दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उन्नाव । ये कहानी प्यार से शुरू हुई और रेप तक पहुंची। आरोपी गिरफ्तार हुए, जमानत पर बाहर आए और फिर 5 दिसंबर 2019 की एक सुबह लड़की को सरेआम जिंदा जलाकर मार दिया। कथित प्रेमी समेत 5 लोग फिर गिरफ्तार हुए, 3 साल गुजरे और इनमें से 4 जमानत पर बाहर हैं।
जला दी गई लड़की के घर के बाहर बीते 3 साल से पुलिस तैनात है। उसकी छोटी बहन पढ़ाई-लिखाई और अपने सपने छोड़कर ये केस लड़ रही है।
उधर, आरोपियों की तरफ से भी केस लड़ने की जिम्मेदारी उनकी बहन-बेटियों ने ही संभाली है। उन्होंने भी पिता-भाइयों को बचाने के लिए सपने कुर्बान कर दिए। ये मामला ऐसे केस में तब्दील हो गया है, जिसमें एक बेटी की हत्या के बाद न्याय दिलाने के लिए लड़ी जा रही जंग में बेटियां ही आमने-सामने हैं।
मरने से पहले आखिरी शब्द…’मैं 4 दिसंबर की सुबह रायबरेली जाने के लिए बैसवारा बिहार रेलवे स्टेशन जा रही थी। तभी शिवम त्रिवेदी, शुभम त्रिवेदी और कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। मेरे सिर पर डंडे से कई बार मारा, गले पर चाकू से हमला किया। वो लोग कैन में कुछ भरकर लाए थे, वह मुझ पर डाल दिया और आग लगा दी। मैं जान बचाने के लिए भागने लगी….’ ये बयान लड़की ने मरने से पहले पुलिस को दिया था।
आगे की कहानी मैं आपको सुनाता हूं। लड़की 1 किलोमीटर तक जलती हुई हालत में ही भागी थी। वहां मौजूद एक चश्मदीद गवाह रवींद्र प्रकाश ने पुलिस को बताया था कि उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ, जब उसने एक जलती हुई लड़की को ऐसे सड़क पर भागते देखा था। ऐसी ही हालत में पीड़िता ने 100 नंबर डायल किया और पुलिस को बुलाया।
पुलिस पहुंची और 90% जल चुकी लड़की को जिला अस्पताल पहुंचाया। इसके बाद उसे कानपुर के हैलट हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। वहां भी लड़की ही हालत देखकर डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद उसे एयरलिफ्ट कर दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल लाया गया। इलाज हुआ, लेकिन वो बच नहीं सकी। गांव के ही 5 लोग गिरफ्तार हुए, इनमें वो भी शामिल थे, जिन पर लड़की के रेप का आरोप था।
सरकारी वादे, संघर्ष और पहरे में पीड़ित परिवार
उस सुबह को 3 साल बीतने वाले हैं। सरकार ने मुआवजे के साथ-साथ मकान और परिवार के एक सदस्य को नौकरी का वादा किया था। इनमें सिर्फ मकान का वादा पूरा हुआ। कुछ आरोपी भी अब जमानत पर बाहर आ चुके हैं। रेप पीड़िता का छह साल का भतीजा अक्टूबर 2020 से घर से गायब है। पुलिस से मदद मांगी, लेकिन नहीं मिली। डर है कि कहीं उसे आरोपी परिवार ने किडनैप तो नहीं किया हुआ है।
लखनऊ से करीब 70 किमी और बिहार थाने से तकरीबन 8 किमी दूर हिंदूनगर में जला कर मार दी गई लड़की का घर है। मैं गांव में दाखिल होता हूं, तो बाएं हाथ पर एक मंदिर नजर आता है। यहां से लगभग 50 कदम पर बाएं हाथ पर ही पीड़िता का घर है। सामने बंदूकों से लैस दो पुलिसवाले बैठे हैं। छप्पर के नीचे रेप पीड़िता के बुजुर्ग पिता अपने पोते के साथ छेनी-हथौड़े से लोहे को सीधा करने में लगे हुए हैं।
परिवार का बड़ा बेटा जो पहले बाहर कहीं रहकर मजदूरी कर रहा था, गांव आ गया है। केस की पैरवी रेप पीड़िता की छोटी बहन कर रही है। घर में एक छोटा सा आंगन है और तुलसी का पौधा लगा हुआ है। पीछे की तरफ पक्का मकान है। बाकी तीन तरफ छप्पर पड़ा हुआ है।
