दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बरेली। रामलीला महज एक आयोजन ही नहीं, सनातन संस्कृति और धार्मिक वैभव का सशक्त हस्ताक्षर भी है। यही वजह है कि श्रीरामलीला मंचन से जुड़े लोग हर साल दूर-दराज से आते हैं और अपनी भूमिका निभाना सौभाग्य समझते हैं। इनमें बरेली के दीपक सिंह भी हैं जो बीते 21 साल से सुभाषनगर रामलीला में रावण बनते हैं। दिलचस्प यह है कि उनकी कंपनी उन्हें हर वर्ष लीला मंचन के लिए 15 दिन का सवैतनिक अवकाश भी देती है।
सुभाषनगर की रामलीला स्थानीय कलाकार और बच्चे मिलकर करते हैं। इसका संयोजन आलोक तायल करते हैं। इस रामलीला में सुभाषनगर के ही रहने वाले दीपक सिंह 2001 से रावण बनते आ रहे हैं। वह ललितपुर के एमएस रोड लाइंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। पहले उनकी तैनाती ललितपुर थी। वर्तमान में सोनभद्र के शक्तिनगर में हो गई है। रामलीला मंचन से दीपक सिंह का ऐसा जुड़ाव है कि हर साल वह रावण की किरदार निभाने के लिए जरूर आते हैं और इसके लिए कंपनी से 15 दिन का अवकाश लेते हैं। इतने दिनों में रिहर्सल और मंचन करते हैं।
परिस्थितियां कैसी भी रही हों, बीते 21 साल से (कोरोना संक्रमण के चलते दो साल रामलीला नहीं हुई) वह दशहरा के पहले आते हैं। जब कंपनी को रामलीला मंचन के प्रति उनके और रावण का रोल निभाने का पता चला तो फैसला हुआ कि हर साल उनको 15 दिन का अवकाश लीला मंचन के लिए दिया जाएगा। इसके लिए उनको पूरा वेतन भी मिलेगा।
रामलीला हमारी सांस्कृतिक धरोहर दीपक सिंह कहते हैं कि रामलीला मंचन हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक धरोहर है। इसे सहेजना, संभालना और समृद्ध बनाना हम सबकी जिम्मेदारी भी है। मंचन में नौकरीपेशा लोगों के साथ ही दुकानदार और स्कूली छात्र-छात्राएं शामिल होते हैं। कलाकारों की सज्जा की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों पर है।
80 वर्षों से हो रहा रामलीला का मंचन
सुभाषनगर रामलीला का मंचन 80 वर्षों से हो रहा है। कोरोना महामारी की वजह से 2 साल तक मंचन नहीं हो सका था। समिति से जुड़े आलोक तायल ने बताया कि रामलीला की शुरुआत स्थानीय लोगों के सामूहिक प्रयास से हुई थी। शुरू में रामलीला का मंचन छोटे-छोटे बच्चे करते थे। मंचन में अशोक कुमार शर्मा, जगदीश चंद्र सक्सेना, उदय वीर सिंह, आलोक तायल, प्रदीप कुमार अग्रवाल, ललित सिंह, प्रवीन शर्मा, दिलीप कुमार सिंह आदि का सहयोग रहता है।
Author: samachar
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