आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
बांदा। इस साल जसईपुर का रफीक कुछ दिन पहले पाकिस्तान की जेल से छूटकर अपने गांव आया है। रफीक को देखकर उसकी मां की आंखों से आंसू छलक पड़े ।भाइयों ने गले लगा लिया। पूरा गांव उमड पडा उसे देखने के लिये ।
बहने भाई का स्वागत करने को दौड पडीं। रिश्तेदार उसकी एक झलक पाने को आतुर हो उठे। पूरे गांव मे खुशियां छा गयीं। बूढे, बच्चे, जवान सब खुशी से झूम उठे। आदि.. आदि…
गोया रफीक कोई ऐसा राजा-महाराजा है जो पाकिस्तान से कोई जंग जीतकर आया है…
गनीमत है कि इस साल अकेला रफीक पाकिस्तान की जेल से छूटकर आया है। इसके पहले पाकिस्तान की जेलों से छूटकर जसईपुर आने वाले मछुआरों की संख्या हर साल 8 से 18 तक हुआ करती थी।
हर बार एक जैसी कहानी यह कि – समन्दर मे मछली का शिकार करते-करते पाकिस्तान की सीमा मे प्रवेश कर गये। पाक सैनिकों ने घेरकर पकड लिया। नाव जब्त कर ली। पकडकर जेल मे ठूंस दिया । एक साल या दो साल बाद छोडा है।
मेरा मानना है कि 80 के दशक से, यानी जब से हमने पत्रकारिता की शुरुआत की तब से हर साल जसईपुर के मछली आखेटकों के पाकिस्तान मे पकडे जाने की खबरे विभिन्न अखबारों मे देखी और पढी हैं। कोई साल नागा नहीं हुआ, हर साल पकडे जाते रहे, हर साल छोडे जाते रहे।
पकडे जाने पर गांव और परिवार मे लोग शोक मनाते थे, अथवा रोते-गाते थे ? नहीं मालूम लेकिन अचानक खबर आती थी कि पाकिस्तान की जेलों मे कैद मछली का शिकार करने गये जसईपुर के 23 लोगों को पाकिस्तान की जेलों से रिहा कर दिया गया है। दो दिन बाद सब गांव आ जायेंगे।
बस फिर क्या था… हम जैसे नये नवाढे अति उत्साहित पत्रकार डायरी पेन लेकर दौड पडते थे जसईपुर गांव की ओर। गांव मे दीवाली जैसा माहौल दिखाई पडता था। मानो-रामजी लंका फतह करके अयोध्या लौट रहे हों ? साल- दर साल निरंतर यही क्रम चलता रहा। हर साल पकडे जाते रहे, हर साल छोडे जाते रहे सिर्फ जसईपुर के लोग, बाकी जिले के किसी गांव के लोग न पकडे जाते थे, न छोडे जाते थे ?
हर साल इनकी पत्नियां अपने सुहाग के लौटने की खुशी मे उत्सव मनाती रहीं। माताओं की आंखे खुशी से भर आती रहीं। लेकिन किसी मां, पत्नी और भाई ने इन्हे नहीं रोका कि पाकिस्तान की सीमा मे मछली पकडने क्यों जाते हो ? छूट आये हो तो अब न जाना।
त्रेतायुग मे वनवासी राम और भरत जैसे भाई के मध्य चित्रकूट मे सिर्फ एक बार भरत मिलाप हुआ था। जसईपुर मे हर साल भरत मिलाप होता रहा। जो अब भी जारी है। पाक जेलों से अपने भाइयों के रिहा होने की खुशी मे गांव मे रहने वाले भाई खुशी से झूम उठते हैं। गले लगकर एक-दूसरे से लिपट पडते हैं। गजब का भ्रातृत्व प्रेम ! ऐसा प्रेम तो रावण-कुम्भकरण मे भी नहीं था ? मां, पत्नी, बच्चे सब आनंदित हो उठते हैं। कभी-कभी जिले के प्रशासनिक अफसर भी गांव पहुंचकर हमदर्दी जता आते हैं। सरकारी सुविधाओं का पिटारा भी खोल देते हैं। किन्तु किसी ने इनसे यह जानने की कोशिश नहीं किया कि इतना बडा रिस्क लेकर पाकिस्तान की सीमा मे क्यों जाते हो ? साल -दो साल के बाद सकुशल लौट भी आते हो ?
पकडे जाने के समय – कब पकडे गये ! कैसे पकडे गये ! कहां की जेल मे रखा गया ! कैसा काम लेते थे ? यह सब गोपनीय क्यों रखते हो ? क्यों ? आखिर क्यों ?
बकौल रफीक जसईपुर के 3 और पडोसी गांव भुजरख के उसके साथ पकडे गये थे। वह अब भी पाकिस्तान की जेल मे बंद हैं। खानापूरी करने के बाद उन्हे भी रिहा करने की प्रक्रिया को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
कुछ दिनो तक गांव, घर, नाते रिश्तेदारी मे लहराने के बाद यह सब फिर वापी, गुजरात के समन्दर मे लहराने पहुंच जायेंगे ! और पाकिस्तानी समंदर मे घुसकर वहां की कथित जेलों मे हातिम ताई के किस्से मे वर्णित विश्व विख्यात मुर्गाबी अंडेे के बराबर मोती की दास्तान सुनायेंगे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."