सावन के महीने में लोग अखंड ज्योति जलाते हैं

बाम्देवेश्वर पर्वत पर ही है एक विशाल शिव मंदिर भी है, यहां शिवलिंग स्थापित है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक, इस शिवलिंग को महर्षि वामदेव ने स्थापित किया था। भगवान राम ने यहां आकर शिव की आराधना की थी। ऐसी मान्यता है कि यहां शिव पूजा का सबसे अच्छा फल मिलता है। यहां महामृत्युंजय का जाप भी फलदाई होता है।

सावन के महीने पर यहां बड़ी संख्या में लोग अखंड ज्योति जलाते हैं। ऐसा करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

कांवड लेकर जिले से जाने वाले शिवभक्त चित्रकूट स्थित रामघाट में पंचमुखी शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के बाद बामदेवेश्वर मंदिर में आकर जलाभिषेक करते हैं। यहीं से उनकी कांवड़ यात्रा पूर्ण होती है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."