अनिल अनूप की खास रिपोर्ट
निर्भया गैंगरेप केस को आज 10 साल हो चुके हैं। इसके ठीक दो दिन पहले राजधानी फिर शर्मसार हुई। दिल दहला देने वाली एक और घटना सामने आई। बेखौफ अपराधियों ने एक बेटी को निशाना बनाया। स्कूल जाने के लिए घर से निकली स्टूडेंट पर बाइक सवार दो नकाबपोशों ने एसिड अटैक किया। 17 साल की लड़की का सफदरजंग अस्पताल में इलाज जारी है। कुछ सिरफिरों के कारण एक और बच्ची की जिंदगी बर्बाद। क्या बातों में बेटियां हैं? 10 साल में क्या बदला है? फल-तरकारी की तरह तेजाब की ऑनलाइन बिक्री हो रही है। अपराधी खुल्लम-खुल्ला वारदातों को अंजाम देकर घूम रहे हैं। ऐक्शन के नाम पर मुंह हिलाने का काम चल रहा है। पीड़ित बेटियों का तो नहीं पता, लेकिन अपराधी कानून से खिलौने की तरह खेल रहे हैं। उन्हें न पुलिस का कोई डर है न अदालतों का। ऐसा है तो इसकी वजह सिस्टम का निठल्लापन है। सालों साल पीड़ित ही पीड़ित रहता है। उसके दर्द पर ‘ऐक्शन के मरहम’ की जगह ‘निकम्मेपन का नमक’ छिड़क दिया जाता है। सड़कों पर निकलती ये बेटियां हमारे-आपके घर की ही हैं। आज किसी के साथ हुआ तो जरूरी नहीं है कल वह आपके साथ नहीं हो सकता है। लेकिन, एक बात जरूर है। एक दशक में हालात में बहुत बदलाव नहीं हुआ है।
दिल्ली में लड़की पर एसिड अटैक, तो पुलिस ने फ्लिपकार्ट को नोटिस क्यों जारी किया
एक दशक पहले दिल्ली को वो सर्द रात आज भी ठिठुराती है। चलती बस पर सामूहिक बलात्कार। छात्रा के साथ उसके एक मित्र की मौजूदगी में इस घटना को अंजाम दिया गया था। फिर दोनों को बस से बाहर फेंक दिया गया। सिंगापुर में इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। मामले में 23 वर्षीय पीड़िता को ‘निर्भया’ नाम दिया गया। 2012 में हुई इस घटना में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 20 मार्च 2020 को चार दोषियों को फांसी दी गई। यानी करीब-करीब 8 साल लग गए। निर्भया केस के 10 साल पूरे होने के दो दिन पहले राजधानी में एक स्टूडेंट पर तेजाब से हमला किए जाने की घटना हुई है। अटैकर्स को कानून का कोई डर नहीं है। सिस्टम भी जस का तस चल रहा है। पीड़ित इसके लिए सरकार से लेकर जूडिशल सिस्टम को कठघरे में खड़ा करते हैं।
पीड़ितों को पीड़ित करने वाला है सिस्टम
एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के मुताबिक, अगर एसिड अटैकर्स बार-बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं तो उसकी सिर्फ एक वजह है। वो बेखौफ हैं। जब तक अपराधियों में डर नहीं बनेगा। ये हमले रुकने वाले नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि सिस्टम पीड़ित को ही पीड़ित करने वाला है। उसके सामने तरह-तरह की मुश्किलें आती हैं। इनमें अस्पताल में इलाज कराने से लेकर कोर्ट की प्रक्रिया और समाज का सामना करना तक शामिल है। फास्ट ट्रैक कोर्ट होने के बावजूद न्याय मिलने में देरी होती है। 10 सालों में इसमें कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है।
जहां-तहां मिल रहा है एसिड
जिंदगी को तबाह करने वाला एसिड जहां-तहां मिल रहा है। नियमों को ताक पर रखकर तेजाब की बिक्री हो रही है। एसिड बिक्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देश हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत ने 2013 में कहा था कि इसकी बिक्री के लिए सरकार से लाइसेंस हासिल करना जरूरी है। यह और बात है कि इसे फल-भाजी की तरह जहां चाहे वहां से खरीदा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने का फायदा तो तभी है जब इसे अमल में लाया जाए। लेकिन, इस मोर्चे पर सरकारें विफल दिखाई देती हैं। दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल का यह कहना गलत नहीं है कि एसिड बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए निरीक्षण नहीं किया जा रहा है। भला इनकी ऑनलाइन बिक्री कैसे हो रही है।
‘निर्भया फंड’ से कितनी मदद?
स्टूडेंट पर एसिड अटैक की घटना के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने गुस्सा जाहिर किया था। कोर्ट में महिला सुरक्षा से जुड़े मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील मीरा भाटिया इसे लेकर एक सवाल उठने पर आग बबूला हो गई थीं। जब सवाल उठा कि क्या पीड़ित बच्ची को इलाज के लिए कोई आर्थिक मदद मुहैया कराई गई, तो भाटिया ने कहा था कि ऐसे पीड़ितों के लिए निर्भया फंड के इस्तेमाल की बात कही गई थी। फंड से पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। इससे उन्हें शुरुआती इलाज लेने में दिक्कत नहीं हो। हालांकि, फंड का इस मकसद के लिए इस्तेमाल होता हुआ नहीं सुनाई पड़ता। सुनाई तो यह पड़ता है कि महाराष्ट्र पुलिस ने निर्भया फंड की मदद से पीसीआर वैन खरीदीं, क्या आप इसे फंड का सदुपयोग कहेंगे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."