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23 February 2025 8:19 pm

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“बाहु” की ताकत “बुद्धि” से दिखाकर कैसे बने “बाहुबली” नेता हरिशंकर तिवारी…आइए जानते हैं  

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वह गोरखपुर का पर्याय बन गए हैं। लगातार दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर बैठे सीएम योगी ने इसी जमीन पर सांसद से लेकर सीएम तक का सफर तय किया। हालांकि सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। इसी गोरखपुर शहर में आज से 6 साल पहले 2017 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमकर नारे लगे थे। तब उन्हें सीएम बने हुए बमुश्किल एक महीना ही हुआ था। आज इसी शहर में सैकड़ों लोगों की जुबान से नम आंखों के साथ- जब तक सूरज चांद रहेगा, बाबा तेरा नाम रहेगा के नारे गूंज उठे हैं। तब योगी के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे और आज विदाई जुलूस में लग रहे नारों का संबंध एक शख्स से है। नाम है- हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari)।

हरिशंकर तिवारी और योगी आदित्यनाथ दोनों ही गोरखपुर की राजनीति की धुरी रहे। एक जहां राजनीति के अपराधीकरण के दौर में परवान चढ़ा तो वहीं दूसरा हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे सीएम की कुर्सी तक पहुंचा। लेकिन दोनों कभी भी राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में साथ नहीं रहे। दूरियां बरकरार रही। अहम वजह रही- जातीय गोलबंदी की राजनीति। योगी जहां उस गोरक्ष पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे दिग्विजयनाथ के समय से ठाकुरों की पीठ कहा जाता है। और दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मणों को लामबंद किया।

हरिशंकर तिवारी की गिनती उन नेताओं में होती है, जिन्होंने पूर्वांचल ही नहीं पूरे यूपी की राजनीति को बदलकर रख दिया। राजनीति में बाहुबल और अपराधीकरण की शुरुआत हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच ठनी दुश्मनी से ही मानी जाती है। यह वो दौर था, जह माफिया और गैंगवार जैसे शब्द गोरखपुर की सीमा में दाखिल हो गए थे।

हरिशंकर के समय गोरखपुर यूनिवर्सिटी में बलवंत सिंह नेता थे। दोनों में अदावत थी। यह दौर तेजतर्रार युवा नेता रवींद्र सिंह का भी था, जो छात्रसंघ से लेकर विधानसभा तक पहुंचे। हरिशंकर के मजबूत होने के बदलते दौर में बलवंत और रवींद्र दोनों की हत्या हो गई। आरोप गाहे-बगाहे हरिशंकर पर ही लगा। इसके बाद राजपूत लॉबी की कमान संभाल ली वीरेंद्र शाही ने।

वीरेंद्र शाही को ठाकुर गुट का अगुवा माना जाता था। यह भी माना जाता था कि उन्हें गोरक्षपीठ का समर्थन हासिल है। वहीं दूसरी तरफ हरिशंकर ब्राह्मण बिरादरी के नेता बनकर उभरे। दोनों नेताओं के बीच अदावत ने देखते ही देखते पूरे इलाके में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय की लामबंदी शुरू करा दी। शाही और तिवारी ने गोरखपुर नॉर्थ ईस्ट रेलवे मुख्यालय पर कब्जा हासिल करने की होड़ शुरू की। रेलवे टेंडर के खेल में तमाम लाशें गिरीं। इन्हें कंट्रोल करने के लिए गैंगस्टर ऐक्ट लागू किया गया।

हरिशंकर ने चिल्लूपार से राजनीति शुरू की। वहीं शाही भी महराजगंज की लक्ष्मीगंज सीट से चुनाव जीत गए। दोनों में वर्चस्व की जंग जारी रही। दुश्मनी में कई लाशें गिरीं। बाद में लखनऊ में 1997 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने शाही का कत्ल कर दिया। इसके बाद गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ संसदीय राजनीति में कूद पड़े। वह एक के बाद एक संसद का चुनाव जीतते गए और तिवारी गुट के खिलाफ राजनीतिक गोटियां सेट करना शुरू कर दिया।

वक्त के साथ सबकुछ ठंडा पड़ता नजर आया। लेकिन 2017 में योगी के सीएम की कुर्सी पर बैठने के साथ ही गोरखपुर शहर में हरिशंकर तिवारी और परिवार के आवास ‘तिवारी बाबा का हाता’ पर छापा पड़ा। पुलिस ने लूट के आरोपी एक शख्स की तलाश में छापा मारा। अक्टूबर 2020 में हरिशंकर के बेटे तत्कालीन विधायक विनय शंकर तिवारी और बहू रीता तिवारी के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज किया। विनय शंकर तिवारी की कंपनी से जुड़े बैंक फ्रॉड के मामले में सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापेमारी की।

2017 के अप्रैल महीने में पुलिस की तरफ से बिना वॉरंट घर में घुसकर छापेमारी की घटना के बाद बुजुर्ग हरिशंकर तिवारी खुद डीएम ऑफिस की तरफ धरना देने के लिए चल पड़े। उनके पीछे बड़ी संख्या में लोगों का कारवां जुड़ा। योगी सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई का आरोप लगाकर जमकर नारेबाजी की गई।

बदलते दौर में गोरक्ष पीठ और तिवारी हाता के बीच अप्रत्यक्ष जंग थमता नजर आया। योगी के सीएम बनने के बाद तिवारी फैमिली पर कभी छापेमारी तो कभी सीबीआई जांच की आंच भी ठंडी होती नजर आई। लेकिन 16 मई की शाम हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ अंतिम दर्शन को पहुंचना तो दूर शोक का कोई संदेश भी जारी नहीं होने से लोग दबी जुबान में दुश्मनी की चर्चा करते नजर आए।

सियासत के बाहुबली थे हरिशंकर तिवारी

अपराध से लेकर सियासत जगत तक झंडा बुलंद करने वाले हरिशंकर की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि वह हर सरकार में मंत्री रहे। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस, सपा या बसपा। सबमें ही उनकी बराबर पूछ रही।

साल 1996 में कल्याण सिंह की सरकार में हरिशंकर साइंस ऐंड टेक्नॉलजी मंत्री बने। फिर 2000 में स्टैम्प रजिस्ट्रेशन मंत्री बन गए। साल 2001 में राजनाथ सिंह सीएम बने, तब भी मंत्रालय मिला। 2002 में मायावती मुख्यमंत्री बनीं, तब भी एक मंत्रालय हरिशंकर को मिला। इसके बाद 2003 में मुलायम यादव की अगुवाई वाली सपा की सरकार में भी हरिशंकर तिवारी ने गोटी सेट किया और मंत्री बन गए।

गोरखपुर जिले के दक्षिणी छोर पर चिल्लूपार विधानसभा से हरिशंकर तिवारी लगातार 22 साल तक विधायक बने रहे। 1985 में पहली बार चुनाव जीतने से लेकर 2002 में जीतकर 2007 तक वह यहां से विधायक रहे। निर्दलीय प्रत्साशी के तौर पर शुरू हुआ सफर कांग्रेस से होते हुए अलग-अलग दलों के साथ जारी रहा।

हरिशंकर तिवारी ने अपने बाद की पीढ़ी को राजनीति में स्थापित किया। 2007 में उनके भांजे गणेश शंकर पांडेय को बसपा सरकार के समय में यूपी विधान परिषद का अध्यक्ष बनाया गया। बड़े बेटे भीष्म शंकर कुशल तिवारी संतकबीरनगर से सांसद का चुनाव जीते। छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार से विधायक बने।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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