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November 23, 2024 5:21 am

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साझा पुस्तक संग्रह ‘प्रकृति के आंगन में’ का लोकार्पण सम्पन्न

14 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

बांदा। शैक्षिक संवाद मंच की प्रकाशन योजना अंतर्गत प्रकाशित बेसिक शिक्षा से जुड़े 104 शिक्षक-शिक्षिकाओं की प्रकृति विषयक विविध कविताओं एवं लेखों से सुसज्जित साझा संग्रह ‘प्रकृति के आंगन में’ का लोकार्पण गत दिवस नटराज संगीत महाविद्यालय, बांदा के सभागार में साहित्यकार, समाजसेवी एवं शिक्षाविद् विभूतियों द्वारा एक भव्य गरिमामय कार्यक्रम में किया गया जिसमें जालौन, बांदा, महोबा और चित्रकूट के रचनाकारों सहित नगर से पधारे शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित रहे।

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि प्रकृति के आंगन में पुस्तक पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में एक सार्थक पहल है। वास्तव में प्रकृति के आंगन में पली प्रतिभाएं समाज एवं राष्ट्र के विकास का आधार एवं गौरव होती हैं। प्रकृतिपरक रचनाओं से सुरभित यह संग्रह लोक जीवन की प्रेरणा का आधार बनेगा, ऐसा विश्वास है।

लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि समाजसेवी गोपाल भाई ने विचार रखते हुए कहा कि समाज को बदलने का काम साहित्य और रचनाधर्मियों द्वारा ही होता है। प्रकृति के साथ जीने का भाव विकसित कर हम शांति, सुखी, समुन्नत एवं समाधान पूर्वक जीवन जी सकते हैं। मलय के संपादन में प्रकाशित साझा संग्रह प्रकृति के आंगन में चंदन की सुगंध समाई हुई है।

विशिष्ट अतिथि प्राचार्य बाबूलाल दीक्षित ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि शामिल सभी रचनाकार शब्द के आराधक साधक हैं, अक्षर ब्रह्म के उपासक हैं। अहम भाव से मुक्त होकर प्रकृति के आंगन में साधनारत हों, यही कामना है। यह पुस्तक साहित्य रचना की यात्रा में पाथेय सिद्ध होगी।

विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर दीपाली गुप्ता ने विचार रखे कि कोरोना संकट ने प्रकृति के महत्व से परिचित कराया। प्रकृति के आंगन में ही आत्मा का आनंद महसूस किया जा सकता है।

कथाकार छाया सिंह ने मानव के स्वार्थ, लालच एवं लोभ के कारण हो रहे प्रकृति के विनाश को रोकने की बात करते हुए अपनी कविता पढ़ी तो प्रयागराज से आये रुद्रादित्य प्रकाशन के निदेशक अभिषेक ओझा ने साहित्यकारों की पुस्तकों के प्रकाशन के लिए हर सम्भव सहयोग देने का भरोसा देते हुए प्रकृति के आंगन में संग्रह के छपने के प्रसंग साझा किये।

कार्यक्रम का शुभारंभ मंचस्थ अतिथियों एवं रचनाकारों द्वार मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। तत्पश्चात अतिथियों एवं पुस्तक में शामिल सभी रचनाकारों का बैज अलंकरण कर अभिनंदन किया गया।

डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम की भूमिका रखी। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन कर रही अपर्णा नायक के अनुरोध पर संपादक प्रमोद दीक्षित मलय ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए संपादन प्रक्रिया के दौरान उपजी चुनौतियों, बाधाओं की चर्चा करते हुए समय से पुस्तक तैयार कर रचनाकारों को उपलब्ध करा देने पर हर्ष व्यक्त किया।

पुस्तक में शामिल रचनाकारों रीनू पाल रूह, शहनाज़ बानो, पूजा दुबे, अनुरंजना सिंह, डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी, रीता गुप्ता, अपर्णा नायक, नम्रता श्रीवास्तव, प्रमोद दीक्षित मलय, दीपिका वर्मा एवं ज्योति विश्वकर्मा ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

सभी रचनाकारों को अतिथियों द्वारा अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र, पुस्तक की एक प्रति और कलेवा भेंट कर सम्मानित किया गया। पुस्तक के सम्पादक प्रमोद दीक्षित मलय ने श्रोताओं की करतल ध्वनि के बीच सभी मंचस्थ अतिथियों को अंगवस्त्र ओढ़ाते हुए सम्मान पत्र समर्पित कर हर्ष व्यक्त किया।

इस अवसर पर जिला पंचायत सदस्य शिवदास अनुरागी, रामावतार साहू, हीरालाल, मूलचंद कुशवाहा, इंद्रवीर सिंह, रमेश पटेल एवं राजेश तिवारी रंजन को भी प्रकृति के आँगन में पुस्तक की प्रति भेंट की गयी।

कार्यक्रम में सुनील कुमार मौर्य, कोमल, रश्मि निगम, विवेक पांडेय, आदर्श सहित अर्ध शताधिक सुधी श्रोता उपस्थित रहे। संचालन अपर्णा नायक ने किया जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। शहनाज़ बानो द्वारा अतिथियों, रचनाकारों, उपस्थित श्रोताओं सहित नटराज संगीत महाविद्यालय के प्रति आभार व्यक्त किया।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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