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November 23, 2024 5:37 am

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महादेव बनाम अल्लाह !!

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अनिल अनूप 

भारत में शायद ही कोई चुनाव हिंदू-मुसलमान के बिना सम्पन्न होता है। इस मुद्दे पर तुष्टिकरण और धु्वीकरण के, राजनीतिक दलों के, तरीके अलग-अलग हैं। चूंकि इस समय गुजरात चुनाव पूरे उफान पर है, लिहाजा मतदाता भी सांप्रदायिक आधार पर बंट रहे हैं। ऐसे निष्कर्ष विभिन्न सर्वेक्षणों और चुनाव विशेषज्ञों के हैं। भाजपा पूरी तरह घोर हिंदुत्व के सहारे चुनाव मैदान में है। प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम तुष्टिकरण को सीधा आतंकवाद से जोड़ दिया है और अपने संबोधनों में पुरानी घटनाओं का भी उल्लेख कर रहे हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 2002 के गोधरा दंगों का जिक़्र कर दावा ठोंका है कि हमने उन्हें ऐसा सबक सिखाया है कि उसके बाद कोई दंगा और कफ्र्यू गुजरात में नहीं देखा गया है। ऐसे ही कारण हैं कि अधिकांश मुस्लिम वोटर भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। हालांकि इससे जनादेश बहुत कुछ प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि मुस्लिम परंपरागत और खासकर 2002 के दंगों के बाद से भाजपा के खिलाफ मतदान करते रहे हैं। कमोबेश 12-15 फीसदी मुसलमान भाजपा के पक्ष में वोट डालने लगे हैं। यह संकेत भी बेहद महत्त्वपूर्ण है।

भाजपा गुजरात में 1995 से लगातार चुनाव जीतती रही है और सत्तारूढ़ है। इस बार भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र के जरिए कुछ और हिंदूवादी संकल्प किए हैं। मसलन-समान नागरिक संहिता लागू करेगी। दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने का कानून बनाया जाएगा। जेल में कट्टरवादिता के खिलाफ एक प्रकोष्ठ बनाया जाएगा। धर्मांतरण पर सख्त पाबंदी चस्पा की जाएगी। यही नहीं, भाजपा गुजरात मतदाताओं के एक तबके में हिंदूवादी मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण जागृति फैलाने का भी काम करेगी। गुजरात में न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी (आप) का ‘चुनावी हिंदुत्व’ भाजपा की रणनीति का मुकाबला कर सकता है। कमोबेश कांग्रेस ने मुस्लिम लामबंदी और तुष्टिकरण का अलग और अजीब रास्ता अख्तियार किया है। कांग्रेस नेता चंदन ठाकोर ने बयान दिया है कि अगर देश को कोई बचा सकता है, तो सिर्फ मुसलमान ही बचा सकते हैं।’ राजकोट पूर्व से कांग्रेस उम्मीदवार इंद्रनील राजगुरू का मानना है-‘गुजरात के सोमनाथ में अल्लाह बैठे हैं और राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह में भगवान महादेव विराजमान हैं।’ हमें समझ नहीं आया कि यह कौन-सी धर्मनिरपेक्ष एकता है? यह कैसी सांप्रदायिक सद्भावना है? क्या कांग्रेस अब साकार और निराकार धार्मिक आस्थाओं की भी तुलना करेगी? एक तरफ मंच से ऐसे सांप्रदायिक नारे बुलंद किए जा रहे हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी को मंदिर में पूजा-पाठ करते हुए दिखाया जा रहा है। यह विरोधाभास कांग्रेस को कितनी और कौन-सी चुनावी ताकत देगा, हमारी समझ के परे है।

गुजरात में मुस्लिम वोट बांटने के लिए ‘आप’ भी लड़ रही है और ओवैसी की मुस्लिमवादी पार्टी भी चुनाव मैदान में है। हैरत होती है कि कांग्रेस के प्रवक्ता टीवी चैनलों की बहस में 1940-42 का मुद्दा उठा रहे हैं कि हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ साझा सरकार बनाई थी और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उपमुख्यमंत्री थे। वे 2022 के राजनीतिक समीकरण क्यों भूल जाते हैं कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग केरल में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है। दशकों से यह गठबंधन जारी है और मुस्लिम लीग का चेहरा कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार में भी मंत्री रहा है। सवाल मुस्लिम लीग का नहीं है। तुलना महादेव और अल्लाह की है, जो किसी भी दृष्टि और मत-संप्रदाय-आस्था से गलत है। कांग्रेस नेता आज भी बयान दे रहे हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। अल्पसंख्यक कमोबेश मुसलमान नहीं हैं। जैन, बौद्ध व अन्य हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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