सुहानी परिहार की रिपोर्ट
ग्वालियर । होटल मयूर में पकड़े गए सेक्स रैकेट के तार भोपाल, दिल्ली और गुजरात से जुड़े हैं। कॉलगर्ल्स इन्हीं शहरों से ग्वालियर आती थीं। ये पूरा रैकेट इंस्टाग्राम से चल रहा था, कॉलगर्ल्स इसी के जरिए एजेंट से जुड़ी थीं। ऑन डिमांड एजेंट इन लड़कियों को बुलाता था। ये ट्रेन से एक दिन के लिए आती थीं और फिर ट्रेन से ही वापस लौट जाती थीं।
पुलिस ने सोमवार रात होटल मयूर से 6 युवतियों को पकड़ा था। सभी की काउंसिलिंग की गई है। युवतियों का कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसी वजह से वे सेक्स रैकेट की दुनिया में आ गईं, और अब इस जाल में फंसने के बाद बाहर नहीं निकल सकतीं।
दिल्ली, गुजरात और भोपाल से आती थीं युवतियां
पुलिस ने जब इन युवतियों से बात की, तो पता लगा कि छह में से चार युवतियां बाहर की हैं। इनमें से 2 दिल्ली और 1-1 गुजरात और भोपाल की हैं। इनको कॉल कर एजेंट ने यहां बुलाया था। एक दिन पहले ही युवतियां यहां आईं थीं। जिस रात इन्हें पकड़ा गया, उसी रात इन्हें वापस लौटना था।
होटल वालों के सम्पर्क में रहती थीं कॉलगर्ल्स
CSP विजय भदौरिया ने बताया कि पकड़ी गई सभी कॉलगर्ल्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम के जरिए एजेंट और होटल वालों के कॉन्टैक्ट में थीं। जब भी एजेंट को कोई डील मिलती थी, तो वह युवतियों को सोशल मीडिया पर एक मैसेज छोड़ देता था। डील तय होते ही युवतियां आने-जाने का समय दे देती थीं। उनके आने-जाने का खर्च एजेंट उठाता था।
गरीबी ने बनाया कॉलगर्ल, पुलिस नरम पड़ी
पकड़ी गई कुछ युवतियों ने पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई, जिसके बाद पुलिस भी उनके खिलाफ नरम पड़ गई है। युवतियों ने कहा कि हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। घर की हालत खराब होने के कारण इस रैकेट से जुड़ना पड़ा। दिल्ली की लड़कियों ने बताया कि वे सुबह की ट्रेन से ग्वालियर आती थीं और दिन भर होटल में रुकने के बाद रात को वापस हो जाती थीं।
पुलिस ने होटल के आसपास बढ़ाई निगरानी
शहर की पड़ाव पुलिस को सूचना मिली थी कि होटल मयूर में कुछ दिन से युवतियों का आना-जाना लगा हुआ है। आशंका है कि यहां देह व्यापार के लिए इन युवतियों को बुलाया जाता है। इस पर पड़ाव पुलिस ने होटल के आसपास निगरानी बढ़ा दी। सूचना पुख्ता होने पर सोमवार रात होटल में रेड की। होटल से 6 युवतियों समेत 9 लोग पकड़े गए थे। युवतियों की उम्र 21 से 26 साल के बीच है।
मानव तस्करी का रैकेट कैसे चलता है?
लड़कियों को रेड लाइट एरिया में पहुंचाने वाले मानव तस्कर प्लानिंग के तहत काम करते हैं। इसके लिए पूरा गिरोह काम करता है। गिरोह 3 से 6 साल की ऐसी लड़कियों को टारगेट करते हैं, जिनके मां-पिता की आर्थिक स्थिति खराब होती है। साथ ही घर में उस बच्ची के अलावा और भी बेटियां होती हैं। इन बच्चियों को टारगेट करने का उद्देश्य यही रहता है कि उनके परिजन केस दर्ज कराने के बाद बच्चियों को तलाशने में ज्यादा रुचि कम ही दिखाते हैं। बाद में पुलिस भी फाइल दबा देती है। इससे गिरोह के सदस्य आसानी से बच निकलते हैं।
बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार से लाते हैं लड़कियां
गिरोह सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों की लड़कियों को निशाना बनाते हैं। यहां से गरीब लोगों को तलाशते हैं। उन्हें झांसे में लेकर छोटी लड़कियों को ले आते हैं। कई बार लड़कियों के माता-पिता को थोड़े बहुत पैसे भी देकर आ जाते हैं। कई बार शादी और काम का झांसा देकर भी ले आते हैं। 2 अक्टूबर को मिली लड़कियां बिहार और पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं।
दो से तीन साल में बदल देते हैं जगह
मानव तस्करी करने वाले लड़कियों को उस उम्र में लाते हैं, जब यह बच्चियां परिवार से ज्यादा अटैच नहीं हाे पातीं। इसके बाद उन्हें अलग-अलग जगह रखा जाता है। बच्ची अटैच न हो पाए या ज्यादा याद नहीं कर पाएं, इसके लिए एक जगह पर 2-3 साल से ज्यादा नहीं रखा जाता। ऐसे में जब लड़कियां 11 से 12 साल की होती हैं, उन्हें कुछ याद नहीं रहता। साथ ही, वे लड़कियों को बताते रहते हैं कि उनकी मां मरते समय उसे दे गई थी या उसका मौसा यहां सौंप गया था। यही बात लड़कियों के दिमाग घर कर जाती है। वह इसे ही सच मान बैठती हैं। उन्हें असलियत नहीं पता होती।
पुलिस की मुश्किल- नहीं तोड़ पाती चुप्पी
लड़कियां इस दौर से गुजरती हैं कि यहां से बाहर जाने और जीने की हिम्मत ही नहीं जुटा पातीं। वह इसी माहौल को अपनी दुनिया समझ लेती हैं। यही कारण है कि जब पुलिस यहां से लड़कियों को बरामद करती है, तो उनको वापस मुख्यधारा में लाने में असफल साबित हो जाती है।
ग्वालियर SSP अमित सांघी कहते हैं कि बरामद लड़कियों से हम शांति से बात करते हुए पूछताछ करते हैं। महिला पुलिस ऑफिसर अच्छे से हर बात जानने की कोशिश करती हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."