रेप पीड़िता की छोटी बहन बताती है कि, ‘पिता खेतों में और भाई परदेस में मजदूरी करते थे। कुछ मदद हम भी करें, इसके लिए दोनों बहनों ने ज्यादा वक्त पढ़ाई में लगाया। मैं और मेरी बहन पुलिस में नौकरी करना चाहते थे। फिजिकल की तैयारी भी कर रहे थे। 2017 से ये सब शुरू हुआ।
शिवम त्रिवेदी का हमारे घर आना-जाना था। दीदी के साथ उसका अफेयर हो गया। उसके परिवार को ये बात पता चली, तो उन्होंने हमें धमकाया। शिवम ने मेरी बहन से बातचीत बंद नहीं की। दिसंबर 2017 में शिवम दीदी को शादी का वादा कर रायबरेली ले गया। वहां उसने दीदी के साथ रेप किया।
परिवारों का दबाव बढ़ा तो दोनों गांव लौट आए। इसके बाद शिवम ने दीदी के साथ बातचीत बंद कर दी। धमकाने लगा कि अगर मेरा पीछा नहीं छोड़ा, तो तुम्हारा अश्लील वीडियो वायरल कर दूंगा। पिताजी ने बहन को बुआ के घर रायबरेली भेज दिया।
शिवम ने पीछा नहीं छोड़ा और रायबरेली में दीदी को फोन कर एक मंदिर पर मिलने बुलाया। यहां शिवम और गांव के प्रधान के लड़के शुभम ने दीदी से गैंगरेप किया। हमने 2018 में रेप का मुकदमा रायबरेली के लालगंज थाने में दर्ज कराया था। जिस दिन उन्हें जिंदा जलाया, उस दिन भी इसी मुकदमे की पैरवी के लिए वे रायबरेली जा रही थीं।’
ये कहते हुए पीड़िता की बहन का चेहरा पत्थरनुमा बना रहता है। शायद इतनी बार और इतने लोगों को वो ये कहानी बता चुकी है कि अब अपनी बहन पर हुए जुल्म के लिए उसका गुस्सा और भावनाएं भी जवाब देने लगी हैं।
कुछ बर्बाद होती जिंदगियां और खोया बच्चा, जिन्हें कोई नहीं ढूंढ रहा
पीड़िता की बहन मुझे ये सब बताते हुए, शायद कुछ देर दिसंबर 2019 की उस सुबह में पहुंच जाती है, जब उसने पहली बार अपनी बड़ी बहन की जली हुई बॉडी देखी होगी। उसकी चुप्पी टूटती है, वो फिर बोलने लगती है- ‘जब से मेरी बहन का मर्डर हुआ है, तभी से मेरी जिंदगी बदल गई है। केस की पैरवी के लिए कभी उन्नाव तो कभी रायबरेली जाना पड़ता है। हर महीने पांच से आठ बार कोर्ट में तारीख पड़ती है।’
‘आते-जाते कभी-कभी लगता है कि कोई पीछा करता है। पुलिस वाले यह बात नहीं मानते। पुलिस भी अब मेरे भतीजे को नहीं ढूंढ रही है। मैंने ग्रेजुएशन किया है। मेरा सपना था कि पुलिस फोर्स जॉइन करूं। अब यह कभी पूरा नहीं हो पाएगा। सरकार ने कहा था कि आरोपियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट से जल्दी सजा मिल जाएगी। तीन साल हो गए और अभी मेरी गवाही ही चल रही है।
आरोपी तो जमानत पर छूट कर आ गए। मेरे मां-बाप को मारने की धमकी मिलती रहती है। तीन साल में घर में तीन बड़े हादसे हो गए। मेरी बहन को मार दिया। भतीजा अब जिंदा भी है, इसकी कोई उम्मीद नहीं। मेरा छोटा भाई इन्हीं तकलीफों में बीमार हो गया। उसकी भी मौत हो गई। मैं सबको खो रही हूं। अब बस गुनहगारों को सजा दिलाना ही मेरी जिंदगी का मकसद है।’
पुलिस तो भूल गई, हम कितना ढूंढें; कब तक ढूंढें
पीड़िता की बहन चुप होती है तो पीछे से भाभी के सिसकने की आवाज आने लगती है। ये वो मां है जिसका 6 साल का बच्चा गुम हो गया है। उसे अब कोई नहीं ढूंढ रहा। नीली साड़ी में बैठी मां सिसकते हुए बोलती हैं- ‘अब तो मैं अपने बेटे को जिंदा देखने की उम्मीद ही खो चुकी हूं।
2 अक्टूबर 2020 को दोपहर में खाना खाकर वह बाहर खेलने गया था। शाम के 4 या 5 बज रहे थे। खेलते-खेलते घर से कुछ दूर एक दुकान पर गया था। उसके बाद से किसी ने उसे नहीं देखा। दो साल हो गए। पुलिस ने ढूंढना बंद कर दिया है, बस हम ही ढूंढते रहते हैं। कहां तक ढूंढे। अब पता नहीं कहां होगा।’ ये कहते हुए वो फिर से रोने लगती हैं, फिर उठ कर घर में चली जाती हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."