अनिल अनूप
अवकाश का मौसम और मानस था, लिहाजा पर्यटन का आनंद लेने लोग मच्छू नदी पर बने ‘झूलते पुल’ तक भी पहुंच गए थे। गुजरात के मोरबी शहर में यह पुल ऐतिहासिक और तकनीकी श्रेष्ठता का नमूना माना जाता रहा है। देश की आज़ादी से बहुत पहले 1887 के आसपास मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी रावाजी ठाकोर ने जब इस पुल की कल्पना करते हुए बनवाया था, तो यूरोप की आधुनिकतम तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया था। अचानक यह ‘झूलता पुल’ अनेक लोगों के लिए ‘यमराज’ साबित हुआ। अधिकृत और अनौपचारिक आंकड़ों का निष्कर्ष है कि इस त्रासद हादसे में करीब 141 लोगों की मौत हो गई। 100 से अधिक लोग घायल हुए। कइयों को बचा लिया गया। कइयों की जि़ंदगी पर विराम लग गया। जो चोटिल हुए थे, वे कितना गंभीर और नाजुक स्थिति में हैं, इसका सम्यक खुलासा अभी होना है। ‘झूलता पुल’ अचानक टूट कैसे गया? क्षमता से कई गुना ज्यादा भीड़ उस स्थल तक क्यों पहुंचने दी गई और पुल पर 400-500 लोग क्यों सवार होने दिए गए?
इस हादसे में 132 लोगों की मौत हो गई। आज का रेस्क्यू ऑपरेशन आज बंद कर दिया गया है। इस हादसे में 100 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। 143 साल पुराने इस पुल की मरम्मत के लिए एक निजी फर्म को ठेका दिया गया था। कई महीनों तक मरम्मत का काम करने के बाद अभी कुछ दिन पहले ही इस पुल को जनता के लिए फिर से खोल दिया गया था। हालांकि इस पुल को नगर पालिका से फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं मिला था।
इंडिया टुडे के मुताबिक ये पुल अजंता ओरेवा कंपनी को संचालन और रखरखाव के लिए 15 सालों के लिए दिया गया था। अनुबंध मार्च 2022 में मोरबी नगर निगम और अजंता ओरेवा कंपनी के बीच हस्ताक्षरित किया गया था और ये अनुबंध साल 2037 तक वैलिड था। इस समझौते में इस बात का भी जिक्र है कि कंपनी को रखरखाव के काम के लिए कम से कम 8 से 12 महीने का समय दिया जाना चाहिए। हालांकि, कंपनी ने समझौते की शर्तों और समझौतों की अवहेलना की और महज पांच महीनों में ही इस पुल को आम जनता के लिए खोल दिया।
पुल की क्षमता 100 लोगों का भार वहन करने की बताई जा रही है। ऐसे पर्यटक स्थलों पर जन-सैलाब को इज़ाज़त क्यों दी जाती रही है? पुल की मरम्मत इसी 26 अक्तूबर को की गई थी। वह मरम्मत कितनी अधूरी, फर्जी और लापरवाह थी कि 30 अक्तूबर की शाम को ही मौत का ऐसा हादसा हो गया? यदि मरम्मत करने वाली कंपनी ने ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ नहीं लिया था और पुल पर भार वहन करने वाले उपकरणों, मशीनरी और निर्माण सामग्री की गुणवत्ता की जांच नहीं की गई थी, तो यह निश्चित तौर पर सवालिया है और ‘वास्वविक हत्यारिन’ कंपनी ही है। लापरवाही के दोषी सरकारी, गैर-सरकारी चेहरों और अनुबंध वाली कंपनी को तुरंत बर्खास्त कर, काली सूची में, डाल देना चाहिए। भयंकर लापरवाही संचालकों की भी है। ऐसे पुल मौत का कारण कभी भी बन सकते हैं, तो जिम्मेदार इकाइयां आंखें कैसे मूंद लेती हैं? वे इतनी संवेदनहीन कैसे हो जाती हैं? ये मानवीय सवाल हैं, जो निरुत्तर नहीं रखे जा सकते। ‘झूलता पुल’ से जुड़ा यह त्रासद हादसा पहला नहीं है। अगस्त 11, 1979 को इसी नदी पर बना मच्छू बांध ढह गया था। तब 2000 से ज्यादा मौतें हुई थीं। यह भी पुल से ही जुड़ा रास्ता था। यही नहीं, सितंबर, 2002 में बिहार में एक रेलवे पुल टूट गया था, जिसमें 130 मौतें हुईं। 29 अक्तूबर, 2005 को आंध्रप्रदेश में वेलिगोंडा रेलवे पुल टूटा था। उसमें भी 114 जि़ंदगियां समाप्त हो गई थीं। केरल में 21 जुलाई, 2001 को रिवर रेलवे ब्रिज टूटने से 57 लोग मर गए थे।
देश में पुल टूटने के ये तीन सबसे त्रासद हादसे हैं। ऐसी घटनाएं होती रही हैं। यदि हमारी जिम्मेदार व्यवस्था यूं ही लापरवाह रही, तो न जाने कितने और ‘झूलते पुल’ टूटेंगे और नदी में गिरकर इनसानी जि़ंदगियां पथरा जाएंगी? एक सदी से ज्यादा पुराना होने के कारण इस पुल की मरम्मत की जाती रही है। बीते 6-7 माह से यह पुल बंद था, क्योंकि मरम्मत की जा रही थी। इस तकनीक के जानकार विशेषज्ञ इंजीनियर मानते हैं कि पुल का ओवरलोड टेस्ट नहीं किया था, लिहाजा यह हादसा हुआ। ‘झूलता पुल’ पिकनिक स्पॉट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है, लिहाजा भीड़ का होना स्वाभाविक है। बताया जा रहा है कि जब अचानक पुल टूट गया और करीब 300 लोग 60 फुट नीचे मच्छू नदी में जा गिरे, तो चारों ओर हाहाकार मच गया। जिन हाथों में पुल की जाली-केबल आ गई, वे बचाव के लिए चीखते रहे। बेहद खौफनाक मंजर था। ऐसे करीब 200 लोगों को बचा लिया गया। बहरहाल चिंता और सरोकार ऐसे पर्यटन स्थलों को लेकर है, जिनके जरिए हमारी सरकारें राजस्व भी कमाती हैं। यदि ऐसे स्थलों पर हादसे होते रहे या भगदड़ की घटनाएं हुईं अथवा निर्माण टूट गया या रोप-वे फंस गया अथवा हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया, तो अंतत: पर्यटन की संभावनाएं भी क्षीण होती जाएंगी। बहरहाल गुजरात सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में ‘विशेष जांच दल’ का गठन किया है, जिसमें इंजीनियरों को भी स्थान दिया गया है। देखते हैं कि उनकी रपट क्या कहती है?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."